ज़रा सोचिए, अगर हर व्यक्ति अपने घर के साथ-साथ अपने दिल की सफ़ाई भी कर ले, तो समाज कितना सुंदर हो जाएगा। न कोई कटुता होगी, न कोई झगड़ा, न कोई जलन। सबके चेहरों पर मुस्कान होगी और दीवाली की रोशनी सा, हर किसी का हृदय जगमगा उठेगा।
दोस्तों हर साल जब दिवाली का त्यौहार (diwali ka tyohar) आता है, तो हम सभी के घरों में एक अलग-सी रौनक छा जाती है। दीवाली से कई दिन पहले ही हम सफ़ाई में जुट जाते हैं। कभी अलमारी ख़ाली करते हैं, कभी छत के कोनों से धूल हटाते हैं। कभी पुराने कपड़े और सामान निकाल फेंकते हैं। हर व्यक्ति चाहता है कि उसका घर साफ़-सुथरा, सुंदर और चमकदार दिखे। लेकिन क्या कभी हमने सोचा है कि जिस तरह हम अपने घर की सफ़ाई करते हैं, उसी तरह अपने दिल की सफ़ाई करना भी ज़रूरी है?
दोस्तों मैं आलोक खोब्रागड़े, आप सभी को दीवाली की अनंत शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं। और यही आशा करता हूं कि यह दिवाली आपके घर में रोशनी की जगमगाहट के साथ-साथ आपके आपसी रिश्तों में भरे कड़वाहट रूपी अंधेरों को भी रोशनी से भर दे। क्योंकि दीवाली सिर्फ़ घर के कोनों को चमकाने का त्यौहार नहीं, बल्कि अपने मन के अंधेरों को भी मिटाने का अवसर है। यह अंधेरे पर उजाले की जीत का उत्सव है।
क्योंकि दीवाली का असली अर्थ सिर्फ़ घर को रोशनी से भर देना नहीं, बल्कि अपने मन के अंधेरों को भी मिटाना है। असल रोशनी तो वहीं जगती है, जहाँ भीतर का अंधकार ख़त्म होता है। घर में दीपक जलाने से पहले अगर हम अपने दिल के कोनों में झाँकें, तो शायद हमें वहाँ भी बहुत कुछ साफ़ करने की ज़रूरत महसूस होगी। गिले-शिकवे, अहंकार, ईर्ष्या, द्वेष और पुरानी शिकायतें। ये सब हमारे मन के कोने-कोने में उसी तरह जमा रहते हैं, जैसे पुराने घर के किसी भूले हुए कोने में धूल।
दीवाली का त्यौहार हमें आंतरिक शुद्धता की याद दिलाता है। जब हम अपने आस-पास के वातावरण को साफ़ करते हैं, तो हमें भीतर से भी शांति मिलती है। लेकिन यदि हम अपने विचारों को, अपनी भावनाओं को, अपने रिश्तों को साफ़ नहीं करते हैं, तो वह असली सुख कभी नहीं मिल पाता जिसकी हम तलाश करते हैं।
कितनी ही बार ऐसा होता है कि हम किसी से नाराज़ रहते हैं, पर बात करने से झिझकते हैं। कोई ग़लती हो जाए, तो माफ़ी माँगने का साहस नहीं जुटा पाते। कभी कोई हमारा दिल दुखाए, तो हम मन में उसके लिए नफ़रत पाल लेते हैं। ऐसे में दिल धीरे-धीरे भारी होता जाता है, जैसे घर में कचरा जमा हो गया हो। दीवाली हमें यही सिखाती है कि जिस तरह हम घर से कचरा बाहर निकालते हैं, ठीक वैसे ही दिल से रंजिशों का बोझ भी निकाल देना चाहिए।
अगर हम चाहें तो इस दीवाली को एक 'आत्मिक दीवाली' बना सकते हैं। थोड़ा समय ख़ुद के लिए निकालिए। और सोचिए कि - "कौन-सी बातें हैं जो अब भी मन में चुभती हैं? कौन-से रिश्ते हैं जो रूठे हैं? किसे माफ़ करना है, या किससे माफ़ी माँगनी है?"
अगर आप सच्चे मन से सोचें, तो इन सबका जवाब आपके दिल में ही मिलेगा। और जब आप ये सफ़ाई शुरू करेंगे, तो देखेंगे कि अंदर एक नई ताज़गी, एक नई रोशनी जन्म लेने लगेगी। दीवाली का असली दीपक तब जलता है, जब हम अहंकार की राख को झाड़ते हैं और माफ़ी की लौ से दिल को रौशन करते हैं।
माफ़ करना और माफ़ी माँगना, कोई कमज़ोरी नहीं, बल्कि सबसे बड़ी ताक़त का प्रतीक है। जब हम दिल से किसी को माफ़ करते हैं, तो जान लीजिए कि आप ख़ुद को पूरी तरह आज़ाद करते हैं। और जब हम माफ़ी माँगते हैं, तो अपने अहंकार का बोझ हल्का कर देते हैं। यही तो असली दीपावली की भावना है। यानि कि अहंकार का अंत और आत्मा का उजाला।
दीवाली सिर्फ़ मिठाइयों और पटाखों का पर्व नहीं है। यह प्रकाश का पर्व है। और प्रकाश का अर्थ केवल बाहर की रोशनी नहीं, भीतर की भी है। हम जब अपने मन के अंधेरे को मिटाते हैं, तब हमारे जीवन में सच्चा प्रकाश आता है। जिस तरह दीपक जलाने से अंधकार भाग जाता है, वैसे ही सदभाव, प्रेम, और करुणा का दीपक जलाने से हमारे रिश्तों और विचारों में भी उजाला फैलता है।
ज़रा सोचिए, अगर हर व्यक्ति अपने घर के साथ-साथ अपने दिल की सफ़ाई भी कर ले, तो समाज कितना सुंदर हो जाएगा। न कोई कटुता होगी, न कोई झगड़ा, न कोई जलन। सबके चेहरों पर मुस्कान होगी, और दीवाली की रोशनी सा, हर किसी का हृदय जगमगा उठेगा।
तो चलिए इस बार दीवाली पर जब आप अपने घर की दीवारों को रंग रहे हों, तो अपने दिल की दीवारों को भी रंग दीजिए- प्यार, अपनापन और क्षमा के रंगों से।
जब आप पुराने टूटे सामान को फेंक रहे हों, तो पुराने ग़ुस्से और दुःखों को भी फेंक दीजिए। जब आप दीपक जला रहे हों, तो एक दीपक अपने भीतर भी जला लीजिए- शांति और सच्चाई का। तभी दीवाली का असली अर्थ पूरा होगा क्योंकि घर तो हर साल चमकता है, पर दिल तब जगमगाता है, जब उसमें प्रेम और सच्चाई की लौ जलती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
दीवाली सिर्फ़ घर की सफ़ाई का त्यौहार नहीं, बल्कि आत्मा की रोशनी का पर्व है। इस दीवाली, अपने घर को ही नहीं, अपने दिल को भी साफ़ करें। शिकायतों की धूल झाड़ें, नफ़रत के जाले हटाएँ, और माफ़ी के दीप जलाएँ। तभी हमारा घर ही नहीं, बल्कि हमारा जीवन भी सच में दीपावली जैसा जगमगा उठेगा।
घर की सफ़ाई तो केवल बाहरी उजाला लाती है, पर
मन की सफ़ाई आत्मा का दीपक जलाती है। इसलिए इस दिवाली अपने दिल को भी रोशन करें। अपने दिल से नकारात्मक विचारों को निकाल दें, क्षमा करें और ख़ुद को हल्का महसूस करें। कृतज्ञता का दीप जलाएं, ध्यान और मौन का अभ्यास करें, स्वयं के प्रति ईमानदार रहते हुए रिश्तों में मिठास लाएं। तभी सही मायने में दिवाली का त्यौहार सार्थक हो सकेगा।
(- By Alok Khobragade)
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