क्या आपके दुःख व्हाट्सअप स्टेटस में डालने से कम हो जाते हैं? | व्हाट्सएप स्टेटस पर अपने दुखों का बखान करना कितना सही कितना ग़लत?
अपना मोबाइल फ़ोन उठाकर अपने परिचितों के व्हाट्सअप स्टेटस देखना किसी रोमांच से कम नहीं होता। ख़ासकर तब, जब आप व्हाट्सएप चलाने की तलब रखते हों। और अगर आप ख़ुद भी व्हाट्सएप स्टेटस लगाने का शौक़ फरमाते हों तब तो ये मज़ा दुगुना हो जाता है। फ़िर तो आप पूरे 24 घंटे इस जद्दोजहद में लग जाते हो कि आपका स्टेटस उस इंसान तक पहुंच जाए जिसके लिए ख़ास तौर पर आपने लगाया है। क्यूं, सही कहा न मैंने!!
दोस्तों मैं आलोक खोब्रागड़े, आज मोबाइल के एक ऐसे फीचर के बारे में बात करने वाला हूँ। जिसके चमत्कारिक प्रभाव से आप भी परिचित होंगे। जी हां दोस्तों बिल्कुल सही समझा आपने। मैं व्हाट्सअप स्टेटस (whatsapp status) के बढ़ रहे अदभुत चलन की बात कर रहा हूँ। दोस्तों इस लेख के अंत तक बने रहिएगा, मुझे यक़ीन है आप पढ़कर सोचने पर मजबूर हो जाएंगे।
आज की जीवनशैली पर डिजिटल प्रभाव देखते ही बनता है। जहां हर भावना, हर घटना और हर रिश्ता सोशल मीडिया यानि कि मोबाइल की स्क्रीन पर आकर सिमट गया है। आप इस बात से कतई इंकार नहीं कर सकते कि आज के दौर में इंसान की ज़िंदगी का सबसे बड़ा आईना उसका व्हाट्सएप स्टेटस बन चुका है। अपनी ख़ुशी को शेयर करना कुछ हद तक तो ठीक है। मगर अपने निजी दुखों को स्टेटस पर साझा करना क्या पूरी तरह सही और सुरक्षित है?
पहले लोग अपने सुख-दुख कुछ ख़ास दोस्तों से बैठकर साझा करते थे, लेकिन अब वही बातें 24 घंटे के लिए एक छोटे से स्क्रीन पर लटका दी जाती हैं। कभी ग़ज़ल बनकर, कभी टूटे दिल के शेर बनकर, कभी कड़वे तंज बनकर, तो कभी ज़िंदगी की शिक़ायतें बनकर, तो कभी किसी टूटी हुई इमोजी बनकर। सवाल यही है कि क्या सच में अपने दुखों को व्हाट्सएप स्टेटस पर दिखाना ज़रूरी है? या इस तरह का डिजिटल प्रदर्शन हमारी भावनात्मक कमज़ोरी बन कर रह गया है।
आख़िर अपनी निजी ज़िंदगी के दुखों को सारी दुनिया से शेयर करने की इतनी होड़ क्यूं? ऐसा लगता है मानो हम सब कोई बड़े कवि हैं और व्हाट्सअप एक महान मंच है जहां हमें अपने दुखों का बखान, दूसरों तक पहुंचाने के लिए करना पड़ता है। और तो और इस व्हाट्सअप मंच पर आकर अपने निजी मसलों को सबके सामने रखना ज़रूरी होता है। बल्कि मैं ये कहूं कि आप दुःखी हैं इस बात की ख़बर आपके घर में नहीं हो पाती, लेकिन बाहर वालों के लिए आप की समस्या 24 घंटे के लिए चर्चा का विषय बन जाती है।
लेकिन ज़रा सोचिए कि क्या ऐसा करने से कोई हल निकलता है? अक़्सर यही होता है कि जो लोग हमारे स्टेटस देखते हैं, उनमें से आधे तो सिर्फ़ “जिज्ञासा” के लिए देखते हैं, कुछ “गॉसिप” के लिए, और कुछ तो केवल इसलिए ताकि बाद में किसी को बता सकें कि "फलां का स्टेटस देखा क्या, लगता है उसके दिन ख़राब चल रहें है।" यानि कि हमारा दर्द किसी के समझे जाने, या सहानुभूति पाने के बजाय, लोगों के बीच “चर्चा” का विषय बन जाता है।
आइए इस लेख के माध्यम से चर्चा को आगे बढ़ाते हैं और कुछ बिंदुओं के माध्यम से व्हाट्सएप स्टेटस (whatsapp status) से जुड़े कुछ ख़ास पहलुओं पर नज़र डालते हैं।
1. भावनाओं की नई भाषा :
कुछ लोगों का कहना है कि कई बार मन इतना भारी सा हो जाता है कि हमें किसी से कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं होती। ऐसी स्थिति में व्हाट्सएप स्टेटस एक “भावनात्मक वेंटिलेशन” बन जाता है। यानि कि एक ऐसा ज़रिया जिससे व्यक्ति बिना कुछ कहे, अपने दर्द को बाहर निकाल फेंकता है। किसी से कुछ कहना नहीं पड़ता, बस कुछ शब्द टाइप कर देने से मन को थोड़ी राहत मिल जाती है। आधुनिक युग में शायद इसे ही साइलेंट क्राई (Silent Cry) का नाम दिया जाता है। जहाँ इंसान बोलता कम है, और दिखाता ज़्यादा है।
लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि इस तरह अपने दर्द को व्हाट्सएप स्टेटस पर डाल देने से आपका दर्द कम नहीं, बल्कि आपका तमाशा ज़रूर बन जाता है।इससे अच्छा क्या ये नहीं हो सकता, कि आप घर के बुजुर्ग या किसी भरोसेमंद व्यक्ति, या किसी ख़ास दोस्त से मिलकर या फ़ोन पर बात कर लें। या ख़ुद को कुछ देर के लिए अकेला रखकर आत्ममंथन कर लें। या पास ही किसी मंदिर, मस्जिद, या गुरुद्वारे में जाकर अपना मन हल्का कर लें। या कुछ देर मेडिटेशन ही कर लें। क्योंकि कुछ समय बीत जाने के बाद आपके मन में सामान्य विचार आने लगेंगे।
2. दिखावा या दिल का बोझ हल्का करना :
हमसे से कुछ लोगों का मत है कि अपने दुखों को स्टेटस पर शेयर करना सिर्फ़ दिखावा नहीं है। असल में यह अपने दिल का बोझ हल्का करने का एक तरीक़ा है। जब किसी से अपनी बात खुलकर कहना मुमकिन न हो, तो Whatsapp स्टेट्स के ज़रिए अपने मन की बात कह देना बड़ा आसान सा लगता है। शायद ऐसा करना उनके लिए किसी तरह की आत्मिक राहत जैसा होता होगा। शायद किसी मनोवैज्ञानिक “सेफ स्पेस” जैसा।
लेकिन इसमें एक बड़ी समस्या है कि यह राहत अस्थायी है। अगले 24 घंटों में ही स्टेटस गायब हो जाता है, और आपके भीतर का दर्द वहीं का वहीं रह जाता है। साथ ही एक सवाल भी देकर जाता है कि क्या लोग आपके इस दुःख को समझ पाएंगे? क्योंकि यह एक कड़वा सच है कि "आपकी समस्या को आपसे बेहतर कोई नहीं समझ सकता।"
एक बात गांठ बांध लीजिए कि अगर लोगों के दुःख व्हाट्सएप स्टेटस से मिट जय करते, तो दुनिया में डिप्रेशन और अकेलापन कभी होता ही नहीं। असली सुकून अपनों से बात करने, ख़ुद को समझने और ख़ुद से समझौता करने में है। न कि पंक्तियों और इमोजी से दिखाने में।
3. समाज की संवेदनहीनता का शिकार होना :
आजकल लोग, दूसरों के दर्द को समझकर उसे पर्सनल रखने के बजाय, स्क्रीनशॉट लेकर और भी ज़्यादा शेयर करने में दिलचस्पी लेते हैं। सीधे सीधे कहा जाए तो, लोग दूसरों के दुखों से खुश होते हैं और आपके हालातों को एक नया मसाला बनाकर लोगों में परोसने लगते हैं। आज के दौर की ये आम समस्या कही जा सकती है। दूसरों के प्रति संवेदनाएँ अब केवल इमोजी या फ़िर "Seen" लिखे नीले टिक तक ही सिमटकर रह गई हैं।
आज के दौर में अपने दुःख को सोशल मीडिया पर आम करते समय हम यह भूल जाते हैं कि सोशल मीडिया पर हर कोई अपनी ज़िंदगी का “फिल्टर किया हुआ” हिस्सा दिखाता है। जब हम अपने दुःख दिखाते हैं और दूसरों की ख़ुशी देखते हैं, तो हमें लगता है कि सिर्फ़ हम ही दुखी हैं। यह तुलना और असंतुलन हमें भीतर से तोड़ देता है।
4. हर दर्द को सार्वजनिक करना सही नहीं :
व्हाट्सएप स्टेटस की सबसे बड़ी समस्या है निजता का खोना। ज़रा सोचिए जब हम अपने दुखों को सबके सामने रख देते हैं, तो हम ख़ुद अपने निजी पलों को दूसरों की राय और व्याख्या के हवाले कर देते हैं। फ़िर चाहे कोई हंसे या समझे। ये समझिए कि हम ख़ुद को दूसरों के नियंत्रण में सौंप देते हैं। हमेशा याद रखिए कि कभी-कभी चुप रहना, ज़्यादा फ़ायदेमंद साबित होता है। क्योंकि अपना हर दर्द दुनिया को बताने से हल्का नहीं होता, बल्कि कभी-कभी और भी गहरा हो जाता है।
सोशल मीडिया एक ऐसा खुला मैदान है जहां देखने वाले सब हैं, लेकिन समझने वाले बहुत कम। कभी-कभी हमारे दुखों का इस्तेमाल ही हमारे ख़िलाफ़ हो जाता है। कोई उसे मज़ाक में उड़ा देता है, कोई उस पर टिप्पणी कर देता है। परिणाम यह होता है कि हमने जिस राहत के लिए व्हाट्सएप स्टेटस पर साझा करते हैं। वही हमारे दर्द का बड़ा कारण बन जाता है।इसलिए अपनी भावनाओं को बात-बात पर साझा करने से बेहतर है ख़ुद पर संतुलन बनाए रखना।
5. विश्वास की जड़े कमज़ोर होना :
व्हाट्सएप स्टेटस पर अपने दुखों को दिखाने का शौक कभी-कभी हमारे निजी रिश्तों में भी दरारें पैदा कर देता है। परिवार और दोस्तों को लगता है कि यह व्यक्ति अपने व्यक्तिगत मुद्दे कभी भी सार्वजनिक कर देता है। जिस कारण आपसी विश्वास की दीवार कमज़ोर पड़ने लगती है। इसलिए आज के दौर में यह समझना बेहद ज़रूरी है कि हर भावना “सार्वजनिक प्रदर्शन” के लिए नहीं होती। कुछ बातें सिर्फ़ दिल में ही अच्छी लगती हैं, डिजिटल दीवारों पर नहीं।
इस दुनियां में सभी के जीवन में कोई न कोई दुःख ज़रूर है। लेकिन यह ज़रूरी तो नहीं कि हर दर्द का गवाह दुनिया बने। कभी-कभी ख़ामोशी भी बहुत कुछ कह जाती है। आज के दौर में ज़रूरत है आत्मसंयम की। अगर दर्द है, तो किसी भरोसेमंद व्यक्ति या किसी क़रीबी को कॉल करें। कहीं टहलें, संगीत सुनें, या चुप रहकर ख़ुद को समझें। लेकिन यह कदापि न भूलें कि “व्हाट्सएप स्टेटस” सहानुभूति नहीं, केवल 24 घंटे की झूठी तसल्ली देता है। बल्कि कभी-कभी आपकी बेचैनी को कई दिनों के लिए और भी बढ़ा देता है।
6. सच्चे रिश्तों के लिए स्टेटस नहीं, संवेदना ज़रूरी :
व्हाट्सएप स्टेटस पर अपना दर्द परोसने के बाद आपकी उम्मीद बढ़ जाती है कि कोई आपसे पूछे- क्या हुआ?”, “क्यों दुखी हो?”, “सब ठीक तो है न?” इस तरह आपका स्टेटस सबके बीच "ध्यान आकर्षण” का माध्यम बन जाता है। लेकिन जब कोई नहीं पूछता, तब आपका यही दुःख और भी गहरा हो जाता है। आपकी यही उम्मीद आपके लिए सबसे बड़ी परेशानी बन जाती है। मनुष्य को हमेशा सुनने वाला चाहिए, देखने वाला नहीं। और व्हाट्सएप पर सब देखते तो हैं, पर सुनता कोई नहीं।
सच्चे दोस्त या अपने लोग वो नहीं होते जो आपका दुःख स्टेटस पर देखते ही “Take care” लिखकर अपना पल्ला झाड़ लें। बल्कि वो होते हैं जो आपसे मिलकर आपके दुःख को महसूस करें। रिश्तों की असली ख़ूबसूरती तब होती है जब दर्द बांटने के लिए स्टेटस की ज़रूरत न पड़े। बल्कि आपके पास आपके अपने हों जो आपका ध्यान रख सकें और ज़रूरत पड़ने पर आपकी सोच को सकारात्मक भी कर सकें।
असली ताक़त तो तब है जब हम अपने दुखों को संभालें, उन्हें समझें और उनसे सीखें। अपने दुःख को फ़ौरन व्हाट्सएप स्टेटस पर दिखाने से कहीं ज़्यादा उस परिस्थिति में जीना ज़रूरी है। हर दर्द का एक मक़सद होता है। वह हमें कुछ सिखाता है, हमें फ़िर से उठ खड़े होने का तजुर्बा देता है। पर ये सब तभी संभव है जब हम उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के बजाय, ख़ुद को ख़ुद में झांकने का मौका दें।
निष्कर्ष (Conclusion)
अपने दुखों को व्हाट्सएप स्टेटस पर दिखाना ज़रूरी नहीं है। ज़रूरी यह है कि आप अपने मन का बोझ सही जगह उतारें। स्टेटस पर लिखे शब्द आपके दर्द का प्रमाण नहीं, बल्कि आपकी भावनात्मक असुरक्षा का इशारा बन सकते हैं। भावनाओं को व्यक्त करना अच्छा है, लेकिन विवेक के साथ। याद रखें, सोशल मीडिया सहानुभूति का नहीं, सूचना का माध्यम है। इसलिए अपने दुखों को सोशल मीडिया पर नहीं, बल्कि अपने भीतर संभालिए।
और हां, अंत में एक ख़ास बात मैं ऐसे व्हाट्सएप प्रेमियों के लिए कहना चाहता हूं जो अपने दुखड़े, स्टेटस पर किसी ख़ास व्यक्ति के लिए लगाकर ट्रेंड को फॉलो करते हैं। यदि आप किसी से नाराज़ हैं या आपका ब्रेकअप हो चुका है। या कोई आपकी परवाह नहीं कर रहा है जिस कारण आप उससे दूर रहना चाह रहे हैं।
फ़िर स्टेटस पर अपना दुखड़ा डालकर, उसे ही दिखाना कहां की समझदारी है। फ़िर तो उसे और भी मज़ा आने वाला है ये सोचकर कि "आप तो उसके बिना ख़ुश रह ही नहीं सकते, बल्कि आप उसे और भी ज़्यादा याद कर रहे हैं।" अब आप ही बताइए कि दुःखी कौन हुआ? वो या आप? इसलिए व्हाट्सएप स्टेटस पर इस तरह ख़ुद का मज़ाक बनाकर अपनी वेल्यू घटाना, क्या सही है?
दोस्तों आपका मन ठीक नहीं, दिल भारी सा लग रहा है। तो व्हाट्सएप स्टेटस पर नहीं, किसी भरोसेमंद इंसान से बात कीजिए। अपने घर के बड़ों से सलाह लीजिए। संगीत सुनिए, ध्यान लगाइए, योग कीजिए, कहीं घूमने जाइए या अपने किसी मनपसंद काम (hobby) में मन लगाइए। भावनाओं को व्यक्त करना कतई ग़लत नहीं, लेकिन उसका सही माध्यम चुनना ज़्यादा महत्वपूर्ण है।
सोशल मीडिया के शोरगुल में असली सहानुभूति कई बार कहीं खो जाती है। वक़्त रहते सम्भल जाइए। अपने निजी जीवन की ज़रा-ज़रा सी बातों को व्हाट्सएप स्टेटस पर टांगने से पहले अपने विवेक का इस्तेमाल ज़रूर करिए। सावधान रहिए, स्वस्थ रहिए और ख़ुद के साथ-साथ दूसरों को भी व्हाट्सएप की दुनिया से सावधान करिए। तो चलिए फ़टाफ़ट इस लेख को अपने दोस्तों से शेयर करिए।
(- By Alok Khobragade)
अन्य आर्टिकल्स भी पढ़ें :