श्रीकृष्ण जन्म उत्सव, कृष्ण जन्माष्टमी कब है, तिथि और मूहूर्त, कृष्ण जन्माष्टमी 2024, (Krishna Janmashtami ka tyohar, krishna janmashtami date and time, Krishna Janmashtami ka samajik mahatva)
भगवान श्री का जन्म उत्सव, कृष्ण जन्माष्टमी, जिसे श्री कृष्ण जयंती या जन्माष्टमी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संस्कृति और धार्मिकता के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। यह त्यौहार भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, जो हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। इस अवसर पर भक्तों द्वारा विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान किए जाते हैं।
हिंदू धर्म में भगवान श्रीकृष्ण एक लोकप्रिय देवता के रुप में माने जाते हैं जिनकी पूजा उनकी चंचलता और शरारती स्वभाव के अलावा उनकी बुद्धि और करुणा के लिए भी की जाती है। उन्हें प्रेम, करुणा और चंचलता का अवतार माना जाता है। श्रीकृष्ण अपनी शरारतों के साथ साथ, बाधाओं को दूर करने की क्षमता के लिए भी जाने जाते हैं। भगवान कृष्ण ने हमें प्रेम, करुणा और न्याय के मार्ग पर चलने का उपदेश दिया है।
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कृष्ण जन्माष्टमी : भारतीय संस्कृति का अनुपम उत्सव
सही मायने में कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार, भारतीय धार्मिकता का एक प्रमुख त्यौहार है, जिसे भगवान श्री कृष्ण के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। यह त्यौहार भारतीय पद्धतियों, धार्मिकता और संस्कृति का अद्वितीय संगम है। इस दिन का महत्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से है, बल्कि यह भारतीय समाज की सांस्कृतिक समृद्धि और एकता का भी प्रतीक है।
जन्माष्टमी का अर्थ क्या है? | जन्माष्टमी कब और क्यों मनाई जाती है?
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था, जो कि हिंदू कैलेंडर के चार युगों में से एक है। उनके जन्म की तिथि को लेकर विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में विशेष वर्णन मिलता है। कृष्ण का जन्म भाद्रपद (अगस्त-सितंबर) माह के कृष्ण पक्ष के 8वें दिन (अष्टमी) को हुआ था, इसलिए इस दिन को जन्माष्टमी के नाम से जाना जाता है। इसलिए इस दिन श्रीकृष्ण जन्म उत्सव (krishna janmashtami ka utsav) मनाया जाता है। जन्म कृष्ण कथा में आठ (8) की संख्या का एक और महत्व यह है कि वह अपनी माँ देवकी की आठवीं संतान थे।
जन्माष्टमी 2024 तिथि (मुहूर्त) | Janmashtami 2024 muhurt)
द्रिक पंचांग के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami) इस वर्ष 2024 में 26 अगस्त, सोमवार के दिन पड़ रही है। 2024 में, जन्माष्टमी के लिए रोहिणी नक्षत्र 26 अगस्त को दोपहर 03:55 बजे शुरू होगा और 27 अगस्त को दोपहर 01:38 बजे समाप्त होगा। वैदिक कालक्रम के मुताबिक इस वर्ष भगवान श्रीकृष्ण का 5250वां जन्मदिन मनाया जाएगा।
भगवान श्री कृष्ण का जीवन परिचय (Bhagwan Shrikrishna ki jivani in hindi)
दोस्तों, भगवान श्रीकृष्ण के जीवन पर विचार किया जाए तो उनका जीवन ज्ञान, वीरता और प्रेम का मिश्रण था। अपने चंचल शुरुआती वर्षों से लेकर, महाभारत में धर्म की रक्षा के लिए, एक दिव्य मार्गदर्शक के रूप में अपनी भूमिका निभाने तक, श्री कृष्ण ने यह दर्शाया कि जीवन को उद्देश्य और आनंद के साथ कैसे जिया जाता है।
भगवान श्री कृष्ण का जन्म द्वापर युग में मथुरा नगरी में हुआ था, उस समय धर्म की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। वे देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र थे। उनके जन्म के समय मथुरा में अराजकता फैल गई थी। दरअसल भविष्यवाणी की गई थी कि दुष्ट और अधर्मी कंस का वध उनकी बहन देवकी और वासुदेव की संतान के द्वारा होगा। तब से कंस ने बहन देवकी और वासुदेव को बेड़ियों से बांधकर, जेल में क़ैद कर दिया था और उनकी प्रत्येक संतान को मौत के घाट उतार दिया करता था।
भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय भी, कंस नामक दुष्ट राजा ने भविष्यवाणी के अनुसार, अपनी बहन देवकी के आठवें पुत्र को मारने का निश्चय किया था। लेकिन कृष्ण का जन्म तो कंस की बुरी योजना को विफल करने और धर्म की स्थापना के लिए हुआ था। परिणामस्वरूप भगवान कृष्ण के जन्म के साथ ही दुष्ट कंस का अंत हुआ और धर्म की विजय हुई।
कृष्ण की बचपन की लीलाएं, जैसे कि माखन चोरी, गोवर्धन पर्वत उठाना और उनकी रासलीलाएं, धार्मिक ग्रंथों और पुरानी कहानियों में वर्णित हैं। भगवान श्रीकृष्ण के बचपन की लीलाओं ने, न केवल भक्तों के दिलों में जगह बनाई, बल्कि भारतीय संस्कृति को भी समृद्ध किया है। उनके बचपन की मनमोहक लीलाएं और बड़े होकर धर्म और समाज की रक्षा जैसे उद्देश्यों से परिपूर्ण उनका जीवन, संपूर्ण भारतीय संस्कृति को सदैव रोमांचित और प्रेरित करता रहेगा।
कृष्ण जन्म उत्सव की तैयारी और अनुष्ठान
कृष्ण जन्माष्टमी की तैयारियां महीनों पहले शुरू हो जाती हैं। भक्त घरों और मंदिरों को सजाते हैं और विशेष रूप से इस दिन के लिए पूजा पाठ की व्यवस्था करते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी पर भक्त विशेष प्रकार की पूजा और अनुष्ठान करते हैं। आइए जानते हैं यह विशेष दिन किस तरह का होता है।
1. उपवास और व्रत - इस दिन कृष्ण भक्त बड़ी ही श्रद्धा से उपवास रखते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी उपवास रखने वाले इस दिन केवल फल-फूल और दूध-खीर का सेवन करते हैं। भक्त इस तरह श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत रखकर भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति और श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
2. भजन-कीर्तन - कृष्ण जन्माष्टमी (krishna janmashtami) के अवसर पर विशेष भजन और कीर्तन का आयोजन किया जाता है। भक्त भगवान कृष्ण का गुणगान करते हैं और उनकी महिमा का वर्णन करते हैं। चूंकि भगवान कृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में 12 बजे हुआ था। इसलिए शाम से ही उनके जन्म समय तक और फ़िर रात भर मंदिरों और घरों में कृष्ण जी के भजन-कीर्तन किए जाते हैं। यह धार्मिक अनुष्ठान भक्तों को सचमुच आध्यात्मिक रूप से प्रेरित करता है।
3. मूर्ति की सुंदर सजावट और पूजा - इस दिन भगवान कृष्ण की मूर्तियों को सुंदर वस्त्रों और आभूषणों से सजाया जाता है। उनके जन्म के समय, भक्तों द्वारा बड़ी धूमधाम से विशेष पूजा अर्चना की जाती है और भगवान कृष्ण को विभिन्न प्रकार के भोग अर्पित किए जाते हैं।
4. कृष्ण की लीला का मंचन - इस दिन कई स्थानों पर कृष्ण की विभिन्न लीलाओं का मंचन किया जाता है। छोटे-छोटे बच्चे कृष्ण के रूप में सजते हैं, श्रंगार करते हैं। साथ ही उनके जीवन की घटनाओं का बड़ी ही सुंदरता के साथ नाटकीय प्रदर्शन करते हैं।
5. प्रसाद वितरण - पूजा के बाद, भगवान कृष्ण को चढ़ाए गए प्रसाद का भक्तों में वितरण किया जाता है। यह प्रसाद विशेष रूप से ताजा दूध, घी और मिठाईयों से बना का होता है।
6. द्वारपाल और मटकी फोड़ना - कई स्थानों पर 'मटकी फोड़' का आयोजन किया जाता है, जिसमें एक ऊंचे स्थान पर मटकी रखी जाती है और लोग उसे फोड़ने का प्रयास करते हैं। महाराष्ट्र में तो इस दिन विशेष रूप से प्रशिक्षित टोलियां (ग्रुप) मटकी फोड़ प्रतियोगिता में भाग लेती हैं। इन प्रतियोगिता में अच्छे खासे इनाम भी प्रस्तावित होते हैं। इस तरह यह आयोजन बड़ा हो मनोरम और भव्य होता है। यह परंपरा भगवान कृष्ण के बचपन में माखन चोरी की लीला की याद दिलाती है।
जन्माष्टमी का सांस्कृतिक पहलू (Cultural Aspect of Janmashtami in hindi)
कृष्ण जन्माष्टमी भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। कृष्ण जन्माष्टमी का धार्मिक महत्व भी अद्वितीय है। इस अवसर पर विभिन्न स्तर पर, सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों में कृष्ण जन्माष्टमी को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। आइए इसके कुछ निराले रंग पर नज़र डालते हैं।
1. डांडिया का आयोजन : गुजरात और राजस्थान में, कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर विशेष डाण्डिया का आयोजन किया जाता है। ये सांस्कृतिक कार्यक्रम कृष्ण के जीवन और प्रेम की महिमा का प्रतीक होते हैं। आजकल तो इन्हीं राज्यों की तर्ज पर देश के अन्य राज्यों में भी डांडिया का भव्य आयोजन किया जाने लगा है।
2. रासलीला का नाटकीय प्रदर्शन : कृष्ण की लीलाओं का मंचन करने के लिए कई स्थानों पर नाटकीय प्रदर्शन किया जाता है। ये नाटक भगवान कृष्ण की कथा और उनके अद्भुत कार्यों को जीवंत बनाते हैं।
3. बाल कृष्ण प्रतियोगिता : कई स्थानों पर बच्चों के बीच कृष्ण के रूप में सजने की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। जिस कारण माता-पिता अपने अपने बच्चों को भगवान कृष्ण के रूप में सजकर प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इस प्रतियोगिता में बच्चे भगवान कृष्ण के जैसे कपड़े पहनते हैं और उनके अंदाज़ में ख़ुद को प्रस्तुत करते हैं। यह अवसर न केवल बच्चों की उत्सुकता को प्रोत्साहित करता है, बल्कि माता-पिता और समाज को भी आपस में जोड़ता है।
4. सांस्कृतिक कार्यक्रम : इस दिन देश के विभिन्न स्थानों पर कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर एक से बढ़कर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इन मनोरम सांस्कृतिक कार्यक्रमों में संगीत, नृत्य और कला प्रदर्शन के नज़ारे देखते ही बनते हैं। इस दिन चहुंओर कृष्ण कन्हैया की धुन, सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का बेजोड़ प्रदर्शन देखने मिलता है।
जन्माष्टमी का धार्मिक महत्व (Religious significance of Janmashtami in hindi)
कृष्ण जन्माष्टमी का धार्मिक महत्व अमिट और अत्यंत गहरा है। भगवान कृष्ण को भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में पूजा जाता है। उन्होंने गीता जैसे पवित्र ग्रंथों के माध्यम से मानवता को धर्म, कर्म और भक्ति का संदेश दिया है। उनके जीवन की कहानियाँ, जैसे कि उनके बचपन की लीलाएं, गोवर्धन पर्वत उठाकर सबकी रक्षा करना, अनेक विपत्तियों से सबकी रक्षा करना, किशोरावस्था से ही मथुरा को छोड़कर, अधर्मी कंस जैसे दुष्टों का वध कर, देशवासियों की रक्षा करना और इसी तरह निरंतर अनेक बुराइयों को ख़त्म करते हुए अंत में महाभारत जैसे महायुद्ध में धर्म के पक्ष में रहकर धर्म की रक्षा करना, भक्तों के लिए प्रेरणादायक है।
जन्माष्टमी का समाज पर प्रभाव (Impact of Janmashtami on society in hindi)
कृष्ण जन्माष्टमी का प्रभाव केवल धार्मिक और सांस्कृतिक दायरे तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज में एकता और भाईचारे का संदेश भी देता है। इस दिन विभिन्न जाति, धर्म और विभिन्न पृष्ठभूमि के लोग एकत्रित होते हैं और भगवान कृष्ण के जीवन और शिक्षाओं की महिमा का आनंद लेते हैं। सही मायने में यह समाज को एकजुट करने और सांस्कृतिक धरोहर को संजोने का अवसर भी है। कम से कम इसी बहाने, लोग अपनी धार्मिक और सामाजिक जिम्मेदारियों को पुनः जागरूक करते हैं।
भगवान कृष्ण के जीवन से हमें कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं मिलती हैं। उन्होंने जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला, जैसे कि सच्चा कर्म, त्याग और भक्ति। उनकी शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं और जीवन को सही दिशा प्रदान करती हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
कृष्ण जन्माष्टमी एक ऐसा पर्व है जो न केवल भगवान श्री कृष्ण के जन्म की खुशी को मनाता है, बल्कि यह हमारे जीवन में सत्य, धर्म और प्रेम का संदेश भी लाता है। कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार हमें अपने धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को संजोने का अवसर प्रदान करता है और समाज में एकता और सौहार्द की भावना को प्रोत्साहित करता है। कृष्ण जन्माष्टमी एक अत्यंत महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक पर्व है, जो हर वर्ष भक्तों को नई ऊर्जा और उत्साह प्रदान करता है।
दोस्तों कृष्ण जन्माष्टमी, भारतीय संस्कृति का एक अनमोल उत्सव है। इसलिए इस पावन दिन को भगवान श्री कृष्ण के जन्म की खुशी के रूप में मनाते हुए एक दूसरे को एकता, प्रेम और भक्ति का संदेश भी देना चाहिए। इस पर्व के माध्यम से हम अपने जीवन को सत्य, धर्म और प्रेम के मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं। इस प्रकार, कृष्ण जन्माष्टमी एक ऐसा पर्व है जो धर्म, संस्कृति और मानवता के आदर्शों को मनाने और संजोने का सभी को अवसर प्रदान करता है।
हमें भगवान श्रीकृष्ण के संपूर्ण जीवन से शिक्षा लेनी चाहिए कि किस तरह उन्होंने अपने जन्म से ही अनेक विपत्तियों का सामना किया। इसके बावजूद उन्होंने अपने बचपन को विभिन्न लीलाओं से भरकर जीवन का आनंद लेना सिखाया। हालांकि बाल्यावस्था में भी उन्होंने अपनी शक्तियों से समाज की सुरक्षा की और किशोरावस्था आते ही प्रण लिया कि उन्हें अब मथुरा से प्रस्थान कर, धर्म की सुरक्षा और अधर्मियों का विनाश करने में जुट जाना है।
श्री कृष्ण को ज़्यादातर, युवा बालक के रूप में चित्रित किया जाता है जो अपने दोस्तों के साथ खेल रहा है। वह संगीत और नृत्य के प्रति अपने प्रेम के लिए भी जाने जाते हैं। निसंदेह श्रीकृष्ण एक जटिल और बहुआयामी देवता हैं जो मानवीय अनुभव के कई अलग-अलग पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।
उम्मीद है कृष्ण जन्माष्टमी के बारे में हमारा यह लेख आपको ज़रूर पसंद आया होगा। इसी आशा के साथ कि प्रेम, करुणा और धर्म का यह त्यौहार आपके जीवन में भी अपार खुशियां लेकर आए। आप सभी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं (happy krishna janmashtami)। साथ ही हमारी वेबसाइट चहलपहल पर आने के किए ह्रदय से आभार प्रकट करते हैं।
(written by Alok)
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