फ़ेसबुक या वॉट्सएप पर भगवानों के नाम पर फैलाए जाने वाले संदेशों को 10 या 20 लोगों को भेजने से कोई चमत्कार नहीं होता। ये संदेश न तो हमारी आस्था का मापदंड हैं, न ही ईश्वर की कृपा का माध्यम। ऐसे मैसेज समाज में केवल अंधविश्वास फैलाकर समाज को गुमराह करने का काम करते हैं।
दोस्तों आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया हमारी जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। वॉट्सएप, टेलीग्राम, इंस्टाग्राम और फ़ेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म्स का उपयोग अब केवल संवाद के लिए ही नहीं, बल्कि धार्मिक और आध्यात्मिक संदेशों के प्रचार प्रसार के लिए भी किया जा रहा है। हालांकि इसमें कोई बुराई नहीं है। धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में हर व्यक्ति को अपने अपने धर्म से जुड़े विचार रखने की पूर्ण स्वतंत्रता है।
लेकिन इस लेख में हम बात करने वाले है धार्मिक प्रचार के एक ऐसे तरीक़े के बारे में जिसे जानने के बाद शायद आप भी इस बात से सहमत होंगे कि यह तरीक़ा, धार्मिक मैसेज को पढ़ने वाले उस व्यक्ति को प्रेरित करने के बजाय, उसे मानसिक रूप से असहज स्थिति में डाल देता है।
Table of Contents :1.3. चमत्कार क्या है?
1. भगवान की तस्वीरें या भक्ति से जुड़े डरावने संदेशों को फॉरवर्ड करना कितना सही, कितना ग़लत
अक़्सर हम देखते हैं कि कुछ संदेशों में भगवान की तस्वीरें या भक्ति से जुड़े कोट्स होते हैं और अंत में लिखा होता है- "इस संदेश को 10 लोगों को भेजें, तो चमत्कार होगा, वर्ना आपके साथ बहुत बुरा होगा" या "अगर आपने इसे आगे नहीं भेजा तो आपके साथ बहुत बड़ी दुर्घटना हो सकती है।" ऐसे संदेशों को पढ़कर कई लोग डर, अंधविश्वास या उम्मीद के चलते उन्हें आगे बढ़ाने में लग जाते हैं। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा करना किसी चमत्कार को जन्म देता है?
ज़रा याद करने की कोशिश कीजिए। क्या आपके पास भी कभी इस तरह के मैसेज आए हैं? जिन्हें पढ़ने के बाद आप भी दुविधा में पड़ गए हों, कि अब तो इसे 10 या 20 लोगों को शेयर करना ही होगा वर्ना कहीं आपके साथ भी कोई अनहोनी न हो जाए। इस लेख में हम इस प्रश्न का विश्लेषण करेंगे कि क्या भगवानों के नाम पर सोशल मीडिया पर भेजे गए मैसेज से सच में कोई चमत्कार होता है या यह भी सिर्फ़ अंधविश्वास का एक और रूप है।
प्रश्न यह उठता है कि क्या भगवान को इस तरह के सन्देशों में साझा करना उचित है? क्या भगवान इन सब उपायों के लिए मोहताज हैं। यह एक ऐसा विचार है जो आस्था और अंधविश्वास के बीच की रेखा को धुंधला कर देता है। यह सवाल उठाता है कि "क्या वाकई भगवान का आशीर्वाद पाने के लिए हमें सोशल मीडिया पर संदेशों की, ऐसी डरावनी श्रृंखला चलाना ज़रूरी है?"
सबसे पहले, यह समझना आवश्यक है कि भगवान का संबंध हमारी आस्था, विश्वास और आत्मा से है। धार्मिकता का मूल उद्देश्य है आत्मिक शुद्धता, सेवा, सत्य और प्रेम का पालन करना। जब किसी ईश्वर की तस्वीर या नाम को इस उद्देश्य से साझा किया जाता है कि उससे किसी का कल्याण हो, तो वह भक्ति का रूप हो सकता है। परंतु जब उसी भगवान को भय, अंधविश्वास या दबाव का माध्यम बना दिया जाता है, तब यह न केवल धार्मिकता का अपमान है, बल्कि आस्था के नाम पर एक प्रकार की मानसिक ज़बरदस्ती भी कही जा सकती है।
1.1. धर्म और विश्वास का आधार
धर्म और आस्था व्यक्ति की आत्मा और चेतना से जुड़ी हुई चीज़ें हैं। भगवान पर विश्वास, उनकी पूजा, साधना, ध्यान या प्रार्थना एक आंतरिक प्रक्रिया होती है, जो आत्मिक शांति और नैतिकता की ओर व्यक्ति को अग्रसर करती है। किसी संदेश को फॉरवर्ड करना या न करना, इस आस्था का कोई भी मापदंड नहीं हो सकता।
धर्म और भक्ति का आधार सदैव ही आस्था, ईमानदारी और आचरण होना चाहिए, न कि इस तरह के फॉरवर्डेड मैसेज। भगवान चाहे कोई भी हों, वह किसी मैसेज को फॉरवर्ड करने की संख्या से प्रसन्न नहीं होते, बल्कि वे व्यक्ति की नीयत, कर्म और सत्य के प्रति समर्पण को देखते हैं। अगर ईश्वर सर्वशक्तिमान हैं, सर्वज्ञानी हैं, तो क्या वे किसी इंटरनेट मैसेज पर निर्भर होंगे यह तय करने के लिए कि किसे आशीर्वाद देना है और किसे नहीं? क्या वे किसी टेक्स्ट मैसेज की गिनती करके चमत्कार करते हैं?
1.2. सोशल मीडिया पर वायरल अंधविश्वास
आजकल वॉट्सएप या फ़ेसबुक पर अक़्सर इस प्रकार के संदेश देखने मिल जाते हैं। जैसे-
“यह भगवान गणेश का शुभ संदेश है। इसे 10 लोगों को भेजो, नहीं तो अनिष्ट होगा।”
“आज रात 12 बजे से पहले यह मैसेज 7 लोगों को भेजो, वरना अगले 7 दिन में बुरा समय आएगा।”
दरअसल ऐसे भ्रमित संदेशों की कोई धार्मिक या आध्यात्मिक वैधता नहीं होती है। यह केवल "चेन मैसेज" की एक साइकोलॉजिकल ट्रिक कही जा सकती है, जिसमें आम व्यक्ति के भय और आस्था का उपयोग करके उसे संदेश फैलाने के लिए प्रेरित (या यूं कहिए कि मजबूर) किया जाता है। सही मायने में इसे आप डिजिटल अंधविश्वास कह सकते हैं।
1.3. चमत्कार क्या है?
चमत्कार का अर्थ है किसी ऐसी घटना का घटित होना जो सामान्य समझ या विज्ञान के दायरे से परे हो। लेकिन भगवान का चमत्कार किसी मैसेज को फॉरवर्ड करने से नहीं होता है। चमत्कार यदि होते हैं, तो वे व्यक्ति की आस्था, मेहनत, सेवा और सच्ची भावना से होते हैं। सच्ची भक्ति में प्रेम होता है, डर नहीं। यदि कोई संदेश कहता है कि “अगर यह नहीं किया, तो आपके साथ अनिष्ट होगा,” तो वह भक्ति नहीं, बल्कि जन सामान्य में डर फैलाने की कोशिश है।
1.4. मानव, मनोविज्ञान और डर
जब कोई व्यक्ति ऐसे मैसेज पढ़ता है, जिसमें किसी चमत्कार या अनिष्ट होने का डर होता है, तो वह अक़्सर दो मानसिक अवस्थाओं से गुज़रता है-
भय– "अगर मैंने नहीं भेजा और कुछ बुरा हो गया तो?"
उम्मीद– "अगर भेज दिया तो शायद कुछ अच्छा हो जाए।"
यही दोनों अवस्थाएं व्यक्ति को तार्किक सोच से दूर कर देती हैं और वह बिना सोचे-समझे मैसेज फॉरवर्ड करने में जुट जाता है। यही कारण है कि इस तरह के 'चेन मैसेज' कम से कम समय में तेज़ी से फैलते हैं।
1.5. धार्मिक ग्रंथों में इसका कोई उल्लेख नहीं
किसी भी धार्मिक ग्रंथ में इस प्रकार की किसी परंपरा का उल्लेख नहीं है। चाहे वह भगवद गीता, रामायण, कुरान, बाइबिल या गुरु ग्रंथ साहिब ही क्यूं न हो। इनमें से किसी भी ग्रन्थ में यह नहीं कहा गया है कि भगवान का आशीर्वाद पाने के लिए किसी संदेश को 10, 20, 50 या 100 लोगों को फॉरवर्ड करना अनिवार्य है वर्ना कोई अनहोनी होगी।
सच कहा जाए तो धार्मिक शिक्षाएं हमें संयम, सेवा, दया, करुणा और सत्य पर चलने की प्रेरणा देती हैं, न कि इस तरह के भ्रमित और डरावने मैसेज फॉरवर्ड करने की प्रथा को बढ़ावा देती है। बल्कि इस तरह डर फैलाने की प्रवृत्ति, इंटरनेट और सोशल मीडिया पर ज़रूरत से ज़्यादा एक्टिव रहने वाले व्यक्तियों की मानसिकता की उपज कही जा सकती है।
1.6. वास्तविक भक्ति के रूप क्या है?
वास्तविक भक्ति को हम निम्न रूपों में देख सकते हैं-
प्रार्थना और ध्यान :
सच्चे मन से की गयी प्रार्थना और ध्यान, व्यक्ति के मन को शांत करता है और उसे ईश्वर से जोड़ता है।
सेवा और दान
ज़रूरतमंदों की सेवा करना, भूखे को खाना देना, असहाय की मदद करना। यही सच्चे अर्थों में धर्म और पुण्य है।
सत्कर्म और सच्चाई
जीवन में सत्य का मार्ग अपनाना, ग़लत कामों से बचना और दूसरों के लिए प्रेरणा बनना। ये वास्तविक धार्मिक जीवन के संकेत हैं।
1.7. तकनीकी और सामाजिक पक्ष
इस तरह के मैसेजों का एक और पहलू हो सकता है और वह है 'डिजिटल स्पैम'। आजकल ऐसे संदेश आपकी जानकारी या डेटा चुराने वाले लिंक के साथ भी भेजे जाते हैं। जैसे ही आप ऐसे मैसेज दूसरों को भेजते हैं, आपकी गोपनीयता या अन्य जानकारी लीक हो सकती है।
दरअसल स्पैम करने वाले शातिर लोग भक्ति भावना का सहारा लेकर इन मैसेजों से समाज में डर और भ्रम फैलाने का काम करते हैं। इनके ऐसे धार्मिकता भरे डरावने मेसेज देखकर, धार्मिक और विशेषकर वृद्ध लोग मानसिक तनाव में आ जाते हैं। जिसका सीधा सीधा फायदा इन स्पैम करने वालों को मिलता है।
1.8. समाज में जागरूकता की आवश्यकता
हमें समाज में जागरूकता फैलाने की ज़रूरत है कि धर्म का अर्थ अंधविश्वास नहीं है। विशेषकर युवाओं और बच्चों को यह समझाना चाहिए कि भगवान मैसेज से नहीं, आपके कर्मों से प्रसन्न होते हैं। क़िस्मत या भगवान भी उन्हीं का साथ देते हैं जिनमें सच्ची लगन और मेहनत करने का जज़्बा होता है।
स्कूलों, कॉलेजों और सोशल मीडिया पर डिजिटल साक्षरता अभियान के ज़रिए लोगों को सिखाया जाना चाहिए कि किस तरह के संदेशों को नज़रअंदाज़ करना चाहिए और किसे रिपोर्ट करना चाहिए।
2. नकारात्मक प्रभाव (Negative Effects) :
इस तरह के संदेश फॉरवर्ड करने से सकारात्मक तो नहीं, बल्कि नकारात्मक परिणाम देखने मिल सकते हैं -
डर और भ्रम का माहौल -
इस तरह के संदेश कई बार लोगों में डर और भ्रम का माहौल पैदा करते हैं। जब संदेश में लिखा होता है कि यदि आपने इसे आगे नहीं भेजा तो दुर्भाग्य आएगा, तो यह स्पष्ट रूप से मानसिक दबाव बनाता है। यह डर का एक मनोवैज्ञानिक जाल है, जिससे लोग मजबूर होकर संदेश आगे भेज देते हैं। यह धार्मिक भावना का दुरुपयोग है। भगवान हमें डर से नहीं, प्रेम से पूजा करने की प्रेरणा देते हैं।
व्यक्तिगत जानकारी का दुरुपयोग -
कई बार इस तरह के मैसेज स्कैम और फर्जी जानकारी फैलाने का ज़रिया भी होते हैं। साइबर अपराधी इन मैसेजों के ज़रिए लोगों की भावनाओं के साथ खेलते हैं और कई बार लिंक भेजकर व्यक्तिगत जानकारी चुराने का प्रयास करते हैं। इसलिए ऐसे संदेशों को सोच-समझकर देखना चाहिए। और बिना पुष्टि किए आगे नहीं भेजना चाहिए।
आस्था और श्रद्धा का मज़ाक -
भगवान के नाम पर डर फैलाना या लोगों को मजबूर करना कि "ये मैसेज 10 लोगों को भेजो वरना अशुभ होगा", ये आस्था का अपमान है। सच्ची श्रद्धा दिल से होती है, न कि फॉरवर्ड मैसेज से। ऐसे मैसेज पढ़ने के बाद व्यक्ति की आस्था जुड़े न जुड़े, बल्कि वह घबराया हुआ सा ज़रूर महसूस करता है। जो कि एक मज़ाक (prank) की तरह प्रतीत होता है।
अंधविश्वास तथा अफ़वाहों का फैलना -
एक बात हमेशा याद रखना चाहिए कि इस तरह के मैसेज केवल अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं। भगवान या कोई भी धर्म हमें विवेक, प्रेम और सेवा की शिक्षा देते हैं वे—not fear या blind forwarding.
आपसी रिश्तों में असहजता होना -
इस तरह के मैसेज पढ़कर पहले तो आप डरते हैं फ़िर डरकर अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को फॉरवर्ड करते हैं जिस कारण वे भी आपके कारण डरा हुआ महसूस करते हैं। परिमाण यह होता है कि वे आपके मैसेज पढ़ने से कतराते हैं। और भविष्य में आपके साथ कम्युनिकेशन रखना पसंद नहीं करते हैं।
फ़र्ज़ी स्कैम होने की संभावना -
आजकल वॉट्सएप, टेलीग्राम, इंस्टाग्राम, फ़ेसबुक जैसे सोशल प्लेटफॉर्म पर अनेक ऐसे चित्र या संदेश, ख़तरनाक कोड के साथ भेजे जाते हैं। जिन्हें खोलकर देखना या दूसरों को फॉरवर्ड करना, किसी बड़ी परेशानी में डालने का कारण बन सकते हैं। ये अपराधी आपके इमोशन का फ़ायदा उठाकर अपने कृत्य को अंजाम देते हैं। और आपके बैंक एकाउंट से पैसे निकाल लेते हैं। इसलिए धर्म से जुड़े संदेशों को भी बिना फॉरवर्ड या खोलकर देखना ख़तरनाक साबित हो सकता।
3. क्या करना सही हो सकता है?
यदि आप किसी धार्मिक विचार या भक्ति संदेश को साझा करना चाहते हैं, तो उसे प्रेमपूर्वक, पूर्ण श्रद्धा के साथ, सहज भाषा में साझा करें। ध्यान रखें कि आपके विचारों से किसी की भावना को ठेस न पहुंचे। और ना हि किसी प्रकार का डरावना माहौल उत्पन्न हो।
आपके विचार यदि प्रभावशील होंगे तो प्रत्येक व्यक्ति स्वयं ही उन विचारों को साझा करने की कोशिश करेगा। चाहे फ़िर वह व्यक्तिगत रूप से हो या सोशल मीडिया के माध्यम से हो।
सच्चा चमत्कार वही होता है जो हमारे अच्छे कर्मों, सच्ची श्रद्धा और दूसरों की सेवा से जन्म लेता है। ईश्वर हमें हमारी नीयत और कार्यों के आधार पर आशीर्वाद देते हैं, न कि इंटरनेट पर भेजे गए संदेशों के आधार पर।
इसलिए अगली बार जब कोई आपको कहे कि “यह मैसेज 10 लोगों को भेजो नहीं तो…”, तो उसे मुस्कुराकर पढ़ें, डिलीट करें, और याद रखें कि भगवान आपके दिल में हैं, न कि फॉरवर्ड किए गए मैसेजों में।
Disclaimer : यह लेख किसी धर्म, संप्रदाय या व्यक्ति विशेष की भावनाओं को आहत पहुंचाने के उद्देश्य से नहीं लिखा गया है। बल्कि हमने आम लोगों की दिनचर्या में देखी जाने वाली एक आम समस्या और उसके समाधान से जुड़ी बातें साझा करने का प्रयास किया है।
4. निष्कर्ष (Conclusion)
भगवानों से जुड़े किसी भी विचार को व्हाट्सएप या फेसबुक ग्रुप में साझा करने का उद्देश्य यदि श्रद्धा और भक्ति है, तो वह एक व्यक्तिगत अभिव्यक्ति हो सकती है, जिसे साझा करना पूर्णतः वैकल्पिक और निजी निर्णय होना चाहिए। परंतु जब इसमें यह लिखा जाता है कि "यदि आपने अन्य लोगों को नहीं भेजा तो आपके साथ कुछ अशुभ होगा," तो यह न केवल अंधविश्वास को बढ़ावा देता है, बल्कि धार्मिक भावनाओं को सीधे तौर पर ठेस भी पहुंचाता है।
दोस्तों इस प्रकार के संदेश कहीं न कहीं लोगों के डर और मानसिक असुरक्षा का फ़ायदा उठाते हैं। भगवान भय का नहीं, बल्कि प्रेम, करुणा और विश्वास का प्रतीक हैं। क्या वास्तव में भगवान किसी को केवल इसलिए कष्ट देंगे क्योंकि उसने एक मैसेज आगे नहीं भेजा? यह सोच भगवान के सच्चे स्वरूप का अपमान है। भगवान तो उस बालक की भी मदद करते हैं जो उनका नाम भी नहीं जानता, उस व्यक्ति को भी क्षमा करते हैं जो अनजाने में ग़लती कर बैठता है।
(- by Alok Khobragade)
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