अमरकंटक मंदिर मध्यप्रदेश - (रोमांचक तथ्य, इतिहास, मनमोहक दृश्य, अमरकंटक उद्गम स्थल, नर्मदा कुंड, नर्मदा उद्गम स्थल, सोन नदी उद्गम स्थल, सोनभद्र उद्गम स्थल amarkantak ke paas ke darshniya sthal, amarkantak ke rahasya, amarkantak tourist places in hindi)
मध्यप्रदेश के पूर्वी हिस्से में, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की सीमा में स्थित अमरकंटक अपने ख़ूबसूरत झरनों, पवित्र तालाबों, ऊंची ऊंची पहाड़ियों, शांत वातावरण से सचमुच पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। जीवन की आपाधापी से दूर अपने मन को कहीं शांत करना हो तो अमरकंटक से बेहतर जगह आपको शायद ही कहीं मिले।
यहां के घने जंगल, प्रकृति के अद्भुत नज़ारे, पक्षियों का कलरव, बंदरों की सुंदर अटखेलियां। सांसों में घुलती, इस हरी भरी पावन धरती की ख़ुशबू। पहाड़ों के बीच सफ़र करते हुए यहां की ठंडी हवाएं, आपके चेहरे को जब छूकर गुज़रती है तो मानो एक रोमांच सा भर देती है। वनों से आच्छादित यह पावन धरती प्रकृति प्रेमियों को सदैव ही आकर्षित करती है।
नर्मदा नदी के किनारे की सैर भी आपको शांति और सकारात्मक अनुभव प्रदान कर सकती है। पहाड़ियों पर हाइकिंग या उनमें सुरक्षित पथों पर ट्रैकिंग करना भी यहाँ की विशेषताओं में शामिल हो सकता है। यह धार्मिक और प्राकृतिक सांस्कृतिक संबंधों का एक सुंदर संगम स्थल है।
दोस्तों आज हम आपको इस ख़ास पर्यटन स्थल के बारे में बड़ी ही दिलचस्प जानकारी देने वाले हैं। बस आप इस लेख के अंत तक बने रहिए। भारत में, मध्यप्रदेश के अनूपपुर ज़िले में बसा हुआ, विंध्य और सतपुड़ा रेंज की मनमोहक सुंदरता से घिरा हुआ यह दर्शनीय स्थल अमरकंटक (darshaniya sthal amarkantak) आपको सचमुच किसी काल्पनिक स्थल की तरह प्रतीत होगा। इसकी झलक आप नीचे दिए वीडियो में देख सकते हैं।
अमरकंटक की महिमा कई पौराणिक कथाओं, किवदंतियों व कहानियों में पढ़ी व सुनी जाती रही है। कहा जाता है कि भगवान शिव की पुत्री नर्मदा, जीवनदायिनी नदी के रूप में यहां बहती है। नर्मदा नदी हमारे देश की एक मात्र ऐसी नदी है जो पूर्व दिशा के विपरित पश्चिम दिशा की ओर बहती है।
यह हिन्दू धर्म के लोगों के लिए प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है जो अपने प्राचीन देवालयों, शैलेष्ट्र और नेचुरल ब्यूटी के लिए प्रसिद्ध है। यह तीर्थ स्थल प्राचीन ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के साथ विख्यात है। इसे "साक्षात् काशी" भी कहा जाता है। हमारी सलाह तो यही है कि आप भी अमरकंटक धाम के दर्शन (amarkantak dham ke darshan) हेतु अवश्य पधारें।
यहाँ पर नर्मदा नदी का उद्गम स्थल है जिस कारण इस स्थान पर मां नर्मदा का धार्मिक महत्व है। अमरकंटक एक तीर्थ स्थल (amarkantak ek tirth sthal) के रूप में लोगों के बीच पौराणिक और धार्मिक आदान-प्रदान के लिए महत्वपूर्ण स्थल है। इसलिए इसे तीर्थराज (tirthraj) भी कहा जाता है।
अमरकंटक, मध्य प्रदेश के तीर्थ स्थलों में से एक ऐसा तीर्थ स्थल है जिसे भारत की दो महान नदियों, नर्मदा और सोन नदी के उद्गम स्थल के रूप में जाना जाता है, जो हर साल हज़ारों पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। यह पवित्र शहर कई आकर्षण समेटे हुए है। विशेष तौर पर कलचुरी काल के कई प्राचीन मंदिरों का घर है अमरकंटक। तो चलिए बिना समय गंवाए अमरकंटक (amarkantak) के कुछ ख़ास पहलुओं पर चर्चा को आगे बढ़ाते हैं।
Table of Contents :1.1. अमरकंटक का लोकेशन
1.2. अमरकंटक नाम की उत्पत्ति 2.1. नर्मदा नदी उद्गम स्थल
2.2. कलचुरी कालीन मंदिर
2.3. श्री यंत्र मंदिर
2.4. सोन नदी उद्गम स्थल (सोनमुडा)
2.5. माई की बगिया
2.6. कपिल धारा जलप्रपात
2.7. दूध धारा जलप्रपात
2.8. कबीर कोठी
2.9. श्री ज्वालेश्चर मंदिर
2.10. धूनी पानी अमरकंटक
2.11. सर्वोदय जैन मंदिर
2.12. श्री कल्याण सेवा आश्रम 4. अमरकंटक में पायी जाने वाली आयुर्वेदिक दवाईयां
5. अमरकंटक कैसे पहुंचा जा सकता है?
6. अमरकंटक में रुकने की व्यवस्था
7. अमरकंटक से जुड़ी कुछ ख़ास बातें
8. अमरकंटक में मनाया जाने वाला मुख्य उत्सव
अमरकंटक का इतिहास क्या है (Amarkantak ka itihas kya hai?)
अमरकंटक का इतिहास बहुत प्राचीन है और इसके चारों ओर के क्षेत्र में प्राचीन सभ्यताएं जुड़ी हुई हैं। हम आपको बता दें कि इस स्थान का उल्लेख वेदों और पुराणों में भी मिलता है। अमरकंटक में नर्मदा नदी और सोनभद्रा नदियों का उद्गम स्थल है। यह आदिकाल से ही ऋषि और मुनियों की तपोभूमि रही है।
नर्मदा का उद्गम यहां के एक कुंड से और सोनभद्रा का उद्गम पर्वत शिखर से हुआ है। यह मेकल पर्वत से निकलती है, इसलिए इसे मेकलसुता (mekalsuta) भी कहा जाता है। इसके अलावा इसे माँ रेवा के नाम से भी जाना जाता है।
मंदिर की वास्तुकला चेदि और विदर्भा वंश के काल की है। ऋग्वेद काल मे चेदि वंश के लोग यमुना और विंध्य के बीच बसे हुए थे। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शंकर, कपिल, व्यास और भृगु ऋषि सहित कई महान ऋषि–मुनियों ने इस जगह पर सालों तक तपस्या की है। यही अमरकंटक का प्राचीन इतिहास (Amarkantak ka prachin itihas) है।
अमरकंटक का लोकेशन
अमरकंटक मध्यप्रदेश के ज़िले अनूपपुर और शहडोल के तहसील पुष्पराजगढ़ में मेकल की पहाड़ियों के बीच बसा हुआ है। यह 1065 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पहाड़ों और घने जंगलों के बीच यहां के मंदिरों की ख़ूबसूरती का आकर्षण कुछ अलग ही प्रतीत होता है। यह छत्तीसगढ़ की सीमा से सटा हुआ है। इस स्थान पर विंध्य, सतपुड़ा और मैकल श्रेणी की पहाड़ियां आपस में मिलती हैं। इनके मिलन का यह दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है।
अमरकंटक नाम की उत्पत्ति
अमरकंटक नाम की उत्पत्ति को लेकर अनेक रोचक कहानियां प्रचलित हैं। प्रसिद्ध संस्कृत कवि कालिदास ने इस स्थान का नाम अमरकूट बताया है क्योंकि यहां आम (अमरा) के बहुत सारे पेड़ थे। कहा जाता है कि बाद में अमरकूट का नाम अमरकंटक हो गया।
कालिदास द्वारा रचित मेघदूतम में इसे आम्रकूट नाम दिया गया था। क्योंकि इस क्षेत्र में भारी मात्रा में आम के पेड़ों का उल्लेख किया गया है। जिसके आधार पर बाद में आम्रकूट से यह अमरकंटक के रूप में जाना जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक मानें, तो मरकूटगवान शिव ने आग से त्रिपुरा को नष्ट कर दिया तो तीन में से एक राख अमरकंटक पर गिर गई, जो हज़ारों शिवलिंगों में बदल गई। ऐसा ही एक लिंग ज्वालेश्वर में आज भी पूजा जाता है।
संस्कृत में अमरकंटक का अर्थ (amarkantak ka arth) है अनंत स्त्रोत, जो भारत की सबसे पवित्र नदी, नर्मदा नदी से जुड़ा हुआ है। यहां कई सारे मंदिर हैं जो कि विभिन्न शासकों के युग का वर्णन करते हैं। अमरकंटक में प्रमुख आकर्षण नर्मदाकुंड और कलचुरी काल के प्राचीन मंदिर हैं। नर्मदाकुंड के मंदिर, परिसर के भीतर 16 छोटे मंदिर स्थित हैं, जो शहर के मध्य में स्थित हैं।
अमरकंटक के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल | Amarkantak ke paryatan shthal
अमरकंटक में कई प्रसिद्ध पर्यटक स्थल हैं। यहां टूरिस्ट नर्मदा नदी और सोन नदी (सोनभद्र) का उद्गम स्थल देख सकते हैं। कलचुरी का प्राचीन कालीन मंदिर देख सकते हैं। इसके अलावा कर्ण मंदिर, पातालेश्वर मंदिर, सोनमुडा अमरकंटक, दूधधारा प्रपात, कपिल धारा प्रपात इत्यादि जगहों पर पर्यटक घूम सकते हैं। तो आइए अमरकंटक के कुछ प्रमुख पर्यटन स्थलों के बार में जानते हैं -
1. नर्मदा नदी उद्गम स्थल
2. कलचुरी कालीन मंदिर
3. श्री यंत्र मंदिर
4. सोन नदी उद्गम स्थल (सोनमुडा)
5. माई की बगिया
6. कपिल धारा जलप्रपात
7. दूध धारा जलप्रपात
8. कबीर कोठी
9. श्री ज्वालेश्चर मंदिर
10. धूनी पानी अमरकंटक
11. सर्वोदय जैन मंदिर
12. श्री कल्याण सेवा आश्रम
(1) नर्मदा नदी उद्गम स्थल
शहर के केंद्र में स्थित नर्मदा कुंड, नर्मदा का उद्गम स्थल (narmada ka uadgam sthal) है और यह 16 प्राचीन पत्थर के मंदिरों से घिरा हुआ है। कहा जाता है कि पहले नर्मदा नदी का उद्गम (narmada nadi ka udgam) कुंड चारों ओर बांस से घिरा हुआ था। बाद में सन 1939 में रीवा के महाराज गुलाब सिंह ने पक्के कुंड का निर्माण करवाया।
मां नर्मदा की जीवनदायिनी जलधारा का स्पर्श आपकी आत्मा को सुखद एहसासों से भर देता है। मां नर्मदा को यहां संकरी के नाम से जाना जाता है। इस कुंड में मां नर्मदा का रूप संकरी रूप है। मां नर्मदा नदी का उद्गम कुंड भक्तों के लिए किसी परमब्रह्म तीर्थ से कम नहीं है। मां नर्मदा उद्गम स्थल के परिसर का दृश्य आप नीचे दिए गए इस वीडियो में देख सकते हैं।
कुंड के चारों ओर लगभग 24 मंदिर हैं। जिनमें नर्मदा मंदिर, शिव मंदिर, श्री राधा कृष्ण मंदिर, कार्तिकेय मंदिर, श्री राम जानकी मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, दुर्गा मंदिर, श्री सूर्यनारायण मंदिर, शिव परिवार, ग्यारह रुद्र मंदिर आदि प्रमुख हैं। ये मंदिर आगंतुकों को शाश्वत शांति प्रदान करते है। यहां आकर पर्यटक, सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण हो जाते हैं।
यहां नर्मदा नदी ठीक उल्टी दिशा में यानि कि पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। नर्मदा नदी को “मध्यप्रदेश और गुजरात की जीवनदायनी नदी” भी कहा जाता है क्योंकि यह नदी मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ दोनों ही राज्यों के लोगों के लिए अत्यंत उपयोगी है। यह जलोढ़ मिट्टी के उपजाऊ मैदानों से होकर बहती है, जिसे नर्मदा घाटी के नाम से भी जाना जाता है। यह घाटी लगभग 320 किमी में फैली हुई है।
एक ख़ास बात यह कि मां नर्मदा के परिसर में बने दो पाषाण मूर्ति खंडों के बीचों बीच नीचे से निकलने पर मां नर्मदा को शाष्टांग प्रणाम होता है। इस हाथीनुमा मूर्ति खंड के नीचे से पार करने पर भक्त अपने पापों के नष्ट होने की कामना करते हैं।
(2) कलचुरी कालीन मंदिर
मां नर्मदा कुंड के बाद ठीक इसके पीछे कल्चुरी मंदिर (kalchuri mandir) हैं। मोक्ष देवनाथ और पातालेश्वर इस काल के सबसे बेहतरीन कला के उदाहरण हैं। दरअसल नर्मदा कुंड (narmada kund) के पास ही दक्षिण दिशा में कलचुरी काल के मंदिरों का एक समूह है। अमरकंटक में कलचुरी कालीन मंदिर का निर्माण, कलचुरी नरेश कर्णदेव ने 1041-1073 ईसवीं के दौरान करवाया था। मंदिरों के इस समूह में कर्ण मंदिर और पातालेश्वर मंदिर शामिल है।
• कर्ण मंदिर - यह तीन गर्भ वाला मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। इसमें प्रवेश के लिए पांच मठ हैं। यह मंदिर बंगाल और आसाम के मंदिरों की तरह दिखाई देता है। सैलानियों के लिए यह मंदिर आकर्षण का केंद्र है।
• पातालेश्वर मंदिर - इस मंदिर का आकार पिरामिड जैसा है। यह पंचरथ नागर शैली में बना हुआ है। यह मंदिर भी सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
(3) श्री यंत्र मंदिर
नर्मदा कुंड से लगभग 1 किलोमीटर दूर सोनमुडा मार्ग पर
अमरकंटक का यह श्री यंत्र मंदिर (shri yantra mandir) स्थित है। बताया जाता है कि इस श्री यंत्र मंदिर का निर्माण सुकदेवानंद जी महाराज द्वारा किसी विशेष मुहूर्त में कराया गया था। इस मंदिर की आकृति हूबहू श्रीयन्त्र जैसी है यही कारण है कि इस मंदिर को श्री यंत्र मंदिर के नाम से ही जाना जाता है। अमरकंटक का श्री यंत्र मंदिर (amarkantak ka shri yantra mandir) इस तरह का यह एकमात्र मंदिर है जो हमारे देश के मध्य भाग में बनाया गया है।
श्री यंत्र मंदिर 1991 में शुरू किया गया था। इसके निर्माण कार्य से जुड़ी ख़ास बात यह है कि ज्योतिषी गणना के अनुसार गुरु पुष्य नक्षत्र में ही इस मंदिर के निर्माण को सबसे शुभ माना गया था। इसलिए इसका निर्माण कार्य लगभग 30 वर्षों से लगातार केवल शुभ मुहूर्त केवल गुरु पुष्य नक्षत्र के दिन ही किया जाता रहा है जो कि साल में केवल 4 या 6 दिनों के लिए ही आता है। इसका निर्माण करने के लिए शिल्पकारों को विशेष रूप से दक्षिण भारत और पश्चिम बंगाल से बुलाया गया था।
चार शीर्ष (सिर) वाले विशालकाय द्वार में प्रमुख रूप से देवी लक्ष्मी, सरस्वती, काली मां, भुवनेश्वरी देवी को स्थापित किया गया है। इसके ठीक नीचे भगवान गणेश और कार्तिकेय की मूर्ति के साथ 64 योगिनियों की मूर्तियां बनाई गई हैं। मंदिर को श्री यंत्र, श्री चक्र की 3 डी प्रक्षेपण के रूप में बनाया गया है। जो हिन्दू धर्म में श्री विद्या पूजा का मुख्य आधार माना जाता है। यह शाखा, देवी त्रिपूर सुंदरी की दिव्य शक्ति या तीनों लोकों की महारानी सुंदरता की पूजा करती है।
संक्षेप में कहें तो यह शक्ति की अवधारणा का ज्यामितीय प्रतिनिधित्व है। अमरकंटक के श्रीयंत्र महामेरु मंदिर की लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई 52 फुट है। इस अनूठे मंदिर में इंटरलॉकिंग त्रिकोण, साँप डाकू और एक घाटी से ऊपर उठने वाली, सभी को आश्चर्य चकित कर देने वाली वास्तुकला की संरचना का एक इंटरफ़ेस दिखाई देता है।
संपूर्ण मंदिर, प्राइमरी फोर्स, महाशक्ति का एक ज्यामितीय प्रतिनिधित्व है। यह दुनिया भर से आने वाले उपासकों और शुभचिंतकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। श्री यंत्र के आकार का ये मंदिर वास्तव में दुनिया भर के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। आप जब भी इस मंदिर को देखेंगे कुछ क्षणों के लिए सम्मोहित हो जाएंगे।
(4) सोन नदी उद्गम स्थल (सोनमुड़ा)
इसके बाद पहाड़ी रास्तों से चलते हुए सोनमुडा पहुंचा जाता है। यह स्थान सोन नदी का उद्गम स्थल है। इससे थोड़ी ही दूर पर भद्र का भी उद्गम स्थल है। दोनों ही आगे जाकर एक दूसरे से मिल जाती हैं। इसलिए इन्हें ‘सोनभद्र‘ भी कहा जाता है। सोन को ब्रह्माजी का मानस पुत्र भी कहा जाता है। यह नर्मदा नदी के उद्गम स्थल से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
सोनमुडा पहुंचने के बाद यहां से ढलान नुमा पतले सीढ़ीदार रास्ते से चलते हुए सोन नदी के उद्गम स्थल तक जाना होता है। यहां से पतली सुनहरी रंग की झिलमिल जलधारा के रूप में बहती सोन नदी, बड़ी जलधारा का रूप धारण करते हुए मैकल पर्वत श्रेणियों के घनघोर जंगलों को पार करती हुई एक विशाल सोन नदी का रूप धारण कर लेती है।
सोनभद्र लगभग 100 फ़ीट की पहाड़ी से झरने की तरह गिरती है। इतनी बड़ी ऊंचाई से गिरने वाली ये पतली सी जलधारा आगे जाकर सुनहरे रेत वाली नदी का रूप धारण कर लेती है। यही कारण है कि इसे सोन नदी के नाम से जाना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि सोनभद्र जलप्रपात से गिरने के बाद, धरती के अंदर ही अंदर 60 किलोमीटर दूर “सोनबचरबार” नामक स्थान पर दोबारा प्रकट होती है और आगे जाकर गंगा में मिल जाती है।
सोनमुडा के इस प्राकृतिक पर्यटन स्थल पर खड़े होकर सैलानी अनंत आकाश में दिखने वाले इस अप्रतिम सौंदर्य का भरपूर आनंद लेते हैं। हालांकि देखने में यह बड़ा ही विहंगम दृश्य होता है। ऊंचाई से खड़े होकर यह दृश्य देखने पर आपका मन आश्चर्य से भर जाता है। यह अद्भुत दृश्य आप नीचे दिए वीडियो में देख सकते हैं।
वैसे सोनमुड़ा में बंदरों की संख्या बहुत ज़्यादा है। ज़्यादातर बंदर आपके हाथों से सामान छुड़ा लेते हैं। इसलिए यहां पर सतर्क रहना पड़ता है। कई सैलानी इन्हें अपने हाथों से खिलाते हैं। कभी कभी तो बंदर पर्यटकों के कंधों पर सवार हो जाते हैं। पर्यटक भी इनकी हरकतों का भरपूर इनका लुत्फ़ उठाते हैं।
(5) माई की बगिया अमरकंटक
वैसे तो यह स्थान अपने आप में ही बड़ा पावन स्थल महसूस होता है। यह माई की बगिया हरे भरे और ऊंचे ऊंचे पेड़ों के बीच स्थित है। इस स्थान का नाम मां नर्मदा को समर्पित है। यहां आम केले और अनेक फल फूल के पौधे हुआ करते थे। कहा जाता है कि मां नर्मदा 12 वर्ष की कन्या के रूप में यहां अपनी सहेलियों के साथ खेला करती थी। मां नर्मदा की खास सहेली गुल बकावली हुआ करती थी। मां नर्मदा का बचपन इसी बगिया में खेलकूद करते हुए बीता था।
वैसे तो माई की बगिया को लेकर और भी कई स्थानीय कहानियां और किवदंतियां प्रचलित हैं। मां नर्मदा की यात्रा पर जाने वाले सैलानियों के लिए इस माई की बगिया (mai ki bagiya) का विशेष महत्व है। आज भी माई की बगिया में आपको अनेक आयुर्वेदिक जड़ी बूटी व दवाइयां देखने मिल जाती हैं। दूर दूर से आए सैलानी इन आयुर्वेदिक दवाओं का सेवन कर स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करते हैं।
(6) कपिल धारा जलप्रपात
कपिल धारा, पवित्र नर्मदा नदी का पहला जलप्रपात है। यह नर्मदा उद्गम कुंड से महज़ 6 किलोमीटर दूरी पर है। यहां नर्मदा नदी का पवित्र जल लगभग 100 फीट की ऊँचाई से नीचे गिरता है। इसके दर्शन करने के लिए सीढ़ीदार रास्ते से नीचे जाना पड़ता है। कपिल धारा का यह रूप देखकर पर्यटकों का मन प्रफुल्लित हो उठता है। झरनों से आती हुई आवाज़ें पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं। झरने के नीचे बैठकर यह दृश्य बड़ा ही मनमोहक और आश्चर्य जनक दिखाई देता है।
कपिल धारा के पास ही कपिल मुनि का आश्रम है। कहा जाता है कि कपिल मुनि ने यहां कठोर तप किया था और यहीं सांख्य दर्शन की रचना की थी। उन्ही के नाम पर इस जलप्रपात का नाम कपिल धारा पड़ा।
कपिलेश्वर मंदिर के आसपास अनेक गुफ़ाएं है जहां साधू संत ध्यान मुद्रा में देखे जा सकते हैं। कपिलधारा में नर्मदा नदी का एक छोर अमरकंटक में और दूसरा छोर डिंडोरी ज़िले में आता है। कपिलधारा वाटरफॉल, अमरकंटक जाने वाले लोगों के लिए एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र है।
(7) दूध धारा जलप्रपात
अमरकंटक के पास ही यह प्रपात कपिल धारा से लगभग 1 किलोमीटर नीचे जाने पर मिलता है। इसकी ऊंचाई 10 फुट है। कहा जाता है यहां दुर्वासा ऋषि ने तपस्या भी की थी। इसलिए इस प्रपात को दुर्वासा धारा भी कहा जाता है। यहां पर पवित्र नर्मदा नदी, दूध के समान सफ़ेद दिखाई देती है। इसलिए इस प्रपात को ‘दूधधारा‘ कहा जाता है। स्थानीय लोग इस झरने के रंग की तुलना दूधिया सफ़ेद रंग से करते हैं।
अमरकंटक में स्थित दूधधारा प्रपात भारत में सबसे सुंदर झरनों में से एक है। किसी नदी का दूध की तरह सफ़ेद होना हैरान कर देने वाली बात लगती है। लेकिन दूधधारा जलप्रपात को देखकर प्रकृति के अनूठे रूपों पर और भी ज़्यादा यक़ीन हो जाता है। हमें पूरा यक़ीन है कि आप इस झरने को देखकर इसकी सुंदरता से मंत्रमुग्ध हुए बिना नहीं रह पाएंगे।
(8) कबीर कोठी
कबीर कोठी अमरकंटक के सबसे प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। यह वह जगह है जहाँ, प्रसिद्ध संत कबीर ने कई वर्षों तक यहां के हरे-भरे और शांत वातावरण के बीच रहकर ध्यान किया था। कबीर कोठी प्राचीन कलाओं के नमूने और अपनी ख़ूबसूरती के लिए पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने की कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ती।
(9) श्री ज्वालेश्चर मंदिर
यह मंदिर अमरकंटक-शहडोल रोड पर 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहीं से अमरकंटक की तीसरी नदी जोहिला की उत्पत्ति हुई है। यहां भगवान शिव का सुंदर मन्दिर है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ स्थित शिवलिंग स्वयं भगवान शिव ने स्थापित किया था। पुराणों में इस स्थान को महारुद्र मेरु भी कहा गया है। यहां भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ निवास किया था। यह मंदिर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित है।
(10) धूनी पानी अमरकंटक
अमरकंटक में नर्मदा मंदिर से 4 किलोमीटर दक्षिण में धुनी पानी नामक तीर्थ स्थल है। कहा जाता है कि एक बार एक ऋषि तपस्या कर रहे थे और पास ही उनकी धूूनी जल रही थी तभी धुनी वाले स्थान से पानी निकला और धुनी को शांत कर दिया। तभी से इस स्थान का नाम धुनी पानी पड़ गया। आज भी यहां एक कुंड और बग़ीचा है। यहां नर्मदा परिक्रमा वासियों के लिए आश्रम की व्यवस्था है, जहां वे रुक सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस कुंड का पानी औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके पानी में स्नान करने से असाधारण रोग ठीक हो जाते हैं।
इसके अलावा यहां अमरेश्वर महादेव मंदिर, संत कबीर चबूतरा, भृगु कमंडल, चंडिका गुफा, बेहगढ़ नाला श्री गणेश मंदिर आदि जगहें भी घूमने के लिए काफी प्रसिद्ध हैं।
(11) सर्वोदय जैन मंदिर अमरकंटक
यह मन्दिर लाल पत्थरों से लगातार पिछले 20 वर्षों से, आधुनिक निर्माण कला में, प्राचीन पद्धति के अनुसार बनाया जा रहा है जो कि अद्वितीय जान पड़ता है। इतनी बड़ी भव्य संरचना को बिना लोहे और सीमेंट के इस्तेमाल से बनाया जा रहा है। यह केवल चुना गोंद एवं प्राचीन तकनीक के द्वारा बनाया जा रहा है। अमरकंटक के दर्शन (amarkantak ke darshan) के लिए आने वाले पर्यटक इस अमरकंटक जैन मंदिर (amarkantak. jain mandir) को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाया करते हैं।
यहां पर जैन मंदिर के गर्भगृह में भगवान आदिनाथ की पंचधातु से निर्मित, 24 टन वजनी मूर्ति को 17 टन वजनी अष्ट धातु के कमाल सिंहासन पर स्थापित किया गया है। इस प्रतिमा को मुनिश्री विद्यासागर जी ने 6 नवंबर 2006 को विधिवत स्थापित किया था। मंदिर की संरचना और स्वरूप को देखकर इसकी भव्यता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। यह अभी भी निर्माणाधीन है। निर्माण कार्य लगातार चल रहा है।
(12) श्री कल्याण सेवा आश्रम अमरकंटक
अमरकंटक में श्री कल्याण सेवा आश्रम सबसे बड़े और ख़ूबसूरत आश्रमों में से एक है। यह आश्रम दक्षिण भारतीय शैली के मंदिरों की तर्ज़ पर बनाया गया है। इस आश्रम की नींव सन 1978 में रखी गई थी जो 1984 में बनकर तैयार हुआ। जिसका जीर्णोद्धार करने के बाद अब यह आश्रम और भी ख़ूबसूरत लगने लगा है। इस आश्रम का एक छोटा अनुपम नज़ारा अपा नीचे दिए वीडियो को क्लिक कर देख सकते हैं।
इस आश्रम के अंदर बने ख़ूबसूरत मंदिर में प्रवेश करते ही पर्यटकों को अद्भुत सकारात्मक ऊर्जा महसूस होने लगती है। इस ऊर्जा के कारण की बात करें तो इस मंदिर में पिछले 28 सालों से लगातार अखंड चंडी पाठ किया जा रहा है। इस अखंड पाठ में लगभग 17-18 पंडित जुटे हुए हैं। जो बारी बारी से 1-2 घंटा अखंड पाठ करते हैं ताकि यह पाठ अनवरत चलता रहे। प्रतिदिन शाम को यहां यज्ञ और हवन भी किया जाता है।
यह आश्रम, गुरु कल्याण दास जी के नाम पर बनाया गया है। गुरु कल्याण दास जी की तपस्थली मूल रूप से पश्चिम उड़ीसा की है। जहां इनकी अनेक शाखाएं संचालित की जाती हैं। अमरकंटक के इस आश्रम में छात्रावास भी है जहां निर्धन बच्चों की देखभाल व पढ़ाई लिखाई का पूरा ख़र्चा उठाया जाता है। इस आश्रम की ओर से कुछ विद्यालय, दवाखाने व गौशालाओंं का संचालन भी किया जा रहा है।
यहां पर ट्रस्ट से जुड़े मेंबर्स के लिए रुकने की व्यवस्था भी है। इसके बाद भी यदि कमरे ख़ाली रह जाएं तब पर्यटकों के लिए भी कमरे उपलब्ध किए जाते हैं। इस आश्रम में आकर आपको मानसिक शांति और सुकून महसूस होगा। अमरकंटक भ्रमण पर जब भी आना हो, श्री कल्याण सेवा आश्रम में आकर यहां की अलौकिक शांति व ऊर्जा का अनुभव अवश्य करें।
नर्मदा और सोनभद्र की कहानी
यदि हम मां नर्मदा और सोन से जुड़ी कहानी की बात करें तो एक जनश्रुति के अनुसार मां नर्मदा और सोन का विवाह तय हुआ था। जिसकी सारी तैयारियां हो चुकी थीं। और विवाह स्थल माई के मंडप को चुना गया था। बारात की तैयारी भी हो चुकी थी। बारात आयी या नहीं, यह देखने मां नर्मदा ने अपनी एक सखी को भेजा। लेकिन सखी ने जब सोन को देखा तो वह ख़ुद नर्मदा का रूप लेकर मंडप में बैठ गई।काफ़ी इंतजार के बाद भी जब बारात का पता नहीं चला तो नर्मदा स्वयं ही देखने मंडप पहुंची। तब उसे पता चला कि सोन और उसकी सखी विवाह मंडप में बैठे हुए हैं। इस दृश्य को देखकर नर्मदा अपना आपा खो चुकी थी। और गुस्से में वह वहां से उल्टी दिखा में निकल पड़ी। तब से नर्मदा नदी और सोन नदी एक दूसरे के विपरित दिशा में बहती हैं। नर्मदा नदी हमारे देश की एक मात्र ऐसी नदी है जो पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर बहती है। इसलिए मां नर्मदा की परिक्रमा को विशेष महत्व दिया जाता है।
अमरकंटक में पायी जाने वाली आयुर्वेदिक दवाईयां
अमरकंटक कई प्रकार के पाए जाने वाले आयुर्वेदिक पौधों के लिए भी मशहूर है। लोगों द्वारा यह भी कहा जाता है कि यहां पर पाए जाने वाले आयर्वेदिक पौधों में जीवन देने की शक्ति है। यहां आने वाले पर्यटकों को अनेक बीमारियों के उपचार स्वरूप आयुर्वेदिक दवाइयां, जड़ी बूटियां आदि आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। अमरकंटक आयुर्वेद के लिए विशेष तौर पर जाना जाता है।
लेकिन अमरकंटक क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक पौधे जैसे कि गुलाबकवाली और काली हल्दी के पौधे अब गायब होने की कगार पर हैं। गुल बकावली घनी छांव में दलदली जगह और सा़फ पानी में उगता है। यह ज़्यादातर सोनमुडा, कबीर चबूतरा, दूध धारा और अमरकंटक के कुछ बगीचों में पाया जाता है। तो वहीं काली हल्दी का उपयोग अस्थमा, मिरगी, गठिया और माइग्रेन आदि के उपचार के लिए किया जाता है। इतने उपयोगी पौधों का ख़त्म होना ज़रूर अब चिंता का विषय बन गया है।
अमरकंटक कैसे पहुंचा जा सकता है? (How to reach amarkantak in hindi)
यहां पहुंचने की दृष्टि से देखा जाए तो यहां से जबलपुर शहर का सबसे नज़दीकी एयरपोर्ट है। तो वहीं रेलमार्ग से अनूपपुर और पेंड्रा रेलवे स्टेशन सबसे नज़दीकी स्टेशन है। सड़क मार्ग की दृष्टि से पेंड्रा रोड, बिलासपुर और शहडोल बस सुविधा से जुड़े हुए हैं।
हवाईजहाज से :
मध्यप्रदेश में अमरकंटक से सबसे नज़दीकी एयरपोर्ट जबलपुर डुमना हवाईअड्डा है जो कि लगभग 245 किमी दूर है। दूसरी तरफ़ रायपुर छत्तीसगढ़ 230 किलोमीटर दूर है। वहां से आप कैब या प्राइवेट गाड़ी बुक करके भी अमरकंटक तक पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग से :
अमरकंटक मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सड़कों से सीधा जुड़ा हुआ है। यहां आने के लिए बिलासपुर, जबलपुर की ओर से आसानी से आ सकते हैं। अमरकंटक से जबलपुर 245 किमी, बिलासपुर 125 किमी, अनूपपुर 72 किमी और शहडोल 100 किमी की दूरी पर है।
आप यहां से जबलपुर और रीवा के लिए आसानी से बस ले सकते हैं जो अमरकंटक से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं या पेंड्रा रोड से अमरकंटक के लिए राज्य के अन्य हिस्सों में जाने वाली बसें ले सकते हैं।
रेल मार्ग से :
अगर आपको रेल से अमरकंटक पहुंचना हो तो अमरकंटक से 17 किमी पर स्थित पेंड्रा रेलवे स्टेशन अमरकंटक के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन है। यहां पहुंचने के लिए
बिलासपुर रेल सबसे सुविधाजनक है। अन्य रेलमार्ग अनूपपुर भी है।
अमरकंटक में रुकने की व्यवस्था
यहां पर्यटकों के रुकने के लिए कल्याण आश्रम, बर्फानी आश्रम, अरण्डी आश्रम सहित और भी कई प्राइवेट होटल उपलब्ध हैं। अब आप यहां 1-2 दिन रुककर आराम से अमरकंटक के दर्शनीय स्थलों (amarkantak ke darshniya sthal) का बेहतर आनंद ले सकते हैं। अब अमरकंटक दर्शन (amarkantak darshan) के लिए दूर दूर से आए सैलानियों को रात्रि में रुकने के लिए किसी प्रकार की चिंता की कोई ज़रूरत नहीं है। अब यहां आश्रम और प्राइवेट होटलों में आसानी से कमरे उपलब्ध हो जाया करते हैं। अब आप बेफ़िक्र होकर फुर्सत से परिवार सहित अमरकंटक यात्रा (amarkantak yatra) के लिए आ सकते हैं।
अमरकंटक से जुड़ी कुछ ख़ास बातें
अमरकंटक की ख़ासियत यह है कि यहां टीक और महुए के पेड़ बहुतायत में पाए जाते हैं। अमरकंटक की इतिहास की बात करें तो इसका इतिहास लगभग छह हज़ार साल पुराना बताया जाता है, जब सूर्यवंशी शासक ने मन्धाता शहर की स्थापना की थी।
इससे जुड़ी हुई एक और उपलब्धि यह है कि अमरकंटक के बायो रिज़र्व (amarkantak biosphere reserve) को यूनेस्को ने अपनी सूची में शामिल किया है। यहां की ख़ास बात यह है कि यहां घूमने के लिए किसी भी मौसम में आया जा सकता है।
पुराणों में बताया गया है कि इस नदी के पत्थरों में शिवलिंग स्वयं प्राण प्रतिष्ठित रहते हैं यानि उनमें भगवान शिव का अंश माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसे नियमित रूप से स्नान कराने और पूजा करने से घर के सभी दोष दूर हो जाते हैं। साथ ही ग्रह बाधाएं भी दूर होती हैं।
नर्मदा नदी दूसरी नदियों से अलग पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। यह भारत की एक मात्र ऐसी नदी है जो पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है। यह ढलान की बजाय ऊंचाई की ओर बहती है, जो की सबको चौंकाने वाली बात लगती है।
अमरकंटक में मनाया जाने वाला मुख्य उत्सव
हर साल अमरकंटक में नर्मदा जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है। इस अवसर पर पूरे अमरकंटक को सजाया जाता है। यूं कहिए कि पूरी की पूरी अमरकंटक पर्यटन नगरी (amarkantak paryatan nagri) भगवा रंग में रंग जाती है। भजन और देवी गीत गाते हुए शोभा यात्रा निकाली जाती है। रात को नर्मदा नदी उद्गम स्थल (narmada nadi udgam sthal) पर महा आरती की जाती है। इस दिन यहां एक विशाल मेला भी लगता है जिसका लुत्फ़ उठाने दूर–दूर से भक्त और पर्यटक यहां आते हैं।
वैसे तो आप यहां साल में कभी भी आ सकते हैं लेकिन अक्टूबर से मार्च के बीच अमरकंटक का दृश्य (amarkantak ka drashya) बेहद ख़ूबसूरत होता है। जून-जुलाई में हुई बारिश से यहां के जलप्रपात भर जाते हैं। जिस कारण यहां चलने वाली हवाएं और भी ज़्यादा ठंडी हो जाती हैं।
आपको अमरकंटक के मंदिर (amarkantak ke mandir) की शांति और एक नई उर्जा का अनुभव लेने के लिए कम से कम एक बार अमरकंटक नर्मदा दर्शन (amarkantak narmada darshan) ज़रूर करना चाहिए।
दोस्तों अब तो आप समझ ही गए होंगे कि अमरकंटक क्यों प्रसिद्ध है (amarkantak kyon prasiddha hai?) हमने इस लेख के माध्यम से अमरकंटक दर्शनीय स्थल (amarkantak darshniya sthal) से जुड़ी दिलचस्प जानकारियों को आप सभी तक पहुंचाने की पुरज़ोर कोशिश की है।अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर ज़रूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें हमारी वेबसाइट 'चहलपहल' के साथ। और हां, अमरकंटक नर्मदा नदी से जुड़ी अन्य कोई ख़ास जानकारी हो तो आप कमेंट्स के माध्यम से शेयर कर सकते हैं।
(- By Alok)
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