दोस्तों आज का टॉपिक शायद आपको उन विशेष पलों को याद दिलाने या उन लम्हों को जीने का मौका देगा जो वक़्त की उधेड़बुन में कहीं धूमिल हो गए हैं या कहीं उलझ के रह गए हैं।
हम सभी ने अपने बचपन में या अपनी किशोरावस्था के आते-आते कुछ न कुछ स्वप्न अपनी आँखों में ज़रूर संजोया होगा। जो कि हर बच्चा हर युवा अपनी रुचि, अपनी इच्छा शक्ति के अनुरूप कोई न कोई दिवा स्वप्न ज़रूर देखता है। हम सभी जब सोचने समझने लायक हो जाते हैं, तब हमारी चेतना, धरती को छोड़कर आकाश में उड़ने लगती है।
अनंत आकाश में हिलोरें मारती सचमुच यह ऐसी उड़ान होती है जो अपार आनंद की अनुभूति देती हुई न जाने कितने सपनों को अंकुरित कर देती है।
अगर देखा जाए तो ये स्वप्न और इन सपनों को पूरा करने की हसरतें यूँ ही नहीं होतीं। ये हमें कहीं न कहीं इस बात का संकेत देती हैं कि अगर आपके स्वप्न, आपकी कोशिशें सच्ची हैं और आप उन्हें पाने के लिए जी जान लगा देते हो तो वह दिवास्वप्न एक दिन ज़रूर अपनी बुलंदियों को छूता है और अपने आप को गौरवान्वित महसूस करता है।
यदि आप कुछ महान भारतीयों की जीवन गाथा का अध्ययन करते हैं तो इस तरह के दिवास्वप्न का आपको प्रारंभ से अंत तक सत्य प्रतीत होने का आभास स्वतः ही होने लगता है। जैसे सुभाषचंद्र बोस जो बचपन में ही इतने गंभीर थे कि जब भी कोई गंभीर मुद्दा होता वो बगीचे में जाकर चुपचाप बैठकर उस विषय का समाधान निकालने की कार्य योजना बनाने लगते थे।
हमारे पूर्व राष्ट्रपति श्री ए. पी. जे. अब्दुल कलाम की इच्छा चिड़ियों को उड़ते हुए देखकर आकाश में उड़ान भरने की होती थी और अंततः वो अपने इस प्रयास में सफल भी हुए।
तुलसीदास जी ने जन्म लेते ही राम शब्द का उच्चारण किया था। अगर बात की जाए सूरदासजी की। तो इनकी तो बात ही निराली है। दृष्टि बाधित होते हुए भी इन्होंने श्री कृष्ण (कन्हैयाजी) का ऐसा बाल वर्णन किया हैं कि जिसे पढ़ते ही आँखों में कन्हैयाजी की छबि उमड़ जाए। इन्होंने अपने बालपन से केवल एक और एक ही कार्य किया। और वो है श्री कृष्ण कन्हैया जी के सम्पूर्ण जीवन का गुणगान।
जी हां!! इन सभी ने अपने बचपन के दिवा सपनों को पूरी तरह जीते और सच करते हुए अपनी कर्मभूमि का आह्वान किया। कुछ और महान हस्तियों की बात करें तो आपने विकासवाद के सिद्धांत के प्रवर्तक चार्ल्स डार्विन के बारे सुना या पढ़ा होगा। इनके माता-पिता जब इन्हें स्कूल भेजते थे तो ये स्कूल से ज़रूर थे लेकिन स्कूल छोड़कर जंगलों की तरफ अनजाने ही चले जाते थे। और वहाँ पेड़-पौधों और पक्षियों के साथ समय बिताते थे।
न्यूटन बचपन से ही गंभीर किन्तु दब्बू क़िस्म के बालक थे। उन्हें लड़ाई-झगड़े से बहुत डर लगता था। लेकिन उन्होंने ऐसी उपलब्धि हासिल की जिसे आज सारा विश्व सराह रहा है।
यदि हम इन सभी की आदतों को देखें जिन्हें हम केवल बाल स्वप्न या दिवास्वप्न कह सकते हैं। तो पाएंगे कि इन्होंने आगे चलकर अपने उन सपनों को पूरा भी किया। यह कहना अतिसंयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि इनकी आदतों में ही इनके कर्मों के बीज छिपे थे।
हम आम लोगों में और इनमें जो मूल अंतर था। वो ये था कि ये महान व्यक्ति अपने उन सपनों को लगातार संजोए हुए थे। और अपने सपनों को सच करने की राह में आगे लगातार बढ़ते हुए उन सपनों को उतनी ही तन्मयता से पालते-पोसते रहे। जो कि एक दिन सच भी हो गया।
वहीं हम आम लोग सपने तो देखते हैं लेकिन उन सपनों को पाने की राह में ज़रा सी भी मुश्किल आई तो तुरंत अपने सपने ही बदल देते हैं। यही सोचकर कि जाने दो। बस फ़िर क्या!! यूँ ही सवाल खड़े करते रहते हैं और निर्णय बदलते रहते हैं। परिणाम यह होता है कि हमारा अमूल्य समय जो किसी सपने को किसी लक्ष्य को पाने के लिए व्यतीत होना चाहिए था। वो बस योजना बनाने एवं बिगाड़ने में ही ख़र्च हो जाता है।
ये बात बिल्कुल अलग है कि आप जैसे कई युवा अपने लक्ष्य को निर्धारित करके अपने सपनों की मंज़िल को पाने के बहुत नज़दीक आ जाते हैं। जैसे कि कुछ विभिन्न प्रकार की परीक्षाओं को उत्तीर्ण कर चुके होते हैं। लेकिन जब उन परीक्षाओं का फल मिलने वाला होता है। तभी या तो भर्तियाँ कैंसिल हो जाती हैं या फ़िर कुछ चंद राजनैतिक पार्टियां, युवा वर्ग के बीच रोज़गार जैसे गंभीर विषय को अपनी कूटनीति का हिस्सा बना लेती हैं। और फ़िर प्रारंभ होता है फ़िर से एक नया संघर्ष।
लेकिन चिंता की कोई बात नहीं मित्रों। हर युग में, हर काल में मानव जाति के लिए ऐसी कोई न कोई विकट परिस्थिति आती है जो वैश्विक स्तर पर सबके लिए ही चिंताजनक होती है। बस बात इतनी है कि सभी देश इसे अपने-अपने सामंजस्य के अनुरूप या तो समस्या का समाधान निकाल लेते हैं या इसी के साथ जीने की कला सीख लेते हैं।
इसका तात्पर्य यह है कि कभी वक्त के सहारे बैठकर अपना समय बर्बाद न करो। वो कहते हैं ना कि "भगवान के भरोसे कभी न बैठो..! क्या पता भगवान ख़ुद तुम्हारे भरोसे बैठे हों..!" यानि कि क़िस्मत के भरोसे बैठना अच्छी बात नहीं। कहा भी जाता है कि क़िस्मत भी उसी का साथ देती है जो साहसी और होनहार हो।
अपने अंदर उस दिवास्वप्न को संजोते हुए ख़ुद को उस परिस्थिति के लिए भी तैयार करो जो स्वप्न के पूरे होने में विलंब होने पर आपको एक नई दिशा, एक नया मोड़ दे सके। आज की युवा पीढ़ी बड़ी ही जल्दी अवसादग्रस्त हो जाती है। अवसाद ग्रस्त हो जाने के कई कारण होते हैं जिन्हें आप भली भाँति जानते हैं। आज के समय में Exam, job, घर, Relationship आदि से related ऐसी अनेक चिंताओं से युवा पीढ़ी घिरी हुई है।
यक़ीन मानिए ये जो भूचाल आपकी लाइफ़ में आया है वो हर युवा के साथ अक़्सर इस दौर से गुज़रने पर होता है। बस आपको अपने मन को स्थिर रखते हुए अपनी ज़िंदगी में सामंजस्य बनाकर रखना होगा और इन्हीं समस्याओं से उबरकर एक नई इबारत लिखना होगा। कहा भी जाता है कि मेहनत इतनी ख़ामोशी से करिए कि सफ़लता ख़ुद ब ख़ुद एक दिन शोर मचा दे।
दोस्तों उम्मीद है आपको आज का हमारा यह लेख ज़रूर पसंद आया होगा। हम आशा करते हैं आप सभी आजकल की टेंशन भरी लाइफ़स्टाइल से ख़ुद को बचाने का प्रयास ज़रूर करते रहेंगे। साथ ही अच्छी आदतें, आत्मविश्वास और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बनाये रखेंगे।
- By Poonam
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