भोरमदेव मंदिर, छत्तीसगढ़ के कबीरधाम (कवर्धा) ज़िले के चौरागाँव में एक हज़ार वर्ष पुराना भगवान शिव को समर्पित हिन्दू मंदिर है जिसे भोरमदेव मंदिर (bhoramdev mandir) के नाम से जाना जाता है। सतपुड़ा की मैकल पर्वतों की श्रेणियों के बीच प्रकृति की गोद में बसे भोरमदेव मंदिर की अद्भुत छटा देखते ही बनती है। हम आपसे यही कहना चाहेंगे कि भोरमदेव के मंदिर (Bhoramdev ke mandir) के दर्शन करने आप वक़्त निकालकर कम से कम एक बार ज़रूर पधारें।
Bhoramdev mandir |
भोरमदेव मंदिर नागर शैली का एक सुंदर उदाहरण है। यह भोरमदेव मंदिर सौंदर्य (bhoramdev mandir saundarya), खजुराहो की याद दिलाता है। इसकी बनावट खजुराहो, कोणार्क के सूर्य मंदिर, अजंता-एलोरा आदि के मंदिरों की कलाकृतियों से मिलती जुलती है। जिसके कारण लोग इस मंदिर को छत्तीसगढ़ का खजुराहो (chhattisgarh ka khajuraho) भी कहते हैं।
भोरमदेव (bhoramdev), गोंड जाति के उपास्य देव हैं, जो महादेव शिव का एक नाम है। भोरमदेव मंदिर के निर्माता शिवजी के परम भक्त थे। शायद यही कारण है कि यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान शिव अपने ख़ास और अलग अलग रूपों में हैं। भगवान शिव को स्थानीय बोलचाल की भाषा में भोरमदेव भी कहा जाता है।
यहाँ मंदिर के परिसर में विभिन्न देवी देवताओं की प्रतिमाएँ, स्तंभ और तरह-तरह के शिलालेख रखे हुए है जो इस क्षेत्र में खुदाई के दौरान प्राप्त हुए हैं। हिन्दू मंदिरों की तर्ज पर यह मंदिर भी पूर्वी मुहाने पर है। इसी कारण सूर्योदय के समय उगते सूर्य की पहली किरण जैसे ही गर्भगृह में स्थापित प्रतिमा पर पड़ती है वह शिव प्रतिमा जगमगा उठती है।
मंदिर के गर्भगृह में मुख्य प्रतिमा के रूप में शिवलिंग वीराजमान है। साथ ही अन्य प्रतिमाएं भी उत्कीर्ण हैं। जिसमें विष्णु, शिव, चामुण्डा, गणेश आदि की सुंदर प्रतिमाएं उल्लेखनीय हैं। चतुर्भुज विष्णु की स्थानक प्रतिमा, लक्ष्मी नारायण की बैठी हुई प्रतिमा एवं द्विभुजी वामन प्रतिमा, वैष्णव प्रतिमाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। अष्टभुजी चामुण्डा एवं चतुर्भुजी सरस्वती की खड़ी हुईं प्रतिमाएं, देवी प्रतिमाओं का अद्भुत और सुंदर उदाहरण हैं। अष्टभुजी गणेश की नृत्यरत प्रतिमा, शिव की चतुर्भुजी प्रतिमाएं, भगवान शिव की अर्धनारीश्वर रूप वाली प्रतिमा, शिव परिवार की प्रतिमाओं के सुंदर मनोहारी उदाहरण यहाँ विद्यमान हैं। सचमुच भोरमदेव मंदिर पर्यटन स्थल (bhoramdev mandir paryatan sthal) के साथ-साथ धार्मिक स्थल के नाम से भी प्रसिद्ध है।
Bhoramdev mandir, chhattisgarh |
भोरमदेव मंदिर किसने और कब बनवाया (Who built the Bhoramdev temple and when in hindi)
भोरमदेव मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी (1089 ई.) में फ़णी नागवंशी शासक गोपालदेव राय ने कराया था। मंदिर के मंडप में रखी हुई एक दाड़ी-मूँछ वाले योगी की बैठी हुई मूर्ति पर एक लेख लिखा हुआ है जिसमें इस मूर्ति के निर्माण का समय कल्चुरी संवत 8.40 है। (कल्चुरी संवत 8.40 का अर्थ है 10वीं शताब्दी के बीच का समय) इससे यह पता चलता है कि भोरमदेव के ऐतिहासिक मंदिर (bhoramdev ke etihasik mandir) का निर्माण छठवें नागवंशी राजा गोपाल देव के शासन काल में हुआ है।
भोरमदेव मंदिर का प्राकृतिक सौंदर्य (Natural beauty of bhoramdev temple in hindi)
मंदिर के चारो ओर सतपुड़ा की मैकल पर्वत श्रेणी है।जिनके मध्य हरी भरी घाटी में यह मंदिर है। मंदिर के सामने ही सुंदर हरी भरी पहाड़ियों के बीच सुंदर तालाब है। जहाँ बोटिंग भी होती है। पर्यटक जब इस तालाब में नाव से विचरण करते हैं। तो आसपास देखकर अत्यंत ही मानसिक शांति और किसी स्वर्ग में विचरण करने जैसी अनुभूति होती है। चूँकि मंदिर प्राकृतिक परिवेश में बसा हुआ है, इसलिए यहाँ के नज़ारों में अपना अलग ही आकर्षण है। मैकल की पहाड़ियों के बीच यहाँ की शानदार पृष्ठभूमि और वातावरण मन मोह लेने वाला प्रतीत होता है। हरी भरी सुंदर पहाड़ियों के बीच और तालाब के किनारे स्थित मंदिर के चारों ओर का नज़ारा और इस मंत्रमुग्ध नज़ारों के बीच भोरमदेव मंदिर का दर्शन (bhoramdev mandir ka darshan) सचमुच आपको मोहित किये बग़ैर नहीं रह सकेगा।
भोरमदेव मंदिर की कला शैली (Art style of bhoramdev temple in hindi)
मंदिर का मुख पूर्व की ओर है। मंदिर में तीन द्वार हैं यानी कि आप तीन ओर से प्रवेश कर सकते हैं। मंदिर का निर्माण पाँच फुट ऊँचे एक चबूतरे पर किया गया है। तीनों ही प्रवेश द्वारों से होते हुए सीधे मंदिर के मंडप में प्रवेश किया जा सकता है। मंडप की लंबाई 60 फुट और चौड़ाई 40 फुट है। मंडप के बीच में 4 खम्भे तथा किनारे की ओर 12 खंभे, यानि कि छत को कुल 16 सुन्दर और कलात्मक खंभों ने संभाल रखा है। मंडप में लक्ष्मी, विष्णु एवं गरुण की मूर्ति तथा भगवान के ध्यान में बैठे हुए एक राजपुरुष की मूर्ति भी रखी गयी है।
मंदिर के गर्भगृह में एक काले पत्थर से बना हुआ शिवलिंग विराजमान है। गर्भगृह में एक पंचमुखी नाग की मूर्ति है साथ ही नृत्य करते हुए गणेश जी की मूर्ति तथा ध्यानमग्न अवस्था में राजपुरुष एवं उपासना करते हुए एक स्त्री पुरुष की मूर्तियाँ भी रखी गयी हैं।
मंदिर के चारों ओर बाहरी दीवारों पर विष्णु, शिव, चामुंडा तथा गणेश आदि की मूर्तियां लगी हुई हैं। इसके साथ ही लक्ष्मी, विष्णु, नटराज, काल भैरव एवं वामन अवतार की मूर्ति भी दीवार पर लगी हुई हैं। देवी सरस्वती की मूर्ति तथा शिव की अर्धनारीश्वर की मूर्ति भी यहां लगी हुई है। बाहरी दीवारों पर अलग अलग "कामसूत्र" आसन के 54 कामुक मूर्तियों की नक्काशी बड़ी ही ख़ूबसूरती से की गयी हैं। इस तरह बड़ा ही अद्भुत है भोरमदेव का यह प्राचीन मंदिर। यूँ ही प्रसिद्ध नहीं है यह भोरमदेव का ऐतिहासिक मंदिर (bhoramdev ka etihasik mandir)।
मड़वा महल, छत्तीसगढ़ |
मड़वा महल (Madwa Mahal in bhoramdev)
भोरमदेव के पास ही लगा हुआ लगभग 1 कि.मी. में एक और ख़ूबसूरत ऐतिहासिक स्मारक है, जहां एक और प्रसिद्ध शिव मंदिर है। जिसे मड़वा (मंडवा) महल कहते हैं। इसे दूल्हादेव भी कहा जाता हैं। चूंकि यहाँ विवाह संपन्न कराए जाते हैं। विवाह में मंडप का मंडप का प्रयोग होता है। और छत्तीसगढ़ में मंडप को मड़वा कहा जाता है। अब तो आप समझ ही गये होंगे कि इसका नाम मड़वा महल क्यों रखा गया है।
यह नागवंशी शासक और हैहयवंशी रानी के शादी के स्मारक के रूप में जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इसका निर्माण 1349 ई. में फ़णी नागवंशी शासक राम चंद्रदेव ने कराया था। मड़वा महल में फ़णी नागवंशी शासकों की वंशावली चिन्हित भी की गई है।
मड़वा महल का निर्माण क्यों कराया गया? इसका उद्देश्य क्या रहा होगा? इसका जवाब उपरोक्त तथ्यों से तो यही समझ आता है कि नागवंशी राजकुमार और हैहयवंशी राजकुमारी के विवाह हेतु यह मंडप युक्त मंदिर तात्कालिक राजा चंद्रदेव के द्वारा इस विशेष विवाह के लिए ही बनाया गया था।
इस मड़वा महल के 2 प्रमुख भाग हैं। एक भाग में शिव मंदिर और दूसरे भाग में मंडप। यह मड़वा महल 16 स्तंभों पर टिका हुआ है। ये सभी शिल्प स्तंभ कई अलग-अलग पत्थरों को कलाकृति देते हुए आपस मे जोड़कर बनाये गए हैं। यह भगवान का शिव का मंदिर भी भोरमदेव मंदिर की तरह ही दिखाई देता है। इसमें भी गुम्बज नहीं है।
भोरमदेव और मड़वा महल के गुम्बज का रहस्य-
भोरमदेव मंदिर के गुम्बज के रहस्य के जैसे ही इस मड़वा महल के गुम्बज के रहस्य के विषय में बताया जाता है कि इसका निर्माण कार्य लगातार छः माह के रात्रि काल में ही किया जाना था। जो कि आख़िरी रात्रि में सुबह हो जाने के कारण गुम्बज का कार्य पूरा नहीं किया जा सका।
खजुराहो की तरह इस शिवमंदिर की दीवारों पर भी नग्न और कामुक मूर्तियाँ विद्यमान हैं। यह विशेषता इस मंदिर की प्रमुख विशेषताओं में से एक है। इसे छत्तीगसढ़ का खजुराहो कहे जाने के पीछे एक प्रमुख वजह यह भी है। यहाँ की बाहरी दीवारों पर मैथुन क्रिया करती हुईं मूर्तियाँ बनायी गयी हैं। प्रेम क्रीड़ाएँ करती ये मूर्तियाँ इस मंदिर के चारों तरफ़ दिखाई देती हैं। जिनकी नक्कासी खजुराहो की तर्ज पर की गई है। मंदिर का गर्भद्वार काले चमकदार पत्थरों के द्वारा बनाया गया है, जो इसकी ख़ूबसूरती पर चार चाँद लगाता है।
54 कामोत्तेजक मुद्राओं में बनी मूर्तियों का रहस्य
(1) मड़वा महल की बाहरी दीवारों पर 54 प्रकार की कामोत्तेजक (कामसूत्र) मुद्राओं में मूर्तियों की नक्कासी की गई है। जिसके विषय में यह कहा जाता है कि इन कामुक मूर्तियों की शिल्पकारी इसीलिए करायी गयी थीं ताकि इस मंडप में, भगवान शिवजी को साक्षी मानकर विवाह करने के उपरांत शिवजी से आशीर्वाद लेकर, मंदिर के चारो ओर चक्कर लगाते हुए वैवाहिक जोड़े अपने, दाम्पत्य जीवन के गुप्प ज्ञान को प्राप्त करते हुए दाम्पत्य सुख की ओर आकर्षित होकर, अपने वैवाहिक जीवन का शुभारंभ कर सकें। इन्हीं मूर्तियों के बीच अलग अलग संदेश देती हुई मूर्तियाँ भी हैं जिनके द्वारा यह बताने का प्रयास किया गया है कि विवाह के बाद अनैतिक संबंध से वैवाहिक जीवन कैसे नष्ट हो जाता है।
(2) इसके अतिरिक्त उस काल में कुछ ऐसे धर्म के प्रचार प्रसार भी हो रहे थे। जिस कारण युवकों के मन में वैराग्य के प्रति रुचि बढ़ती दिखाई दे रही थी। जिस कारण वैराग्य की शरण में जाते हुए लोगों को वापस दाम्पत्य जीवन की ओर आकर्षित करने के उद्देश्य से भी इन कामुक मूर्तियों का निर्माण कराना बताया जाता है। क्योंकि उस काल में शिल्प कला ही अधिक प्रचलित थी। जिसके माध्यम से अनेक प्रकार के संदेश समाज मे दिए जाते थे।
(3) मंदिर के बाहरी दीवारों पर इन कामुक मूर्तीयों की शिल्पकारी के द्वारा यह भी संदेश देने का प्रयास किया गया है कि, लोग मंदिर के बाहर घूमकर, सर्वप्रथम अपने अंदर के काम, क्रोध और ऐसे सभी अनैतिक कार्यों से जीवन पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों की झलक देख सकें और अपनी गंदी मानसिकता को वश में करने का प्रयास करें, तत्पश्चात मंदिर के अंदर स्वच्छ मन से आराधना कर सकें।
छेरकी महल (Chherki Mahal in bhoramdev)
छेरकी महल 14वीं ई. शताब्दी में बना एक और पुरातन शिव मंदिर है। वास्तव में यह भोरमदेव मंदिर समूह का ही एक और मन्दिर है। हालाकि यह छेरकी मंदिर (chherki mandir), पास में ही स्थित भोरमदेव मंदिर एवं मड़वा महल की अपेक्षा छोटा है। लेकिन इस छेरकी मंदिर का मुख्य भाग चतुर्भुज भगवान गणेश, शिव, पार्वती और नदी देवियों की बेहद ख़ूबसूरत नक्काशियों से सुसज्जित है।
सतपुड़ा के मैकल पर्वत श्रृंखला के मध्य मनोरम परिदृश्यों के बीच बना यह छेरकी महल, भोरमदेव मंदिर घूमने आने वाले पर्यटकों को सहज ही आकर्षित करता है। पर्यटक यहाँ का नज़ारा देखने दूर दूर से आते हैं। यह छेरकी महल (chherki mahal) पत्थर के आकर्षक चौखट और भित्तीय चित्रों से परिपूर्ण है। यहाँ की एक आश्चर्यजनक बात यह है कि इस मंदिर में हमेशा ही बकरों की गंध मिलती रहती है। इस विषय में कहा जाता है कि यह गंध प्राचीन काल से इसी तरह मिल रही है।
भोरम देव से जुड़ी मान्यताएं (Beliefs related to bhoramdev in hindi)
(1) ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर के अंदर स्थित शिवलिंग के दर्शन और आराधना से मनचाही मुरादें पूरी हो जाया करती हैं। छत्तीसगढ़ के इस भोरमदेव मंदिर में शिवलिंग के दर्शन के बाद सुकून मिलता है। मंदिर देवताओं और मानव आकृतियों की उत्कृष्ट नक्काशी के साथ मूर्तिकला के चमत्कार के कारण सभी की आंखों का तारा हैं। यहां पूजन करने के लिए हर वर्ष देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु आते रहते हैं। भगवान शिव को यहाँ स्थानीय बोलचाल की भाषा में भोरमदेव भी कहते हैं। मंदिर के गर्भगृह में मुख्य प्रतिमा शिवलिंग की है।
(2) ऐसी मान्यता है कि जो भी भोरमदेव मंदिर के दर्शन (bhoramdev mandir ke darshan) के लिए आता है। जब तक मंडवा महल के भी दर्शन न कर ले, अधुरा ही माना जाता है। अर्थात मड़वा महल के दर्शन (madva mahal ke darshan) के पश्चात ही सम्पूर्ण दर्शन मन जाता है। मड़वा महल में एक और प्रसिद्ध शिव मंदिर है। जिससे संबंधित मान्यता है कि सोमवार के दिन यहाँ जाकर दर्शन करने पर मनचाहे जीवन साथी की प्राप्ति होती है। यहां विवाह संपन्न कराए जाते हैं। चूंकि विवाह में मंडप उपयोग किये जाते हैं इसीलिए इसका नाम मंडवा (मड़वा) महल है।
भोरमदेव मंदिर परिसर में मनोरंजक कार्यक्रमों का आयोजन ꘡ Entertainment programs organized in the bhoramdev temple premises in hindi
भोरमदेव का मंदिर 7वीं से 11वीं सदी का है। मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका नाम गोंड राजा भोरमदेव के नाम पर पड़ा है। स्थानीय किस्सों के अनुसार इस मंदिर को राजा ने ही बनवाया था। मंदिर के गर्भगृह में एक मूर्ति है, जिसके विषय में कहा जाता है कि वह मूर्ति राजा भोरमदेव की है, हालांकि इसे सिद्ध करने के लिए अभी तक कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिल पाया है।यहां राज्य सरकार द्वारा विशेष रूप से भोरमदेव महोत्सव, मार्च के अंतिम सप्ताह अथवा अप्रैल के पहले सप्ताह में आयोजित किया जाता है। इस उत्सव का हिस्सा बनने के लिए देश भर से बड़ी संख्या में लोग इस गांव में आते हैं। इस महोत्सव के समय यह भोरमदेव मंदिर सज धजकर मानों खिल उठता है। साल भर विशेष त्योहारों में यहाँ मेले और विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन होते रहते हैं। फलस्वरूप यहाँ देश भर से पर्यटकों की भीड़ लगभग हमेशा ही दिखाई देती है।
भोरमदेव मंदिर कैसे पहुँच सकते हैं (How to reach bhoramdev temple in hindi)
भोरमदेव पहुँचने के कुछ प्रमुख रास्ते निम्न हैं -
वायु मार्ग (Airway)
निकटतम हवाई अड्डा राज्य की राजधानी रायपुर में है। मुख्य हवाई अड्डा, कबीरधाम (कवर्धा) से लगभग 130 किमी पर स्थित है। यह हवाई अड्डा मुम्बई, नागपुर, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, बेंगलुरु, विशाखापटनम एवं चेन्नई से जुड़ा हुआ है।
रेल मार्ग (Railway route)
(1) निकटतम रेलवे स्टेशन छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर जो कि हावड़ा-मुम्बई मुख्य रेल मार्ग पर स्थित है। यह रेलवे स्टेशन कवर्धा से लगभग 120 km पर स्थित है।
(2) दूसरा रेलवे स्टेशन मध्यप्रदेश राज्य के जबलपुर में है। यह रेलवे स्टेशन भोरमदेव से लगभग 250 km पर स्थित है।
सड़क पहुच मार्ग (Roadway)
(1) कवर्धा अच्छी तरह से छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, भिलाई शहर से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। भोरमदेव रायपुर से लगभग 116 km और कबीरधाम(कवर्धा) से 18 km पर है। जहाँ दैनिक बस एवं टेक्सी सेवा उपलब्ध है।
(2) कवर्धा मध्यप्रदेश राज्य के बालाघाट, मंडला, जबलपुर शहर से भी सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। मध्यप्रदेश के बालाघाट-मंडला में स्थित कान्हा-किसली राष्ट्रीय उद्यान से बहुत पास,लगभग 70 km की दूरी पर है।
(3) भोरमदेव निकटतम राज्य महाराष्ट्र के कुछ शहरों, गोंदिया, भंडारा से भी सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। क्योंकि ये शहर मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ राज्य की निकटतम दूरी पर बसे हुए हैं।
आवास व्यवस्था (Living arrangements)
भोरमदेव एवं सरोदा दादर में पर्यटन मंडल का विश्राम गृह एवं निजी रिसॉर्ट पर्यटकों के लिए उपलब्ध हैं तथा कवर्धा जो कि भोरमदेव से महज़ 17 किमी पर है। कवर्धा में भी विश्राम गृह एवं निजी होटल्स पर्यटकों के लिए हमेशा उपलब्ध रहते हैं।
कोविड-19 के प्रतिबन्ध के समय यहाँ पर जलाभिषेक की अनुमति नहीं होती है साथ ही यहाँ पर नारियल और फूल चढ़ाना भी मना कर दिया जाता है। गर्भगृह के दरवाज़े पर कोरोना संक्रमण के ख़तरे की वजह से ताला लगा दिया जाता है। भक्त बाहर से ही दर्शन करके लौट जाते हैं। वो भी सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए। ताकि किसी भी आपातकालीन स्थिति से बचा जा सके। हालांकि Covid-19 अनलॉक प्रक्रिया के बाद उमड़ने वाली भीड़ में कुछ इज़ाफ़ा ज़रूर होने लगता है। किन्तु पहले जैसा नज़ारा अब कम ही देखने मिल रहा है।
इस दौरान कांवरियों को भी पद यात्रा कर, जलाभिषेक की अनुमति नहीं दी जाती है। यही कारण है कि भोरमदेव मंदिर के परिसर में सन्नाटा छाया रहता है। आजकल हल्की फ़ुल्की हलचल के अलावा कोई विशेष आयोजन नही दिखाई पड़ रहे हैं।
वैसे भी कोरोना संक्रमण को देखते हुए देश में अन्य पर्यटन और धार्मिक स्थलों पर इसी तरह सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखा जा रहा है। कोरोना वायरस पर नियंत्रण के पश्चात हो सकता है परिस्थितियां पहली जैसी सामान्य होने लगे। और भोरमदेव मंदिर का दर्शन (bhoramdev mandir ka darshan) पुनः आम हो जाये।
कोरोनाकाल में श्रद्धालुओं की भीड़ हुई कम
हालांकि कोरोनाकाल के इस के दौर में छत्तीसगढ़ का यह खजुराहो फ़िलहाल पूरी तरह से सूना-सूना दिखाई देता है। अब यहाँ गिने चुने भक्त ही भगवान शिव के दर्शन के लिए पहुँच पा रहे हैं। हर वर्ष चूँकि यहाँ पर श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगती थीं। लेकिन चूँकि कोविड-19 के दौर से अब समय-समय पर सम्पूर्ण देश में भीड़भाड़ वाले स्थानों पर प्रतिबन्ध लगा होता है। जिस कारण अब भोरमदेव मंदिर दर्शन (bhoramdev mandir darshan) के लिए आने वालों की भीड़ ज़रा कम ही देखने मिलती है।कोविड-19 के प्रतिबन्ध के समय यहाँ पर जलाभिषेक की अनुमति नहीं होती है साथ ही यहाँ पर नारियल और फूल चढ़ाना भी मना कर दिया जाता है। गर्भगृह के दरवाज़े पर कोरोना संक्रमण के ख़तरे की वजह से ताला लगा दिया जाता है। भक्त बाहर से ही दर्शन करके लौट जाते हैं। वो भी सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए। ताकि किसी भी आपातकालीन स्थिति से बचा जा सके। हालांकि Covid-19 अनलॉक प्रक्रिया के बाद उमड़ने वाली भीड़ में कुछ इज़ाफ़ा ज़रूर होने लगता है। किन्तु पहले जैसा नज़ारा अब कम ही देखने मिल रहा है।
इस दौरान कांवरियों को भी पद यात्रा कर, जलाभिषेक की अनुमति नहीं दी जाती है। यही कारण है कि भोरमदेव मंदिर के परिसर में सन्नाटा छाया रहता है। आजकल हल्की फ़ुल्की हलचल के अलावा कोई विशेष आयोजन नही दिखाई पड़ रहे हैं।
वैसे भी कोरोना संक्रमण को देखते हुए देश में अन्य पर्यटन और धार्मिक स्थलों पर इसी तरह सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखा जा रहा है। कोरोना वायरस पर नियंत्रण के पश्चात हो सकता है परिस्थितियां पहली जैसी सामान्य होने लगे। और भोरमदेव मंदिर का दर्शन (bhoramdev mandir ka darshan) पुनः आम हो जाये।
भोरमदेव मंदिर के संरक्षण में किये गए प्रयास (Efforts made in the preservation of bhoramdev temple in hindi)
छत्तीसगढ़ सरकार और पुरातत्व विभाग ने मन्दिर की गरिमा को बनाये रखने के लिए समय समय पर संरक्षण देने का भरसक प्रयास किया है। कुछ साल पहले इसकी रासायनिक धुलाई के अलावा परिसर के सामने बने तालाब की सफ़ाई और उनकी सुंदरता को बनाये रखने का पूरा प्रयास किया है। परिसर में ही गार्डन का निर्माण इसकी ख़ूबसूरती को चार चांद लगाता है।
भोरमदेव मंदिर के पास मड़वा महल, छेरकी महल और इनके अतिरिक्त आस पास के क्षेत्र को साफ सुथरा, आकर्षक बनाने के साथ ही इन मंदिरों की सुरक्षा का सम्पूर्ण बीड़ा उठाया है। जिस कारण सम्पूर्ण भोरमदेव मंदिर और आस पास की सुंदरता को देखने के लिए ज़िले, राज्य, और देश-विदेश के सैलानी भी बिना किसी संकोच के वर्ष भर यहाँ आते रहते हैं।
दोस्तों भोरमदेव ने छत्तीसगढ़ को देश-विदेश में प्रतिष्ठा दिलाने का गौरवपूर्ण कार्य किया है। और ऐसे अद्भुत कलाकृतियों और निर्माण किये गए प्राचीन स्मारकों को सहेजकर रखना हमारा प्रथम कर्तव्य है। क्योंकि अब ऐसे अद्भुत कलाकारों की कारीगरी के ऐसे नमूने बहुत कम देखने मिलते है।
जहाँ आजकल के कारीगरों द्वारा बनाये महल, पूल और सड़कें 20 साल भी नहीं टिक पाते। वहीं प्राचीन काल में बनाई गई हमारे देश की अलग अलग जगहों पर अनेक प्रकार के ऐतिहासिक महल, स्मारक, मंदिर आज भी मज़बूती के साथ खड़े हैं।
इतनी लाजवाब नक्कासी सच में अद्भुत है। भोरमदेव मंदिर की लोकप्रियता दिन-ब-दिन इतनी अधिक बढ़ी है कि अब तो यह देश विदेश तक प्रसिद्ध है। सचमुच इस मंदिर की प्रसिद्धि का श्रेय इसके निर्माण कार्य और दूरगामी सोच को जाता है।
इतनी शानदार नक्कासी, लाजवाब कलाकारी। देश भर में विशेष जगहों पर प्राचीन कलाकारों द्वारा इतना शानदार निर्माण कार्य और साथ ही इन सांस्कृतिक धरोहरों का इतना मज़बूत होना।आजकल के निर्माणकार्य से जुड़े कलाकारों, ठेकेदारों और आजकल की तकनीक पर एक प्रश्न चिन्ह है।
प्राचीन कलाकारों द्वारा बनाये गए प्राचीन महल, ऐतिहासिक भवन और उनकी कलाकृतियां, नक्काशियां उतनी ही जटिल और अद्भुत होने के साथ-साथ सैकड़ों-हज़ारों साल बाद भी अपनी मज़बूती की मिसाल बनी हुई हैं। तो वहीं दूसरी तरफ़ उठता यही सवाल कि आजकल की इंजीनियरिंग, नई तकनीक, करोड़ों की लागत, फिर भी शर्मनाक रिज़ल्ट!! ऐसा क्यूँ?
/किसी भी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक धरोहर के साथ, कई तरह के रहस्य और मान्यताएं जुड़ी होती हैं। हमारा यह लेख किसी भी सच के होने न होने का पूर्ण दावा नहीं करता। हमने इस लेख में उन्हीं बातों, रहस्यों का उल्लेख किया है जो कही या सुनी गई हैं.../
/किसी भी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक धरोहर के साथ, कई तरह के रहस्य और मान्यताएं जुड़ी होती हैं। हमारा यह लेख किसी भी सच के होने न होने का पूर्ण दावा नहीं करता। हमने इस लेख में उन्हीं बातों, रहस्यों का उल्लेख किया है जो कही या सुनी गई हैं.../
दोस्तों उम्मीद है हमारा यह लेख 'भोरमदेव मंदिर क्यूँ ख़ास है पर्यटकों के लिए꘡भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ ' आपको ज़रूर पसंद आया होगा। यह लेख कैसा लगा। आप भोरमदेव कवर्धा छत्तीसगढ़ के इस मंदिर के विषय में अपनी राय अवश्य दे सकते हैं। आप अपने दोस्तों को Share भी कर सकते हैं ताकि आपके दोस्त भी भोरमदेव मंदिर का रहस्य (bhoramdev mandir ka rahasya) जानने के बाद यहां भ्रमण का मन बना सकें। आपका प्रोत्साहन ही हमारी सफलता है। स्वस्थ रहें, सुरक्षित रहें। इसी कामना के साथ मिलते है किसी और नये लेख के साथ।
(- By Alok)
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