मकर संक्रांति का अर्थ क्या है, मकर संक्रांति का महत्व क्या है, मकर संक्रांति क्यों मनाते हैं, मकर संक्रांति का धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक महत्व, (makar sankranti in hindi, makar sankranti kyu manate hain, about makar sankranti in hindi)
दोस्तो नए वर्ष की शुरुआत सभी के लिए एक सकारात्मक और ऊर्जावान तरीक़े से हो ऐसी कामनाओं के साथ हम आज की ये छोटी सी और मीठी सी पोस्ट की शुरूआत करते हैं। आप सभी को मकर संक्रांति की शुभकामनाएं देते हुए, मकर संक्रांति से जुड़ी जानकारी साझा करते हैं।
हमारी भारतीय संस्कृति में हर त्यौहार और रीति रिवाज को धार्मिक के साथ ही वैज्ञानिक तरीक़े से भी प्रमाणित और स्त्यापित किया गया है। जिसका उदाहरण हर मौसम के अनुकूल त्यौहारों और उसके स्वादिष्ट व्यंजनों के ज़रिए देखा जा सकता है।
जनवरी माह का पहला महीना जो कपकपाती सर्दी से जकड़ा होता है। और इसकी शुरुआत होती है मीठे मीठे त्यौहार मकर संक्रांति (makar.sankranti) से। कहते है न, कि कुछ अच्छे की शुरुआत मीठे से की जाए। वैसे ही हम भारतीयों को वर्ष की शुरुआत में ही कुछ मीठा, स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक व्यंजन से होती हैं जैसे तिल और गुड़। क्यूं आया न मुंह में पानी!!
ठंड में तिल और गुड़ से बने लडडू और गजक (चिक्की) जिसकी बात ही निराली है और जिसका नाम सुनते ही मुँह में मीठा और क्रंची स्वाद और नाक में मीठी सी महक गुदगुदाने लगती है। और इसी का स्वाद बढ़ाने के लिए मकर संक्रांति में कुरकुरा और चटपटा चिवड़ा भी इस भारतीय त्यौहारों को परिपूर्ण कर देता है। तो आज बात करते हैं हमारे नव वर्ष के प्रथम त्यौहार मकर संक्रांति की।
भारत एक सांस्कृतिक और धार्मिक विविधताओं वाला देश है, जहां अनेक पर्व और त्यौहार मनाए जाते हैं।
इन सभी त्योहारों के पीछे महज़ एक परंपरा या रूढ़िवादी बातें ही नहीं, बल्कि इन त्यौहारों से ज्ञान, विज्ञान, स्वास्थ्य और आयुर्वेद से जुड़ी कुछ ख़ास बातें भी होती हैं।
मकर संक्रांति का यह त्यौहार, हिंदू त्यौहारों में से एक प्रमुख त्यौहार है जो कि प्रति वर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से सूर्य देवता को समर्पित है। क्योंकि इस त्यौहार को सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने और उत्तरायण होने के अवसर पर मनाया जाता है। सूर्य का यह महत्व वैदिक ग्रंथों, विशेष रूप से गायत्री मंत्र, हिंदू धर्म के पवित्र भजनों, ऋग्वेद नामक धर्मग्रंथ में भी दिखाई देता है। मकर संक्रांति का धार्मिक, सांस्कृतिक और कृषि महत्व भी है। इसे देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है।
तो चलिए बिना देर किए, मकर संक्रांति का त्यौहार क्या है? साथ ही इसकी मान्यताएं, इतिहास, शुभ मुहूर्त, महत्व आदि के बारे में विस्तार से जानते हैं।
मकर संक्रांति क्या है? | मकर संक्रांति का अर्थ
मकर संक्रांति दो शब्दों से मिलकर बना है – 'मकर' और 'संक्रांति'। 'मकर' का अर्थ है मकर राशि (मकर राशि एक ज्योतिषीय राशि है) और 'संक्रांति' का अर्थ है परिवर्तन या प्रवेश। इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और उत्तरायण होता है। ज्योतिषीय दृष्टि से, यह समय शुभ माना जाता है क्योंकि सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है।
उत्तरायण का अर्थ है सूर्य का उत्तर दिशा की ओर बढ़ना, जिससे दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं।
शास्त्रों के अनुसार सूर्य देवता जब दक्षिणायन में रहते हैं तो उस अवधि को देवताओं की रात व उत्तरायण के छह माह को दिन कहा जाता है। दक्षिणायन को नकारात्मकता और अंधकार का प्रतीक माना जाता है तथा उत्तरायण को सकारात्मकता एवं प्रकाश का प्रतीक माना गया है।
मकर संक्रांति के दिन, सूर्योदय से सूर्यास्त तक पर्यावरण अधिक चैतन्य रहता है, यानि कि इस दिन पर्यावरण में दिव्य जागरूकता होती है, इसलिए आध्यात्मिक अभ्यास कर रहे लोगों के लिए मकर संक्रांति का दिन एक विशेष महत्व लेकर आता है।
मकर संक्रांति का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
मकर संक्रांति का धार्मिक दृष्टि से विशिष्ट महत्व है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, माना जाए तो पूरे साल में कुल 12 संक्रांति आती हैं। इन्हीं में से एक है पौष माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली मकर संक्रांति जिसे शास्त्रों में अन्य सभी संक्रांतियों में सबसे अधिक शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। पुराणों के अनुसार, इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने आते हैं, जो मकर राशि के स्वामी हैं।
गंगा नदी का धरती पर अवतरण भी इसी दिन हुआ था। इस अवसर पर गंगा स्नान, दान और पूजा-पाठ का विशेष महत्व है। भगवद गीता में भी उत्तरायण काल को शुभ बताया गया है। महाभारत में भीष्म पितामह ने भी अपने देह त्याग के लिए मकर संक्रांति के दिन का चयन किया था, क्योंकि यह दिन मोक्ष प्राप्ति के लिए विशेष माना जाता है।
मकर संक्रांति का कृषि महत्व
मकर संक्रांति मुख्य रूप से एक कृषि पर्व भी है। दरअसल इस समय रबी की फसलें पकने लगती हैं और किसान अपनी फ़सल काटने के लिए तैयार होते हैं। इस अवसर पर किसानों के लिए ख़ुशी और समृद्धि का समय होता है। नई फ़सल के आगमन के उपलक्ष्य में कई जगहों पर लोग नई फ़सल का भोग बनाकर देवताओं को अर्पित करते हैं।
मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व
मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व भी है। यह दिन सूर्य के मकर राशि में प्रवेश और उत्तरायण होने का संकेत देता है। इस समय से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। सूर्य की उत्तरायण गति से पृथ्वी पर धूप अधिक पड़ती है, जिससे ठंडक कम होने लगती है और मौसम में बदलाव आता है।
मकर संक्रांति का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
मकर संक्रांति का त्यौहार समाज को जोड़ने और आपसी प्रेम बढ़ाने का संदेश देता है। लोग इस दिन एक-दूसरे को तिल-गुड़ खिलाते हैं और पुरानी कड़वाहट भूलकर प्रेम और सद्भावना का परिचय देते हैं। निश्चित रूप से यह पर्व भारत की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है।
मकर संक्रांति की मान्यताएं
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति के पर्व पर पानी में तिल या तिल का तेल डालकर नहाने की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि पानी में तिल या तिल का तेल डालकर नहाने से घर और जीवन का दुर्भाग्य समाप्त होता है और सफ़लता प्राप्त होती है। यह भी माना जाता है कि इस दिन ताज़ी हवा में पतंग उड़ाने से सौभाग्य प्राप्त होता है।
हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि एक बार संक्रांति ने राक्षस शंकरासुर को परास्त किया था। एक और मान्यता के अनुसार, यह माना जाता है कि इस दिन देवी ने राक्षस किंकरासुर का वध किया था। इस कारण मकर संक्रांति को कारिदिन या किंक्रांत भी कहा जाता है।
हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार यह माना जाता है कि इस विशेष दिन पर भगवान् सूर्य अपने पुत्र भगवान् शनि के पास जाते हैं, उस समय भगवान् शनि, मकर राशि का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं।
पिता और पुत्र के बीच स्वस्थ सम्बन्धों को मनाने के लिए मकर संक्रांति को विशेष महत्व दिया गया है। ऐसा माना जाता है कि इस विशेष दिन पर जब कोई पिता अपने पुत्र से मिलने जाते हैं, तो उनके संघर्ष सहर्ष ही हल हो जाते हैं और सकारात्मकता की ख़ुशी और समृधि दौड़ी चली आती है।
मकर संक्रांति के प्रमुख अनुष्ठान और परंपराएँ
मकर संक्रांति के प्रमुख अनुष्ठान एवं परंपराएं निम्न हैं -
1. स्नान और दान :
मकर संक्रांति पर गंगा, यमुना, गोदावरी और अन्य पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है।
लोग तिल, गुड़, चावल, वस्त्र और धन का दान करते हैं।
2. तिल और गुड़ का सेवन :
तिल और गुड़ खाने और बांटने की परंपरा है। तिल-गुड़ शरीर को ऊष्मा प्रदान करता है और ठंड के मौसम में लाभकारी होता है।
3. पतंगबाजी परंपरा :
गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में पतंग उड़ाने की परंपरा है। आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है।
4. भगवान सूर्य की पूजा :
लोग इस दिन सूर्य देवता को जल अर्पित करते हैं और विशेष पूजा करते हैं।
मकर संक्रांति का इतिहास
काशी हिंदू विश्व विद्यालय के ज्योतिषाचार्य पं गणेश मिश्रा के अनुसार 14 जनवरी को मकर संक्रांति का त्यौहार पहली बार 1902 में मनाया गया था। इससे पहले 18 वीं सदी में 12 और 13 जनवरी को मनाया जाता था। वहीं 1964 में मकर संक्रांति पहली बार 15 जनवरी को मनाई गई थी। आने वाले कुछ सालों बाद ये पर्व 14 नहीं बल्कि 15 और 16 जनवरी को मनाया जाएगा।
मकर संक्रांति कैसे मनाई जाती है?
मकरसंक्रांति के शुभ मुहूर्त में स्नान, दान, व पूण्य का विशेष महत्व होता है। इस दिन लोग गुड़ व तिल लगाकर किसी पावन नदी में स्नान करते है। इसके बाद भगवान् सूर्य को जल अर्पित करने के बाद उनकी पूजा की जाती है और उनसे अपने अच्छे भविष्य के लिए प्रार्थना की जाती है।
इसके पश्चात् गुड़, तिल, कम्बल, फल आदि का दान किया जाता है। इस दिन कई जगह पर पतंगें भी उड़ाई जाती हैं। साथ ही इस दिन तिल्ली से बने व्यंजनों का सेवन किया जाता है। इस दिन खिचड़ी बनाकर भगवान सूर्यदेव को भोग लगाने का रिवाज है और खिचड़ी का दान करना भी विशेष रूप से शुभ माना जाता है। जिस कारण इस पर्व को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन किसानों के द्वारा फसल काटने की शुरुआत भी की जाती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
मकर संक्रांति न केवल धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह कृषि, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है। यह हमें प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने और सामाजिक समरसता का संदेश देता है। तिल-गुड़ की मिठास की तरह यह पर्व हमारे जीवन में भी मिठास घोलता है। हमें इस पर्व को पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए।
" by Poonam khobragade"
Some more articles :
Tags
सोशल