कोरोना होने पर हार्ट अटैक व लिवर कैंसर होने का ख़तरा | ऑक्सीजन भी तेज़ी से घटने लगती है

पिछले 8-9 महीनों से अगर हम बात करें तो केवल एक ही बीमारी 'कोरोना' का ज़िक्र ज़्यादा होता रहा है जिसके चलते गाँव, शहर, प्रदेश, देश ही नहीं अपितु सारा विश्व इस ख़तरनाक बीमारी से लगातार जूझ रहा है। आज हम आपको बताना चाहते है कि इस कोरोना के होने से शरीर में ऐसी अनेक विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं जिसके कारण स्थिति इतनी भयावह हो जाती है कि इंसान मृत्यु के कगार पर पहुंच जाता है और उसे पता भी नहीं चल पाता।



सीओपीडी COPD : यानि "क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़- यह फेफड़ों की एक बीमारी है। दरअसल हवा के रास्ते प्रदूषित कण फेफड़ों में पहुँचकर नुक़सान पहुंचाते हैं। साथ ही धीरे-धीरे फेफड़ों को भारी मात्रा में संक्रमित करते हैं।" यदि हम आँकलन करे तो पाएंगे कि दुनिया में सबसे अधिक होने वाली मौतों में सीओपीडी तीसरे स्थान पर है। विश्व सीओपीडी दिवस 18 नवंबर को मनाया जाता है। 

सीओपीडी के मरीज़ों को यदि कोरोना हो जाये तो रोगी की स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। यहां तक कि मरीज़ की मृत्यु की आशंका 3 से 4 गुना अधिक हो जाती है। वैसे भी सीओपीडी के कारण रोगियों के फेफड़े पहले से ही कमज़ोर हो जाते हैं। ऐसे में ऑक्सीजन का स्तर और भी तेज़ी से कम होने लगता है। ऐसे मरीज़ों की रिकवरी भी काफी धीमी गति से होती है। स्मोकिंग कर रहे मरीज़ों के लिए इसका ख़तरा और भी कई गुना बढ़ जाता है।

हार्ट अटैक का ख़तरा सबसे ज़्यादा

सीओपीडी की वजह से रोगी को सर्दी-ज़ुकाम की समस्या लगातार बानी रहती है। विशेष बात यह है कि इसके रोगियों में हार्ट अटैक की संभावना सबसे अधिक बनी रहती है। वहीं लिवर कैंसर, फेफड़ों में रक्त पहुंचाने वाली धमनियों में रुकावट होने से रक्तचाप बढ़ जाता है। डिप्रेशन और बच्चों में सिरदर्द के साथ अन्य गंभीर बिमारियां भी इसके कारण हो सकती हैं।

बीमारी होने का रोगी को पता ही नहीं चलता

इस बीमारी की ख़ास बात हम आपको बता दें कि इस बीमारी का मरीज़ को शुरू में पता ही नहीं चलता। इस बीमारी में मरीज़ को शुरू में सांस लेने में तकलीफ़ होती है। यह समस्या अचानक ही नहीं होती है बल्कि धीरे-धीरे शुरू होती है। यह फेफड़ों की बीमारी (सीओपीडी) मरीज़ को कब हो जाती है उसे इसका पता तक नहीं चल पाता। इसका पता तो तभी चलता है जब इसके लक्षण गंभीर होने लगते हैं। दिनचर्या पूरी तरह प्रभावित होने पर ही पता चलता है। इलाज करने पर भी इसे पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता इसके लक्षणों को ज़रूर कम किया जा सकता है।

कुछ विशिष्ट बातें

  • 25 करोड़ से अधिक मामले प्रतिवर्ष पूरे विश्व में सीओपीडी के पाए जाते हैं।
  • लगभग 80% सीओपीडी के रोगियों में धूम्रपान एक मुख्य कारण होता है।
  • दुनिया भर में 32 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु प्रति वर्ष केवल सीओपीडी की वजह से होती हैं।
  • 10 सिगरेट के बराबर धुआं, लोग मेट्रो शहरों में रोज़ाना लेते रहते हैं।
  • सीओपीडी के लगभग 3 करोड़ से भी ज़्यादा मरीज़ केवल भारत में पाए जाते हैं

ऐसे दिखाई देते हैं लक्षण

सुबह खांसी आना, धीरे-धीरे यह खांसी बढ़ने लगती है। बलगम भी निकलने लगता है। सर्दी के दिनों में यह समस्या बढ़ जाती है। जब यह बीमारी बढ़ने लगती है तब मरीज़ की सांस फूलना, छाती आगे निकलना आदि परेशानी होने लगती है। रोगी को फेफड़े के अंदर रुकी सांस को बाहर निकालने में परेशानी होने लगती है। होठों को गोल करते हुए बड़ी मेहनत साँस बाहर निकालना पड़ता है जिसे मेडिकल की भाषा में पर्स लिप ब्रीदिंग कहा जाता है।  पैरों में सूजन, वज़न घटना, भूलने की समस्या, तनाव व हृदय से जुड़ी परेशानी भी होने लगती है। 

ठंडी चीज़ें खाने से बढ़ती दिक्क़तें

वायु प्रदूषण, गाड़ियों का धुआं, धूम्रपान और चूल्हे के धुएं से बचना चाहिए। सीओपीडी में वज़न नियंत्रित रखनी चाहिए ताकि इससे सांस लेने में अधिक ऊर्जा यानी कि ज़्यादा कैलोरी की ज़रूरत होती है। थकान ज़्यादा होने लगती है। ठंडी चीज़ें खाने से हमेशा ही बचना चाहिए। क्योंकि इससे दिक्क़तें ज़्यादा बढ़ जाती हैं। मौसमी फल और सब्ज़ियाँ ज़्यादा से ज़्यादा खाने का प्रयास करना चाहिए। रोज़ाना सांस के लिए फ़ायदेमंद योगा और प्राणायाम अवश्य करें। प्राणायाम इस बीमारी से बचने के लिए बेहतर ऑप्शन हो सकता है। लेकिन ध्यान रहे यदि बीमारी गंभीर या परेशानी ज़्यादा है तो बिना डॉक्टर की सलाह के कोई भी व्यायाम करने से बचें।

वैक्सीन और दवाएं उपयुक्त समय पर लें

इसके मरीज़ वैक्सीन ज़रूर लगवाएं। सीओपीडी के रोगियों को दो तरह के वैक्सीन लगाए जाते हैं। पहला वैक्सीन फ़्लू का, जो कि साल में एक बार लगाया जाता है। दूसरा वैक्सीन न्युमोकॉकल है। यह तीन या पाँच साल में एक बार लगाया जाता है। 

फ़्लू के टीके मौसमी संक्रमण से बचाते हैं और न्युमोकॉकल का टीका निमोनिया से। ज़्यादातर देखा गया है कि जिन्होंने वैक्सीन लगवाया था उनमें कोविड का असर ना के बराबर था। आप सभी को यही सलाह है कि अपनी दवाईयाँ समय-समय से लेते रहें। बिना डॉक्टरी सलाह के कोई भी दवा न लें और न ही कोई दवा बिना डॉक्टर की सलाह से छोड़ें।

सीओपीडी (COPD) के दौरान बरती जाने वाली सावधानियाँ




सीओपीडी फेफड़ों की बीमारियों को दिया जाने वाला एक नाम है जो फेफड़ों से हवा के बहाव को बाधित करता है जिससे श्वास में परेशानी और खाँसी होती है। इस संक्रमण से बचने के लिए निम्न सावधानियां बरती जानी चाहिए-

  1. बाहर जाने से हो सके तो बचने की कोशिश करें। ज़रूरत हो तो अपने नाक और मुंह को ढकें। सिटी मास्क या एन 95 मास्क अथवा किसी भी अच्छी क़्वालिटी के मास्क का प्रयोग करें। स्थिति गंभीर हो तो फेसमास्क वेंटिलेटर का उपयोग महत्वपूर्ण है। यदि घर पर रहना भी समस्याग्रस्त है, तो आप सिलेंडर से जुड़ी नाक की नलियों के माध्यम से ऑक्सीजन ग्रहण करने की कोशिश कर सकते हैं। इससे इसके लक्षणों और होने वाले संकट में तुरंत राहत मिलेगी।
  2. घर के अंदर वायु की आर्द्रता कम से कम 40% होनी चाहिए। आप हवा की शुद्धता को बनाए रखने के लिए गर्भावस्था के दौरान एयर ह्यूमिडिफायर/प्यूरीफायर किराए पर ले सकते हैं या ख़रीद सकते हैं। वायु के शुद्धिकरण के लिए वायु शुद्ध करने वाले विशिष्ट पौधे खरीद सकते हैं और उन्हें घर के सभी कोनों में रख सकते हैं। एक तो ये कम क़ीमत के होते हैं और इनके लिए किसी भी बिजली की आवश्यकता नहीं होती। ये पूरे 24 घंटे ऑक्सीजन के उत्सर्जक होते हैं। इसके अलावा घर साफ़ रखने की आदत डालें।
  3. अत्यधिक परिश्रम करने से बचना चाहिये। अपनी शारीरिक गतिविधियों को अपने वज़न के अनुरूप ही रखें। भारी कार्डियो से बचें। प्राणायाम एवं योग करने की आदत बनाये रखें।
  4. जितना संभव हो सके, संक्रमणों से बचें। भीड़-भाड़ वाली जगहों से हमेशा बचें, हाथ मिलाने से सदैव बचने का प्रयास करें। नाक और मुंह ढक कर रखें और जितना हो सके अपने हाथों को आवश्यकतानुसार धोते रहें। चेहरे को छूने से बचें, शरीर में कहीं भी खुजली होने पर कंधे या आस्तीन का उपयोग करें। दैनिक जीवन में सुरक्षा बरतें एवं स्वच्छता का अभ्यास करें।
  5. धूम्रपान कतई ना करें। यदि कर रहे हों तो जल्द ही छोड़ दें। स्मोकिंग करने वालों के संपर्क में आने से बचें। धुआं टार और अन्य जहरीले रसायनों से भरा होता है जो फेफड़ों में भारी जलन और सांस लेने में तकलीफ का कारण हो सकता है। इसीलिये धूम्रपान से दूर ही रहें।
  6. डिस्पेनिया दवाओं के साथ एक एलर्जी किट हमेशा तैयार रखें इनहेलर्स, नेब्युलाइजर्स और अपने पल्मोनोलॉजिस्ट के साथ संपर्क बनाये रखें।
  7. हाइड्रेटेड रहें अर्थात पानी, सब्ज़ी सूप आदि लेते रहें। ध्यान रहे सभी पेय पदार्थों का सेवन कमरे के तापमान के अनुसार ही करें। नारंगी, दलिया, कैंटालूप, सेलरी, स्ट्रॉबेरी और दही जैसे तरल पदार्थ खाने में शामिल करें। ये सभी पदार्थ आपके दैनिक पोषण में पानी की मात्रा सुनिश्चित करने में सदैव ही कारगर साबित होते हैं।
  8. कुछ लक्षण यदि लंबे समय से हों जैसे कि अत्यधिक अनियंत्रित खांसी, सांस लेने में ज़्यादा तकलीफ़ हो, दाम की ज़्यादा शिकायत, ज़्यादा थकावट महसूस होना, छाती में असहनीय दर्द, जी मचलाना आदि अत्यधिक मात्रा में हो तो फ़ौरन श्वसन विशेषज्ञ से या किसी स्पेशलिस्ट से संपर्क करें।
सीओपीडी के रोगियों के साथ, बच्चों, बुज़ुर्गों और गर्भवती महिलाओं को सर्दी के वायु प्रदूषण एवं धुंध से प्रभावित होने का ख़तरा सबसे ज़्यादा होता है। भारत में हर साल लगभग 5,00,000 लोग श्वसन की समस्याओं से मर जाते हैं। अपना ध्यान रखें, ऐसी तकलीफ़ के समय में चिकित्सा सलाह लेने में बिल्कुल भी संकोच ना करें। थोड़ी सी भी असुविधा हो तो अपने आस पास के लोगों को फ़ौरन बताएं। उचित सलाह, सुरक्षा और सतर्कता से हम देश में फेफड़ों की बीमारियों से होने वाली मौतों को निश्चित तौर पर रोक सकते हैं।


उम्मीद है आपको हमारा यह लेख 'कोरोना होने पर हार्ट अटैक व लिवर कैंसर होने का ख़तरा' अच्छा लगा होगा। आप इस जानकारी को शेयर करके अपनों को सतर्कता बरतने की सलाह दे सकते हैं ताकि लोग सीओपीडी या कोविड-19 से बचने का प्रयास करते रहें। स्वस्थ रहिये सुरक्षित रहिये हम यही कामना करते हैं।

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