ख़ुश होने और ख़ुशी मिलने में क्या अंतर है? | जीवन में ख़ुशी के असली मायने क्या हैं?
दोस्तों आज की बेहद व्यस्त और भागदौड़ भरी दुनिया में हर व्यक्ति कुछ पाने या कुछ बनने के लिए भागा जा रहा है, शायद आप भी बेतहाशा भागे जा रहे हैं, कुछ पाने के लिए ताकि उसे पाने के बाद आप जी भरकर ख़ुश हो सकें। और ऐसा करना कुछ ग़लत भी नहीं है। बल्कि सोचने वाली बात तो यह है कि हो सकता है इसके लिए आपने कोई क़सम खा रखी हो कि आपको तब तक ख़ुश नहीं होना है जब तक वो ख़ास चीज़ आपको मिल नहीं जाती।
हो सकता है आपकी वो ख़ास चीज़ कोई नौकरी हो, कोई ख़ास बिज़नेस हो। कोई महंगा सा घर हो, या कोई महंगी कार हो, या कोई ख़ास व्यक्ति (लड़का/लड़की) हो जिसके साथ आप विवाह के बंधन में बंधकर बेहद ख़ुश हो जाएंगे। दोस्तों हो सकता है आपको हमारी ये बातें अनर्थक लग रही हों। बस आप इस लेख के अंत तक बने रहिए, हमें यक़ीन है आपके लिए यह लेख दिलचस्प होने वाला है। तो चलिए चर्चा को आगे बढ़ाते हैं।
अब ज़रा एक बार अपने आस पास रह रहे ऐसे लोगों की लाइफस्टाइल पर थोड़ा सा रिसर्च करिए, जिन्हें देखकर आपको लगता है कि आपको अगर वो सब मिल जाए तो आपका जीवन अपार ख़ुशियों से भर जाएगा। फ़िर आपको कोई भी चीज़ कभी निराश नहीं कर पाएगी। मुझे लगता है आपकी रिसर्च कुछ अलग ही कहानी कहने वाली है। मतलब, आप तब भी ख़ुश नहीं रह पाएंगे। क्योंकि वो लोग भी अपनी ज़िंदगी से पूरी तरह ख़ुश नहीं हैं।
दरअसल जिसे नौकरी है वो अपनी आज़ादी छिन जाने से दुःखी है, बिज़नेसमेन दिन रात की मेहनत और मार्केट की प्रतियोगिता से दुःखी है। जिसने अपनी मनपसंद कार ले ली है, अब वो इसलिए दुःखी है क्योंकि पड़ोस में उससे भी महंगी कार आ चुकी है। और जिन्होंने अपनी पसंद से विवाह किया था, अब वो एक दूसरे से दुःखी हैं। क्योंकि अब उन्हें बाक़ी सभी की परवाह है लेकिन एक दूसरे की कोई परवाह नहीं। हमारे कहने का अर्थ यह है कि हमारी जिंदगी पूरी तरह परफैक्ट कभी नहीं हो सकती, कुछ न कुछ कमी ज़रूर रह ही जाती है। जिस कारण आप ख़ुशी से महरूम रह जाते हैं।
ख़ुश होने के लिए आपके जीवन में बाहरी परिस्थितियों का सही होना उतना ज़रूरी नहीं, जितना कि अंदर का दृष्टिकोण सही होना ज़रूरी है।
दोस्तों मनुष्य का जीवन भावनाओं से भरा समुंदर है। जहां कभी मन की लहरें ऊँची उठती हैं तो कभी शांत हो जाती हैं। इन्हीं भावनाओं में सबसे प्यारी भावना है “ख़ुशी”। लेकिन क्या आप “ख़ुश होने” और “ख़ुशी मिलने” के असली अर्थ से वाक़िफ़ हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि आप इन दोनों शब्दों को एक जैसा ही मानते हैं। लेकिन सही मायने में देखा जाए तो दोनों के बीच गहरा अंतर है। और यह अंतर सिर्फ़ शब्दों का नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन का है। आइए हम "ख़ुश होना" और "ख़ुशी मिलना" दोनों के बीच के असली अंतर को समझने का प्रयास करते हैं।
ख़ुश होना – अपने भीतर की अवस्था
“खुश होना” एक अंदरूनी अनुभव है। यह हमारी सोच, दृष्टिकोण और जीवन के प्रति हमारे रवैये पर निर्भर करता है। दरअसल ख़ुश होना किसी बाहरी वस्तु या व्यक्ति पर नहीं टिका होता, बल्कि यह हमारे भीतर की मानसिक स्थिति से उत्पन्न होता है। जब हम अपने भीतर संतोष, कृतज्ञता और स्वीकार्यता की भावना को विकसित कर लेते हैं, तब हम हर तरह की परिस्थितियों में सहज ही ख़ुश रहना सीख जाते हैं।उदाहरण के तौर पर, किसी व्यक्ति को सुबह-सुबह चाय के साथ उसके मनपसंद पकोड़े मिल जाना। और ख़ूबसूरत सूर्योदय को देखते हुए सर्व करना। उसका तो मानो दिन ही बन जाता है। इसे ही 'ख़ुश होना' कहते हैं। क्योंकि उस व्यक्ति ने अपने दैनिक जीवन में छोटे छोटे इन्हीं ख़ूबसूरत पलों में ही आनंद लेना सीख लिया है। और यह ख़ुशी उसने भीतर से महसूस किया, ना कि बाहर से। हम यक़ीन से कह सकते हैं कि यही छोटी छोटी खुशियां उसे भविष्य में उसके लक्ष्य को पाने के लिए ज़रूर सहयोग करेंगी।
ख़ुश होना एक आदत है, जिसे हम चाहें तो रोज़ाना अभ्यास करके ख़ुद विकसित कर सकते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो यह हमारी सोच की उपज कही जा सकती है। जैसे अगर हम किसी समस्या को अवसर की तरह देखना सीख लें, तो दुःख की घड़ी में भी हम कुछ न कुछ सीखकर अनुभव लेना शुरू कर देते हैं।
ख़ुशी मिलना – बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर
“ख़ुशी मिलना” किसी बाहरी स्रोत (कारणों) से जुड़ा होता है। असल में जब हमें कोई उपहार मिल जाता है, हमारी नौकरी में प्रमोशन मिल जाता है, या हम वर्षों से मन में पल हुआ कोई सपना (लक्ष्य) पूरा कर लेते हैं। तब हमें वो “ख़ुशी मिलती है”। आप अच्छी तरह जानते हैं कि हमें ये ख़ुशी परिस्थितियों की वजह से मिलती है। लेकिन इसका एक कड़वा सत्य यह है कि अक़्सर ये ख़ुशी क्षणिक होती है।ख़ुशी मिलने का अर्थ है, बाहरी कारणों से उत्पन्न सुख की अनुभूति प्राप्त करना। जैसे- परीक्षा में अच्छे अंक मिलने पर किसी छात्र का ख़ुश हो जाना, लेकिन अगली बार कम अंक मिलते ही उसकी सारी ख़ुशी का उदासी में बदल जाना। इसका मतलब है कि उसकी ख़ुशी स्थायी नहीं थी, बल्कि परिणामों पर निर्भर थी।
दोस्तों इस तरह की ख़ुशी हमें उत्साहित तो करती है, परंतु हमारी निजी ज़िंदगी में टिकती नहीं। क्योंकि बाहरी परिस्थितियाँ हमारे नियंत्रण में नहीं होतीं, बल्कि समय के साथ-साथ बदलती रहती हैं।
ख़ुश होना “मन की स्थिरता” है, जबकि ख़ुशी मिलना “क्षण की प्रसन्नता”। और जो व्यक्ति ख़ुश रहना सीख लेता है। उसे हर दिन, हर पल ज़िंदगी से नई ख़ुशियां अपने आप मिलने लगती हैं।
ख़ुशी मिलने की तलाश क्यों अधूरी रहती है?
हर व्यक्ति अक़्सर यह सोचता है कि अगर उसे अच्छी नौकरी मिल जाए, बड़ा सा घर हो, उसे मनचाहा जीवनसाथी मिल जाए या समाज में बड़ा नाम हो जाए, तब वो ख़ुश रहेगा। लेकिन जैसे ही उसे ये सब मिल जाता है, कुछ समय बाद उसके मन में फ़िर से नई इच्छाएँ जागना शुरू कर देती हैं।
असल में यह “ख़ुशी मिलने” का एक ऐसा जाल है, जो हमें बाहरी चीज़ों के पीछे भागने पर मजबूर करता है, पर कभी तृप्त नहीं होने देता। ख़ुशी मिलने की यह दौड़ हमें थका देती है, क्योंकि यह हमेशा “किसी और चीज़” की प्रतीक्षा में रहती है। जबकि ख़ुश होना वर्तमान क्षण को स्वीकार कर आनंद लेने का नाम है।
पानी का गिलास आधा भरा हो या आधा ख़ाली, क्या फ़र्क पड़ता है। अब आपका नज़रिया ही तय करेगा कि आपको आधा गिलास भरा देखकर ख़ुश होना है या आधा गिलास ख़ाली देखकर दुःखी। यानि कि जो व्यक्ति ख़ुद से ख़ुश रहना नहीं जानता, उसे किसी भी चीज़ से सच्ची ख़ुशी नहीं मिल सकती।
ख़ुश होने के लिए क्या ज़रूरी है?
ख़ुश रहने के लिए क्या ज़रूरी है (khush rahne ke liye kya zaruri hai?) यह जानने के लिए हमें निम्न बातों का अनुसरण करना चाहिए ताकि हम ख़ुश रहते हुए ज़िंदगी में आनंद महसूस कर सकें -
1. ख़ुद को स्वीकार करना -
सबसे पहले हमें ख़ुद को उसी रूप में स्वीकार करना आना चाहिए जिस रूप में हम असलियत में हैं। यानि कि हमें ख़ुद की अच्छाइयों के साथ साथ बुराइयां भी स्वीकार करना चाहिए।
2. कृतज्ञता की भावना -
पूरी ईमानदारी से ईश्वर को धन्यवाद करना कि इस दुनिया में अनेक ऐसे लोग भी हैं जिनके पास उतना भी नहीं है जितना आपके पास है। और वैसे भी हमें कितना कुछ मिला है। हम अपने परिवार के साथ स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। इतना भी कई लोगों को नसीब नहीं होता। कृतज्ञ व्यक्ति हमेशा संतुष्ट रहता है, क्योंकि उसे कमी नहीं, बल्कि उपलब्धि दिखाई देती है।
3. वर्तमान में ख़ुश रहना -
वर्तमान में ख़ुश रहने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण रखना अत्यंत आवश्यक है। जितना संभव हो सके हमें विपरीत परिस्थितियों में भी अवसर खोजने की आदत डालनी चाहिए। अक़्सर हम दुःखी या तो अतीत में उलझे रहने के कारण रहते हैं या भविष्य की अत्यधिक चिंता से दुःखी रहते हैं। सच तो यह है कि इस दुनिया में वही व्यक्ति ख़ुश रह सकता है जो वर्तमान में खुश रहना जानता है।
4. सकारात्मक सोच और दृष्टिकोण -
जीवन में कठिनाइयाँ तो आएँगी ही, पर जो व्यक्ति हर स्थिति में कुछ अच्छा देखने की आदत डालता है, वही सच्चा ख़ुशमिज़ाज होता है। सकारात्मक सोच न केवल मन को हल्का करती है, बल्कि आत्मविश्वास भी बढ़ाती है।
5. दूसरों से बार बार तुलना न करना -
अक़्सर आप दूसरों से ख़ुद की बार बार तुलना करने लगते हैं। और यही आदत आपकी मानसिक शांति छीन लेती है। इसलिए हर समय ख़ुद को दूसरों से तौलना ठीक नहीं। देखना ही है तो दूसरे के दुखों को देखिए, तब शायद पता चलेगा कि कुछ मामलों में आप उनसे ठीक हैं। याद रखिए, अपनी जीवन यात्रा को समझना ही असली बुद्धिमानी है।
6. ज़रूरत से ज़्यादा चिंता करना -
ज़्यादातर यही देखा जाता है कि हम अतीत की शिक़ायत और भविष्य की चिंता में ही दिन रात उलझे रहते हैं। इसी कश्मकश में हम आज में जीना ही भूल जाते हैं। जबकि जो कुछ भी है वर्तमान ही है। भूत को आप बदल नहीं सकते और भविष्य में क्या होगा इसकी कोई गारंटी नहीं। बल्कि आप भविष्य की नींव वर्तमान के आधार पर ही तैयार कर सकते हैं।
7. अपनी हॉबी के लिए समय निकालना -
जीवन की आपाधापी के बीच संतुलन बनाए रखना सचमुच मुश्किल काम होता है। इसके लिए आप अपनी किसी हॉबी (शौक़) पर भी ध्यान दे सकते हैं। क्योंकि यदि आप अपने किसी शौक़ के लिए टाइम निकालते हैं तो निश्चित तौर पर इससे आपको ख़ुश होने का अवसर मिलता है।
8. अपनों के लिए टाइम निकालना -
ख़ुश होने के लिए आपके पास एक और कारगर तरीक़ा यह है कि आप अपनों के लिए टाइम निकालें। क्योंकि आज के समय में रिश्तों में खटास होना एक आम समस्या बन चुकी है। इसलिए आप रिश्तों में आत्मीयता बनाए रखने का प्रयास करें, इससे आपको दिल से ख़ुश होने का बहाना मिलता रहेगा।
सच्ची खुशी अपनों से जुड़कर ही मिलती है। निर्जीव चीज़ों से नहीं। जब आप अपने परिवार, दोस्त, जीवनसाथी या ख़ास अपनों के लिए समय निकालकर थोड़ा सा ध्यान और स्नेह बरसाते हैं, तो आपके जीवन में गहराई और अर्थ आता है।
9. सेवा और योगदान -
सामान्यतः जब हम किसी की मदद करते हैं, किसी का दुःख हल्का करते हैं। तब हमारे दिल में वास्तविक सुख महसूस होता है। अपने सुना तो होगा कि “ख़ुशी बाँटने से बढ़ती है।” सचमुच ज़रूरत मंद को मदद करने से एक अलग ही ख़ुशी मिलती है जिसे शब्दों में बयां करना शायद आसान नहीं।
10. मन की शांति -
ध्यान, योग, संगीत, प्रार्थना या प्रकृति के साथ समय बिताना। ये सब मन को स्थिर करते हैं। मन शांत होगा तो छोटी-छोटी चीज़ों में भी आनंद मिलेगा।
ख़ुश होना आत्मनिर्भरता है
जब “ख़ुश होना” हमारी आदत में शामिल हो जाता है। तब हमारी ज़िंदगी में बड़ा ही चमत्कारी परिवर्तन आता है। दरअसल ख़ुश होने के लिए हम दूसरों पर निर्भर रहना छोड़ देते हैं। किसी से उम्मीद करना भी बंद कर देते हैं कि वो हमें ख़ुश करेंगे। बल्कि अपनी ख़ुशी के स्रोत (साधन) हम ख़ुद ही बन जाते हैं। आप चाहे तो इसे ही आत्मनिर्भरता का सर्वोच्च रूप मान सकते हैं।
ऐसे व्यक्ति को तब न कोई आलोचना तोड़ सकती है, न कोई परिस्थिति डरा सकती है। ख़ुश रहने वाला व्यक्ति समाज के लिए भी प्रेरणा बनता है। उसकी मुस्कान और तगड़ा आत्मविश्वास दूसरों में भी सकारात्मक ऊर्जा भर देता है। क्योंकि आप इसे भी नकार नहीं सकते कि यदि दुःखी होना आपकी आदत में है, तो आपकी जिंदगी में ख़ुश होने की हज़ार वजह ही क्यूं न हों, आप दुखी होने के लिए कोई भी एक वजह आख़िर ढूंढ ही लेते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
सामान्य तौर पर कहें तो "ख़ुशी मिलना" या न मिलना, जीवन की घटनाओं का हिस्सा है। ये आती है, चली जाती है। लेकिन “ख़ुश होना” एक स्थायी मानसिक अवस्था है, जो हमें हर परिस्थिति में सशक्त बनाए रखती है। हम चाहें तो दोनों को संतुलित कर सकते हैं। बाहरी सफलताओं से मिलने वाली ख़ुशी का आनंद ज़रूर लें, लेकिन इस बीच रोज़ाना की जिंदगी के कुछ खास पलों में मिलने वाली छोटी-छोटी ख़ुशियों में भी खुलकर जीना सीखें। यही छोटी छोटी खुशियों भरे पल, आपके लिए भविष्य में मिलने वाली बड़ी ख़ुशी का आधार बनते हैं।
क्योंकि सच्ची ख़ुशी मिलती नहीं, बनाई जाती है वो भी अपने भीतर, अपने दृष्टिकोण और अपने जीवन जीने के तरीक़े से। ख़ुशियां किन चीज़ों से मिलती हैं ये निर्भर करता है आप किन चीज़ों में ख़ुशी महसूस करते हैं। उदाहरण के लिए कोई बच्चा गुब्बारे ख़रीद कर ख़ुश होता है, तो दूसरा बच्चा उसी गुब्बारे को बेचकर ख़ुश होता है। यानि कि ख़ुश होने का कारण हर किसी के लिए एक जैसा नहीं होता है।
उम्मीद है आपको हमारा यह लेख "खुश होने और ख़ुशी मिलने में क्या फ़र्क है?" ज़रूर पसंद आया होगा। हम आशा करते हैं कि आप अपने जीवन में आने वाली हर परिस्थितियों में ख़ुद को संतुलित बनाए रखने का हुनर सीखेंगे। साथ ही दैनिक जीवन में आने वाले छोटे छोटे पलों में भी मिलने वाली ख़ुशियों का भरपूर लुत्फ़ उठाएंगे।
(- By Alok Khobragade)
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