वास्तविक दुनिया से काल्पनिक दुनिया में रहना अच्छा क्यों लगता है? Social media ke negative effects, Social media ke nuksan in hindi
दोस्तों आज के दौर में लोग वास्तविकता से कटकर एक काल्पनिक दुनिया में जी रहे हैं। सोशल मीडिया, वीडियो गेम्स, फ़िल्में, वेब सीरीज़, वर्चुअल रियलिटी और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स ने लोगों के दिमाग़ पर इतना गहरा असर डाला है कि अब वे अपनी असल ज़िंदगी से दूर होते नज़र आ रहे हैं।
लेकिन सवाल उठता है कि इसके लिए ज़िम्मेदार कौन है? क्या यह टेक्नोलॉजी का प्रभाव है, समाज की देन है, या व्यक्ति ख़ुद इसके लिए ज़िम्मेदार है? तो चलिए इस लेख के माध्यम से हम इस काल्पनिक दुनिया में फंसने के कारण, दुष्प्रभाव और इस पर नियंत्रण के उपायों पर चर्चा को आगे बढ़ाते हैं।
काल्पनिक दुनिया में फंसने के कारण (Kalpanik duniya mein fasne ke karan)
1. सोशल मीडिया और वर्चुअल लाइफ
आज के दौर में इंटरनेट और सोशल मीडिया ने एक ऐसी दुनिया बना दी है, जहां लोग वर्चुअल लाइफ़ में ज़्यादा समय बिताने लगे हैं। फेसबुक, इंस्टाग्राम, वीचैट, स्नेपचैट और यूटअब जैसे प्लेटफॉर्म हैं जहां पर लोग ख़ुद को दूसरों से बेहतर दिखाने की कोशिश में लगातार लगे रहते हैं। लोग अपने असली जीवन से ज
ज़्यादा, वर्चुअल लाइफ़ को महत्व देने लगते हैं, जिससे वे धीरे-धीरे काल्पनिक दुनिया में खो जाते हैं।
2. मनोरंजन के साधनों की अधिकता
गेमिंग इंडस्ट्री ने एक ऐसा माहौल बना दिया है, जहां लोग घंटों तक गेम्स खेलते रहते हैं और असली दुनिया से कट जाते हैं। वर्चुअल रियलिटी (VR) ने तो लोगों को एक पूरी तरह से नकली दुनिया में भेज दिया है, जहां वे अपनी इच्छाओं को पूरा होते देख सकते हैं, लेकिन असल में यह सिर्फ़ एक भ्रम होता है।
मनोरंजन की दुनिया में वेब सीरीज़ और फ़िल्मों ने लोगों की सोच पर गहरा प्रभाव डाला है। कई बार लोग अपने जीवन को किसी फ़िल्मी क़िरदार की तरह देखने लगते हैं और वास्तविकता से दूर हो जाते हैं।
3. असली चुनौतियों से बचने की प्रवृत्ति
कई बार व्यक्ति ख़ुद ही अपनी असली ज़िंदगी की कठिनाइयों से बचने के लिए आभासी दुनिया में चला जाता है। जहां वो ख़ुद को शक्तिशाली, सफ़ल और ख़ुशहाल महसूस करता है। यह वास्तविकता से भागने का एक तरीक़ा बन जाता है।
4. मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं
अवसाद (dipression), चिंता (anxiety) और अकेलापन (loneliness) भी लोगों को काल्पनिक दुनिया की ओर धकेलने का काम सकते हैं। मानसिक रूप से कमज़ोर व्यक्ति असली दुनिया के बजाय फैंटेसी वर्ल्ड में रहना ज़्यादा सुरक्षित समझने लगता है।
दरअसल जब व्यक्ति को असली दुनिया में भावनात्मक सहारा नहीं मिल पाता, तो वह अपनी इस काल्पनिक दुनिया में ख़ुशी और सुकून ढूंढता है।
5. परिवार व समाज से दूरी और व्यक्तिगत समस्याएं
अगर माता-पिता या परिवार वाले बच्चों को वक्त नहीं दे पाते हैं तो बच्चे और युवा, आभासी दुनिया में शरण लेने लगते हैं। वे सोशल मीडिया, गेम्स और फैंटेसी वर्ल्ड में खोने लगते हैं। और तो और आज का समाज भी सफलता को केवल पैसों और सोशल स्टेटस से आंकता है। इस दबाव में लोग अपनी असली पहचान खो बैठते हैं और ख़ुद को किसी नकली छवि में ढालने की कोशिश करने लगते हैं। सोशल मीडिया पर लाइक्स, फॉलोअर्स और कमेंट्स का खेल उन्हें मानसिक रूप से असुरक्षित बना देता है।
ज़ाहिर सी बात है कि जो लोग परिवार, समाज और दोस्तों से कटा हुआ महसूस करते हैं। तो ऐसे में वे वर्चुअल लाइफ़ में राहत पाने की कोशिश करते हैं। दोस्तों की कमी, रिश्तों में तनाव या असफलताओं के कारण लोग ऐसी जगह तलाशते हैं, जहां वे बिना किसी डर के अपनी पहचान बना सकें।
6. आत्म-नियंत्रण की कमी
अगर व्यक्ति ख़ुद पर नियंत्रण नहीं रख पाता और ज़रूरत से ज़्यादा समय डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर बिताने लगता है, तो यह ऐसे प्लेटफॉर्म का आदी हो जाता है। जिस कारण उसका अधिकतर टाइम सोशल मीडिया के ऐसे एप्लिकेशंस पर ही बीतने लगता है।
काल्पनिक दुनिया में फंसने के दुष्प्रभाव (kalpanik duniya mein fasne ke dushprabhav)
काल्पनिक दुनिया में फंसने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं -
1. वास्तविकता से अलगाव
लंबे समय तक आभासी दुनिया में रहने से व्यक्ति असली दुनिया से कट जाता है। उसकी सोच, भावनाएं और प्रतिक्रियाएं बदल जाती हैं, जिस कारण वह वास्तविक जीवन के संबंधों को गंभीरता से नहीं लेता।
2. मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर
अधिक समय तक स्क्रीन के सामने रहने से मानसिक तनाव, आंखों की समस्या, सिरदर्द, नींद की कमी और मोटापा जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं।
3. सामाजिक कौशल में कमी
अगर कोई व्यक्ति अधिक समय तक अपनी काल्पनिक दुनिया में ही खोया रहता है, तो उसकी सामाजिक कौशलता (Social Skills) कमज़ोर हो जाती है। वह असली दुनिया में लोगों से मिलने-जुलने और बातचीत करने में हिचकिचाने लगता है।
4. उत्पादकता में गिरावट
काल्पनिक दुनिया में फंसने वाले लोग अपने करियर, पढ़ाई और व्यक्तिगत विकास पर ध्यान नहीं दे पाते। इससे उनकी उत्पादकता घट जाती है और वे अपने लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाते।
6. अवसाद और चिड़चिड़ापन
सोशल मीडिया की आदत ज़्यादा होने से सबसे बड़ा दुष्प्रभाव यह होता है कि व्यक्ति बात बात पर चिड़ने लगता है। अनायास ही अवसाद से घिर जाता है। उसे लगने लगता है कि उसके फॉलोवर्स या views कम हो जाएं तो वह इस दुनिया में अकेला रह जाएगा। इसी दर से वह लोगों से मिलना जुलना बंद कर देता है और ख़ुद को गर्त में डालने की कोई कसर नहीं छोड़ता है।
6. रिश्तों में दूरियां
जब लोग अपने परिवार और दोस्तों को नज़रअंदाज कर वर्चुअल लाइफ़ में ज़्यादा समय बिताने लगते हैं, तो रिश्तों में दरार आ जाती है। इससे परिवार और दोस्तों से भावनात्मक दूरी बढ़ती जाती है।
काल्पनिक दुनिया से बचने के उपाय (Kalpanik duniya se bachne ke upay)
काल्पनिक दुनिया से बचने के लिए आप निम्न उपाय कर सकते हैं -
1. आत्म-जागरूकता (Self-Awareness) विकसित करें
पहला क़दम यह समझना है कि आप काल्पनिक दुनिया में कितना समय बिता रहे हैं। यह सवाल ख़ुद से पूछें कि क्या इस तरह की वर्चुअल लाइफ़ आपके जीवन को बेहतर बना रही है या बिगाड़ रही है?
2. डिजिटल डिटॉक्स अपनाएं
हफ्ते में एक या दो दिन मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया से दूरी बनाएं। इस दौरान किताबें पढ़ें, प्रकृति के साथ समय बिताएं या अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताएं। यह ठीक उसी तरह होना चाहिए जैसे आप किसी ख़ास दिन पूरी ईमानदारी से उपवास रहते हैं। प्रण कर लें कि आज मोबाइल को छूना भी नहीं है।
3. अपने असली जीवन को रोचक बनाएं
अगर आपको असली ज़िंदगी उबाऊ लग रही है, तो उसमें कुछ रोमांचक चीज़ें जोड़ें। नई हॉबी अपनाएं, यात्रा करें, नए लोगों से मिलें, या कोई नया कौशल सीखें।
4. योग और ध्यान (Meditation) करें
योग और ध्यान से मानसिक संतुलन बना रहता है और वास्तविकता से जुड़े रहने में मदद मिलती है। यह आपके ध्यान को केंद्रित करता है और काल्पनिक दुनिया से बाहर निकलने में सहायक होता है।
5. सामाजिक जीवन को प्राथमिकता दें
परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताएं, उनसे बातें करें और असली दुनिया में कनेक्शन बनाएं। वास्तविक संबंधों को मज़बूत करने से आपको आभासी दुनिया की कम ज़रूरत महसूस होगी।
6. लक्ष्य निर्धारित करें और उन पर काम करें
एक स्पष्ट लक्ष्य बनाएं और उस पर काम करें। जब आप अपने करियर और व्यक्तिगत विकास पर ध्यान देंगे, तो काल्पनिक दुनिया में समय बिताने की आदत कम हो जाएगी।
7. समय प्रबंधन करें
अपने दिन का शेड्यूल बनाएं और तय करें कि कितने घंटे डिजिटल दुनिया में बिताने हैं। स्क्रीन टाइम को सीमित करें और बाक़ी समय अपनी असली दुनिया की गतिविधियों में लगाएं।
8. ज़रूरत पड़ने पर सहायता लें
अगर आपको लगता है कि आप काल्पनिक दुनिया से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं, तो मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ की मदद लें। थेरेपी और काउंसलिंग से निश्चित रूप से आपको सही दिशा मिल सकती है।
समस्या के समाधान के लिए ज़िम्मेदारी किसकी?
काल्पनिक दुनिया से बचने के लिए व्यक्ति के आस पास या व्यक्ति से जुड़े तमाम कारकों की ज़िम्मेदारी बनती है कि वे उन परिस्थितियों का निर्माण ही न होने दें जींस वजह से वह व्यक्ति किसी काल्पनिक दुनिया का सहारा लें। आइए जानते हैं कि किन कारकों की क्या ज़िम्मेदारी हो सकती है।
(क) परिवार और समाज की ज़िम्मेदारी
माता-पिता और परिवार को चाहिए कि वे अपने बच्चों के साथ क्वॉलिटी टाइम बिताएं। साथ ही युवाओं को अकेलेपन का एहसास न होने दें। उनकी समस्याओं को सुनें और निराकरण का रास्ता निकालें। यक़ीन मानिए परिवार के इस सहयोग से बच्चों और युवाओं को किसी आभाषी दुनियां का सहारा लेने की नौबत ही नहीं आएगी। उनकी डिजिटल एक्टिविटीज़ पर समय समय पर ध्यान देना चाहिए। ताकि उन्हें सोशल मीडिया, गेम्स और फैंटेसी वर्ल्ड में खोने से बचाया जा सकें।
समाज की ज़िम्मेदारी भी बनती है वो केवल पैसों और सोशल स्टेटस को ही किसी व्यक्ति को न तौले। ऐसा करने से युवाओं के लिए सोशल मीडिया पर लाइक्स, फॉलोअर्स और कमेंट्स का खेल खेलना मजबूरी नहीं होगा। और वे मानसिक रूप से सुरक्षित रह सकेंगे।
(ख) टेक्नोलॉजी कंपनियों की ज़िम्मेदारी
सोशल मीडिया और गेमिंग कंपनियों को ऐसे फीचर्स लाने चाहिए, जो स्क्रीन टाइम को नियंत्रित करने में मदद करें। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को कंटेंट को इस तरह डिज़ाइन करना चाहिए कि वह लोगों को आभासी दुनिया में फंसाने के बजाय असली दुनिया में प्रेरित करे।
(ग) स्वयं की ज़िम्मेदारी
आत्म-नियंत्रण विकसित करना ज़रूरी है। डिजिटल डिटॉक्स अपनाना चाहिए और असली दुनिया में अधिक समय बिताना चाहिए। सोशल मीडिया की लात भी किसी शराबी या जुआरी की लत की तरह है जिसे छोड़ने के लिए किसी दवा की ज़रूरत नहीं, बल्कि उस व्यक्ति के ख़ुद पर नियंत्रण की ज़रूरत होती है।
इसके लिए अगर ज़रूरत महसूस हो, तो मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ की मदद भी ली जा सकती है। लेकिन एक बात तय है कि इसके लिए ख़ुद ही आगे आकर, पूरे आत्मविश्वास के साथ ठानने की ज़रूरत होगी कि अब उसे इन बकवास सहारों की ज़रूरत नहीं।
निष्कर्ष (Conclusion)
किसी भी व्यक्ति के लिए काल्पनिक दुनिया में जीना एक आसान रास्ता लग सकता है, लेकिन यह वास्तविक जीवन को नुक़सान पहुंचा सकता है। डिजिटल युग में संतुलन बनाए रखना बेहद ज़रूरी है। असली दुनिया में जीने का आनंद लेना और ख़ुद को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। अगर हम सचेत होकर अपनी आदतों में बदलाव लाएं, तो हम इस समस्या से आसानी से बच सकते हैं और एक ख़ुशहाल और संतुलित जीवन जी सकते हैं।
काल्पनिक दुनिया में फंसने की समस्या के लिए टेक्नोलॉजी, समाज और व्यक्ति तीनों ही ज़िम्मेदार हैं। लेकिन सबसे बड़ा दायित्व व्यक्ति का ख़ुद का है कि वह अपनी वास्तविकता को स्वीकार करें और अपनी ज़िंदगी को संतुलित रखें। अगर सही क़दम उठाए जाएं, तो आभासी दुनिया का नकारात्मक प्रभाव कम किया जा सकता है और एक ख़ुशहाल जीवन जिया जा सकता है।
"- By Alok Khobragade"
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