क्या अपने अधूरे सपनों को बच्चों पर थोपना सही है? | क्या आप भी अपनी अधूरी इच्छाओं को अपने बच्चों पर जबरन थोपने की ग़लती कर रहे हैं?
माता–पिता के जीवन का सबसे बड़ा सपना होता है कि उनके बच्चे सफल, खुशहाल और समाज में सम्मानित व्यक्ति बनें। हर माता–पिता चाहते हैं कि उनका बेटा या बेटी जीवन में उनसे भी अधिक ऊँचाई प्राप्त करे। यह स्वाभाविक है कि अभिभावक अपने अनुभवों, इच्छाओं और अधूरे सपनों को बच्चों के जीवन में साकार होते देखना चाहते हैं।
आमतौर पर बच्चों पर अपनी इच्छाएँ, सपने, या फैसले थोपना सही नहीं माना जाता क्योंकि यह उनकी स्वतंत्र सोच और व्यक्तित्व के विकास को रोक सकता है। लेकिन यदि आप "थोपने" से तात्पर्य अनुशासन, अच्छे संस्कार, बच्चों के लिए अच्छी आदतें या सही दिशा देना मान रहे हैं, तो इसमें कुछ सकारात्मक फ़ायदे भी हो सकते हैं।न
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1. अनुशासन की आदत :
जब माता–पिता बच्चों पर समय से पढ़ने, सोने, उठने या काम करने की आदत थोपते हैं, तो उनमें अनुशासन विकसित होता है।
2. सही और गलत का ज्ञान :
छोटे बच्चे खुद निर्णय लेने की स्थिति में नहीं होते। ऐसे में माता–पिता द्वारा अच्छे मूल्य और नियम थोपने से उन्हें नैतिकता और सही राह मिलती है।
3. बुरी आदतों से बचाव :
यदि बच्चा टीवी, मोबाइल या गलत संगति की ओर झुकता है, तो माता–पिता का सख़्ती से रोकना (थोपना) उसे नुक़सान से बचाता है।
4. स्वस्थ जीवनशैली :
समय पर खाना, पौष्टिक आहार, खेल-कूद और व्यायाम जैसी बातें थोपने से बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास सही होता है।
5. भविष्य की तैयारी :
माता–पिता का अनुभव बच्चों से कहीं अधिक होता है। इसलिए शिक्षा, कैरियर या जीवन के फ़ैसलों में माता–पिता की ज़बरदस्ती कभी-कभी बच्चों को ठोकर खाने से बचा लेती है।
6. संस्कार और परंपराएँ जीवित रहना :
परिवार और समाज की अच्छी परंपराएँ बच्चों पर थोपी जाती हैं तभी तो ये परंपराएं आने वाली पीढ़ी तक उसी शालीनता से पहुँचती हैं।
उपरोक्त बातों अथवा नियमों को अपने बच्चों पर थोपना, उनके लिए जीवनभर फ़ायदेमंद साबित होता है। यदि ये नियम बच्चों के अनुशासन, आदर्श, अच्छे संस्कार और उनकी अच्छी आदतों के साथ एक अच्छी परवरिश के लिए सहायक साबित हों।
लेकिन अधिकतर यही देखने में आता है कि माता पिता जो लक्ष्य ख़ुद पूरा नहीं कर पाते। वही लक्ष्य वे अपने बच्चों से पूरा कराना चाहते हैं। मेरे ख़याल से यह सोचना माता-पिता के नज़रिए से कुछ ग़लत भी नहीं है। लेकिन बच्चों के नज़रिए से देखा जाए तो, यह ग़लत भी हो सकता है। माता–पिता द्वारा अपने सपनों (dreams) को जबरन, अपने बच्चों पर थोपे जाने से बच्चों के व्यक्तित्व, मानसिक स्वास्थ्य और आपसी रिश्तों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
दोस्तों यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय है। ज़रा सोचिए, ज़बरदस्ती अपनी अधूरी इच्छाएँ बच्चों पर लादना कहां तक सही है। उनकी अपनी रुचि, क्षमता और व्यक्तिगत सोच को दबाने से केवल नुक़सान ही हो सकता है। अपने सपनों (dreams) को बच्चों पर थोपना क्यों सही नहीं है? आइए इसके कुछ कारण जानते हैं -
अपने अधूरे ड्रीम्स बच्चों पर थोपने के नुक़सान
बच्चों पर अपने सपने थोपने के नुक़सान (bachchon par apne sapne thopne ke nuksan) निम्न हो सकते हैं -
1. बच्चे की रुचि और प्रतिभा दब जाती है-
हर बच्चा अद्वितीय होता है। उसकी अपनी रुचि, क्षमता और सोच होती है। किसी को संगीत पसंद होता है, तो किसी को खेलों में रुचि। किसी को विज्ञान तो किसी को साहित्य में रुचि होती है। यदि माता–पिता बच्चे की रुचियों को समझने के बजाय, उन पर अपने सपने थोपते हैं, तो बच्चा अपनी असली पहचान और प्रतिभा खो सकता है।
हो सकता है माता–पिता कभी डॉक्टर बनना चाहते थे लेकिन नहीं बन पाए। लेकिन अब वे अपने बच्चे को उसी क्षेत्र में धकेलते हैं, तो हो सकता है बच्चा कला, खेल या किसी और प्रतिभा में परिपूर्ण हो। लेकिन माता-पिता के सपने की वजह से उसे अपना मनपसंद कैरियर चुनने में असफलता हाथ लग सकती है।
2. मानसिक दबाव और तनाव बढ़ता है-
जब बच्चे पर थोपे गए सपनों को पूरा करने का बोझ होता है, तो वह मानसिक दबाव महसूस करता है। छोटी उम्र से ही उसे यह डर सताने लगता है कि वह माता–पिता के अधूरे सपनों को पूरा कर पाएगा या नहीं।
इससे बच्चे में तनाव, चिड़चिड़ापन, चिंता (anxiety), आत्मविश्वास की कमी और अवसाद (depression) तक हो सकता है। कई बार बच्चे का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है जिस कारण वह अपनी पढ़ाई या जीवन में रुचि खो बैठता है।
3. असफलता का अपराधबोध-
अगर बच्चा माता-पिता के सपनों को पूरा नहीं कर पाता, तो उसे अपराधबोध (guilt) होता है और वह ख़ुद को असफल मानने लगता है, जबकि हो सकता है उसकी असली क्षमता किसी और क्षेत्र में हो। दरअसल जब बच्चा अपनी रुचि के बजाय माता–पिता की इच्छाओं के अनुसार पढ़ाई या कैरियर चुनता है, तो उसमें सफलता की संभावना कम हो जाती है।
इस अपराधबोध के कारण वह ख़ुद को असफल मानने लगता है, जबकि हो सकता है किसी दूसरे क्षेत्र में वही बच्चा बेहद सफल हो सकता था। लेकिन माता पिता की ज़िद के चलते उस बच्चे को अपनी रुचि, अपनी प्रतिभा और अपना मनपसंद कैरियर दांव पर लगाना पड़ता है।
4. जीवन में खुशी और संतोष की कमी-
जीवन का मक़सद केवल पैसा कमाना अथवा समाज में बड़ा नाम बनाना ही नहीं है। बल्कि सही मायने में असली ख़ुशी तब मिलती है जब इंसान अपनी रुचि और दिलचस्पी के अनुसार काम करता है।
यदि बच्चा वह काम करने लगे जिसमें उसका मन ही न हो, तो वह चाहे कितनी भी ऊँचाई पर पहुँच जाए, वह सदैव ही भीतर से ख़ालीपन और असंतोष महसूस करेगा। ऐसी स्थिति उस व्यक्ति के पूरे जीवन को बोझिल बना सकती है।
5. आपसी रिश्तों में दरार-
बच्चों पर सपने थोपने का एक बड़ा नुक़सान यह भी है कि माता–पिता और बच्चों के रिश्तों में दूरी बढ़ने लगती है। जब बच्चा महसूस करता है कि उसके माता–पिता उसकी इच्छाओं और सपनों को महत्व नहीं देते, तो उसके मन में नाराज़गी पैदा हो जाती है।
धीरे–धीरे यह नाराज़गी बढ़कर गुस्से और दूरी में बदल सकती है।
कई बच्चे माता–पिता से अपने दिल की बातें साझा करना छोड़ देते हैं और उनसे भावनात्मक रूप से कट जाते हैं। फ़िर वे माता-पिता के सपनों के लिए जीने वाली किसी मशीन की तरह ही रहते हैं। जिसमें केवल औपचारिकताएं ही शेष रह जाती हैं। रिश्ते की मिठास ख़त्म हो चुकी होती है।
6. रचनात्मकता और मौलिकता का नाश-
कोई बच्चा बड़ा होकर तभी समाज को कुछ नया दे सकता है जब उसे अपनी क्षमताओं को पहचानने और रुचि के अनुसार काम करने की आज़ादी मिले। लेकिन यदि माता-पिता द्वारा, अपने बच्चों को सपने थोपे जाएँगे, तो उनकी रचनात्मकता और मौलिकता ख़त्म हो जाएगी।
यदि बच्चे पर माता–पिता अपने सपनों का बोझ यूं ही डालते रहेंगे, तो उसकी रचनात्मक सोच दब जाती है। वह केवल वही करता है जो उससे अपेक्षा की जाती है। इससे समाज भी उस योगदान से वंचित रह जाता है जो वह बच्चा अपनी असली रुचि व क्षमता के अनुसार काम करके किसी अन्य क्षेत्र में दे सकता था।
7. आत्मनिर्भरता की कमी-
जब बच्चा अपने फ़ैसले ख़ुद लेने के बजाय माता–पिता के थोपे गए निर्णयों पर चलता है, तो उसकी स्वतंत्र सोचने और निर्णय लेने की क्षमता कमज़ोर कमज़ोर हो जाती है। वह हर समय दूसरों पर निर्भर रहने लगता है। इससे वह आगे चलकर जीवन की चुनौतियों का सामना करने में असमर्थ हो सकता है और हर बार दूसरों से मार्गदर्शन की अपेक्षा करने लगता है।
8. तुलना और हीनभावना-
अक़्सर माता–पिता बच्चों पर अपने अधूरे सपने थोपते हुए उन्हें दूसरों से तुलना करने लगते हैं जैसे, “देखो, शर्मा जी का बेटा इंजीनियर बन गया, तुम्हें भी बनना है।” हम आपको बता दें कि इस प्रकार की तुलना बच्चों में हीनभावना (inferiority complex) पैदा करती है। वे ख़ुद को दूसरों से कमतर समझने लगते हैं और उनकी आत्म–छवि कमज़ोर हो जाती है।
9. विद्रोह की भावना-
हर बच्चा एक सीमा तक ही दबाव सहन कर सकता है। जब दबाव बहुत बढ़ जाता है, तो कई बच्चे विद्रोही बन जाते हैं। वे माता–पिता की बातों के ख़िलाफ़ खड़े हो जाते हैं, घर से दूर जाने लगते हैं या नकारात्मक आदतों का शिकार हो जाते हैं। यह स्थिति पूरे परिवार के लिए हानिकारक साबित होती है।
10. समाज में असंतुलन-
अगर हर माता–पिता अपने अधूरे सपनों को बच्चों पर थोपेंगे, तो बहुत सारे बच्चे मजबूरी में एक ही तरह के कैरियर चुनेंगे। उदाहरण के तौर पर सभी, डॉक्टर, इंजीनियर या वकील बनना चाहेंगे। इससे न केवल प्रतिस्पर्धा अस्वस्थ हो जाएगी बल्कि समाज में विविधता और संतुलन भी बिगड़ जाएगा। साथ ही कला, साहित्य, खेल, अनुसंधान, उद्यमिता जैसे कई क्षेत्र ख़ाली रह जाएँगे।
निष्कर्ष (Conclusion)
माता–पिता का सपना यह होना चाहिए कि उनका बच्चा अपनी रुचि, क्षमता और मेहनत के बल पर आगे बढ़े और जीवन में संतुष्ट और ख़ुशहाल रहे।
अपने अधूरे सपनों को बच्चों पर थोपना उनके लिए बोझ बनने जैसा है। इसका परिणाम यह होता है कि बच्चे अपनी असली पहचान खो बैठते हैं जिसके चलते रिश्तों में दरार आती है और उनका मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ता चला जाता है।
माता-पिता का असली काम है बच्चों की इच्छाओं को समझना, उन्हें अच्छी दिशा देना, अवसर उपलब्ध कराना और उन्हें उनकी रुचि के अनुसार आगे बढ़ने में मदद करना। अपने अधूरे सपने थोपने के बजाय, बच्चों को अपने सपने चुनने की आज़ादी देनी चाहिए।
याद रखें, आपके बच्चे का जन्म, सिर्फ़ आपके अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए ही नहीं हुआ है। बल्कि उसका जन्म अपनी पहचान बनाने और अपनी मंज़िल पाने के लिए हुआ है। बच्चों की अपनी पसंद, नापसंद और महत्वाकांक्षाएं होती हैं। जिन्हें पाने के लिए माता पिता को मार्गदर्शन करना चाहिए।
उम्मीद है हमारा यह लेख "अपने अधूरे ख़्वाबों को बच्चों पर थोपना सही है या ग़लत" आपको ज़रूर पसंद आया होगा। हम आशा करते हैं कि आप भी अपने बच्चों को उनके सपनों से मिलाने का प्रयास ज़रूर करेंगे न कि जबरन अपने अधूरे ख़्वाबों को पूरा करने के लिए उन पर दबाव डालेंगे।
(- By Alok Khobragade)
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