रिश्तों को बनाए रखने के लिए संवाद कितना ज़रूरी है? | Talking is the only way to make a difference !!
दोस्तों बिल्कुल सही समझा अपने। "बात करने से ही बात बनती है।" आज हम इस बात को इस लेख के माध्यम से साबित भी करने वाले हैं। दरअसल यह एक ऐसा सच है जिसे जानते और समझते तो सभी हैं लेकिन जब उन पर ऐसा मौक़ा आ जाए तब सबसे पहले वही सामने वाले से बात करना बंद कर देते हैं।इतिहास गवाह है ऐसे अनेक लोग मिल जाएंगे जिनके रिश्ते सिर्फ़ इसीलिए हमेशा के लिए बिगड़ गए क्योंकि उन्होंने नाराज़गी के बाद आपस में बात ही नहीं की। बस अपने सवालों के जवाब ख़ुद से बनाते रहे। और आप तो जानते हैं कि अपने सवालों के जवाब हम अपनी सोच और मूड के हिसाब से बना लेते हैं। जो कि हमारे ही फ़ेवर में होते हैं। छोटी-छोटी बातें अगर समय पर बातचीत से साफ़ कर ली जाएं तो वे बड़े विवाद या बैर का रूप धारण नहीं करती। वर्ना समय के साथ-साथ यह बैर और भी कड़वा और ज़हरीला बनता जाता है।
दोस्तों आप जब भी किसी से रूठते हैं या झगड़ा करते हैं। सबसे पहले आपस में बात करना बंद कर देते हैं।
काश ऐसा करने के बजाय थोड़ा रुककर, गुस्सा शांत होने के बाद, आपस में एक बार और बात कर लेते तो शायद ग़लत फ़हमियां दूर हो जातीं। क्योंकि तनाव या गुस्से में बात करना अक़्सर स्थिति को और भी बिगाड़ देता है। अहंकार और गुस्सा हावी होने से बातचीत के दौरान झगड़े या आरोप-प्रत्यारोप ज़्यादा होते हैं। और ग़लतफ़हमिया ख़त्म होने के बजाय बढ़ सकती हैं।
चलिए इस चर्चा को आगे बढ़ाते हैं और कुछ दिलचस्प यादों को आपसे शेयर करते हुए जानते हैं कि क्या सचमुच "बात करने से बात बनती है? (Baat karne se baat banti hai?)
बात करने से बात बनती है (Baat karne se hi baat banti hai)
दोस्तों मानव जीवन संवाद पर आधारित है। परिवार, समाज, मित्रता, व्यापार, राजनीति। यूं कहिए कि हर क्षेत्र में संवाद ही आधारशिला है। यदि व्यक्ति अपनी भावनाओं, विचारों और समस्याओं को सही तरीक़े से व्यक्त करे तो अनेक उलझनें सरल हो सकती हैं। इसी सत्य को एक कहावत के रूप में कहा गया है- “बात करने से बात बनती है।” यह विशिष्ट कथन केवल भाषा का महत्व नहीं बताता, बल्कि संबंधों, सहयोग और समझदारी की बुनियाद को भी दर्शाता है।
वैसे हम आपको एक और चीज़ बता दें कि सिर्फ़ बात करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि सही तरीक़े से बात करना भी ज़रूरी है। संवाद की कला में धैर्य, सम्मान और स्पष्टता तीनों का होना ज़रूरी है। यदि हम अपनी बात रूखे अंदाज़ में कहें, तो सामने वाला आहत हो सकता है। लेकिन यदि हम विनम्रता और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ बात करें, तो वही संदेश दिल तक पहुँचता है।
आज के समय में संवाद एक चुनौती
दोस्तों आज की व्यस्त जीवनशैली और डिजिटल युग में आमने-सामने बातचीत कम हो गई है। लोग मोबाइल और सोशल मीडिया पर तो जुड़े रहते हैं, लेकिन अपने क़रीबी लोगों के साथ दिल से बातचीत करने का समय नहीं निकाल पाते। इससे आपसी रिश्तों में दूरी और तनाव बढ़ता है। इसलिए आवश्यक है कि तकनीक के साथ-साथ हम व्यक्तिगत संवाद को भी महत्व दें। आइए जानते हैं कि रिश्तों में संवाद क्यों ज़रूरी है (rishton me sambad kyon zaruri hai?) मानव जीवन में संवाद (बातचीत) का क्या महत्व है?
रिश्तों को बनाए रखने के लिए बातचीत का महत्व
मानव जीवन में संवाद सबसे बड़ी ताक़त है। मनुष्य अन्य जीवों से अलग इसलिए है क्योंकि वह अपनी भावनाओं और विचारों को शब्दों के माध्यम से स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकता है। संवाद से हम एक-दूसरे को समझते हैं, सीखते हैं और आगे बढ़ते हैं। जब दो या दो से अधिक लोग आपस में बैठकर बातचीत करते हैं, तो ग़लत फ़हमियां दूर होती हैं और नए समाधान निकलते हैं। आइए जानते हैं कि आपसी संवाद का क्या महत्व है?
1. परिवार में संवाद का महत्व-
परिवार में सबसे अधिक झगड़े ग़लतफ़हमियों से ही जन्म लेते हैं। माता-पिता और बच्चों के बीच, पति-पत्नी के बीच या भाई-बहनों के बीच अक़्सर छोटी-छोटी बातों पर दूरी आ जाती है। यदि परिवार के सदस्य आपस में बैठकर खुलकर चर्चा करें, अपनी भावनाएँ साझा करें और एक-दूसरे की बात को सुनें, तो समस्याएँ आसानी से हल हो सकती हैं।
उदाहरण के लिए, यदि बच्चा पढ़ाई में ध्यान नहीं दे रहा है और माता-पिता केवल डांटते हैं, तो स्थिति बिगड़ सकती है। लेकिन यदि वे बच्चे से प्यार से बात करें, उसकी कठिनाइयाँ समझें और मार्गदर्शन दें, तो सुधार जल्दी होता है। ठीक वैसे ही बच्चों को भी चाहिए कि वे अपनी समस्याओं को खुलकर अपने मातापिता से कहें। क्योंकि उनकी समस्या माता-पिता से बेहतर कोई भी नहीं समझ सकता है।
2. मित्रता में संवाद का महत्व-
मित्रता का आधार ही संवाद है। मित्र चाहे कितने भी पुराने हों, यदि वे एक-दूसरे से बात करना बंद कर दें, तो उनका ये रिश्ता कमज़ोर पड़ने लगता है। एक फ़ोन कॉल, एक संदेश या छोटी-सी बातचीत भी रिश्तों को मज़बूत और ताज़ा बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है। वहीं, यदि लंबे समय तक। दोस्तों के बीच चुप्पी बनी रहे, तो उनके रिश्ते में दूरी बढ़ती जाती है।
3. पति-पत्नी के बीच संवाद का महत्व-
हर रिश्ता संवाद पर ही टिका होता है। जब दो लोग एक-दूसरे से खुलकर बात करते हैं, तो उनके बीच विश्वास पनपता है। इसी तरह वैवाहिक जीवन में संवाद का होना बेहद ज़रूरी है। पति-पत्नी के रिश्ते में विश्वास और अपनापन तभी पनपता है जब वे साथ बैठकर आपस में अपने सुख-दुःख साझा करते हैं।उनके बीच यदि संवाद का अभाव हो, तो चाहे रिश्ता कितना भी पुराना क्यों न हो, वह कमज़ोर और नीरस होने लगता है।
आजकल के फास्ट लाइफ़स्टाइल और सोशल मीडिया के दौर में पति-पत्नी के बीच आपसी बातचीत की कमी ज़्यादातर देखी जा रही है। वे अपने रिश्तेदारों, दोस्तों, शुभचिंतकों के संपर्क में तो रहते हैं लेकिन एक ही घर में रहते हुए भी अपने पार्टनर से दूर होते हैं। यही कारण है कि आज के दौर में मौन तलाक़ (silent divorce) की समस्या भी ख़ूब देखी जा रही है।
4. समाज में संवाद का महत्व-
समाज में शांति और सौहार्द तभी संभव है जब लोग एक-दूसरे की बात सुनें और समझें। विवाद और संघर्ष अक़्सर संवाद की कमी से ही जन्म लेते हैं। यदि दो समुदायों, दो विचारधाराओं या दो देशों के बीच बातचीत का मार्ग खुला रहे, तो बड़े-बड़े युद्ध भी टाले जा सकते हैं। इतिहास गवाह है कि जब संवाद टूटता है, तब संघर्ष बढ़ते हैं; और जब संवाद शुरू होता है, तो समाधान निकलते हैं।
सिर्फ समस्याओं के समय ही नहीं, बल्कि सामान्य दिनों में भी बातचीत ज़रूरी है। छोटी-छोटी बातें, रोज़मर्रा के अनुभव, खुशियाँ और सपनों को साझा करना रिश्तों में मिठास घोलता है। यही छोटी-छोटी बातें रिश्तों को गहरा और स्थायी बनाती हैं।
5. व्यवसाय या नौकरी में संवाद का महत्व-
व्यापारिक दुनिया में संवाद सफलता की कुंजी है। ग्राहक और व्यापारी के बीच संवाद, कर्मचारी और प्रबंधक के बीच संवाद या सहकर्मियों के बीच संवाद।हर जगह इसका महत्व है। यदि कोई कंपनी अपने कर्मचारियों की समस्याएँ सुनती है और उन्हें समाधान देती है, तो वहां का वातावरण सकारात्मक रहता है। इसी प्रकार, ग्राहक की ज़रूरतों को समझकर उनसे संवाद करने वाली कंपनियाँ अधिक सफल होती हैं।
आप यदि सरकारी या प्राइवेट जॉब में हैं। तो आपमें संवाद की कला जितनी अच्छी होगी, आप उतना ही बेहतर तालमेल अपने सहकर्मियों के साथ बनाने में सक्षम होंगे। व्यापार की दुनिया में ये कहावत भी प्रचलित है कि 'बात वालों का गधा भी बिक जाता है।' यानि कि बात करने वाले सबका दिल जीत लेते हैं। बातचीत की कला को मार्केटिंग की दुनिया में भी अहम स्थान दिया जाता है।
6. राजनीति और कूटनीति में संवाद का महत्व-
राजनीति में संवाद सबसे बड़ा हथियार है। विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच यदि स्वस्थ संवाद हो, तो लोकतंत्र मज़बूत होता है। संसद में बहस इसी संवाद का प्रतीक है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी, जब देशों के बीच बातचीत होती है, तो आपसी सहयोग बढ़ता है और युद्ध की संभावनाएँ कम होती हैं। संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएँ इसी संवाद को बढ़ावा देने के लिए बनी हैं।
7. समस्या के समाधान हेतु संवाद का महत्व-
किसी भी समस्या का सबसे सरल समाधान है आपसी बातचीत। यदि दो पक्ष गुस्से में आकर चुप्पी साध लें या हिंसा का मार्ग अपनाएँ, तो भला समाधान कैसे निकलेगा। बल्कि स्थिति और बिगड़ जाती है। लेकिन यदि वे बैठकर धैर्यपूर्वक बातचीत करें, तो रास्ता निकल ही आता है। जैसे न्यायालय में भी न्यायाधीश पक्षकारों की बातें सुनकर फ़ैसला देता है। यह सिद्ध करता है कि बिना संवाद के न्याय संभव नहीं है।
कई बार लोग सोचते हैं कि चुप रहना ही सबसे अच्छा तरीक़ा है, लेकिन लंबे समय तक मौन रहना रिश्तों को खोखला कर देता है। मौन से बातें दब जाती हैं, और दबे हुए भाव, बाद में बड़े विस्फोट का कारण बनते हैं। इसलिए मौन हो जाने के बजाय, बातचीत कर लेने में ही समझदारी है।
8. शांति स्थापित करने हेतु संवाद का महत्व-
दुनिया के कई बड़े विवादों को बातचीत के ज़रिए हल किया जा सकता है। हमारे देश में ऐसे अनेक संत महात्मा थे जिन्होंने संवाद और अहिंसा को ही सबसे बड़ा हथियार माना। उनका मानना था कि यदि हम प्रेम और तर्क के साथ अपनी बात कहें, तो सामने वाला अवश्य समझेगा। यही कारण है कि उनके नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन शांतिपूर्ण तरीक़े से आगे बढ़ा।
रामायण एवं महाभारत में भी युद्ध को टालने के लिए शांति हेतु आपसी संवाद को पहली प्राथमिकता दी गई थी। ये अलग बात है कि जब पहला प्रयास संभव न हो सका तब युद्ध का रास्ता अपनाया गया। आज के दौर में भी विश्व के देशों के बीच आपसी तालमेल बनाए रखने के लिए उनके बीच संवाद करके शांति स्थापित करने का प्रयास सबसे पहले किया जाता है।
9. ग़लतफ़हमियों को दूर करने में फ़ायदेमंद-
रिश्तों में सबसे बड़ी दुश्मन होती है ग़लतफ़हमी। अक़्सर लोग सामने वाले की बात सुने बिना निष्कर्ष निकाल लेते हैं। इससे संबंधों में खटास आ जाती है। ग़लतफ़हमियों को दूर करने के लिए बातचीत ही एकमात्र माध्यम है। यदि हम सामने वाले की बात ध्यान से सुनें और अपनी बात साफ़-साफ़ रखें, तो निश्चित रूप से ग़लतफ़हमियां दूर हो जाती हैं।
कई बार लोग मान लेते हैं कि दूसरा व्यक्ति उन्हें समझ ही नहीं पाएगा, इसलिए वे चुप रहते हैं। लेकिन चुप्पी समस्या का हल नहीं है। बल्कि खुलकर बातचीत करने से ही सच्चाई सामने आती है। जब हम सामने वाले से स्पष्ट रूप से पूछते हैं और उसकी बात समझते हैं, तब पता चलता है कि असलियत हमारी सोच से बिल्कुल अलग थी।
10. भावनाओं को व्यक्त करने का ज़रिया-
मनुष्य के भीतर अनेक भावनाएँ होती हैं जैसे- प्यार, दुःख, गुस्सा, ख़ुशी, उम्मीद, निराशा। यदि इन्हें दबाकर रखा जाए, तो मन भारी सा लगने लगता है। जिसके चलते रिश्ते बोझिल लगने लगते हैं। लेकिन जब हम अपनी भावनाओं को अपने किसी क़रीबी से, शब्दों में व्यक्त करते हैं, तो न केवल हमारा मन हल्का होता है बल्कि रिश्ता भी गहरा होता है। बातचीत से हम यह संदेश देते हैं कि हम सामने वाले को अपना मानते हैं और उस पर भरोसा करते हैं।
11. विश्वास और अपनापन बढ़ाने का साधन-
विश्वास हर रिश्ते की नींव है, और विश्वास बातचीत से ही मज़बूत होता है। यदि कोई मित्र या जीवनसाथी हमारी बातें ध्यान से सुनता है, तो हमें लगता है कि वह हमारी परवाह करता है। यही अपनापन रिश्तों को लंबा और स्थायी बनाता है। इसके विपरीत, यदि लोग एक-दूसरे से दूरी बना लें और संवाद बंद कर दें, तो धीरे-धीरे विश्वास भी ख़त्म होने लगता है।
12. रिश्तों को बचाने का सबसे कारगर उपाय-
यदि कभी किसी रिश्ते में दूरी आ जाए, तो सबसे पहला क़दम होना चाहिए, बात करना। चाहे गुस्सा कितना भी हो, लेकिन धैर्य और सम्मान के साथ बात करने से स्थिति सुधर सकती है। बातचीत करते समय कुछ बातें ध्यान रखनी चाहिए। जैसे- सामने वाले की बात ध्यान से सुनें। अपनी बात स्पष्ट और शांत ढंग से रखें। गुस्से या कटु भाषा से बचें। समस्या पर चर्चा करें, व्यक्ति पर आरोप न लगाएँ।
निष्कर्ष (Conclusion)
मनुष्य सामाजिक प्राणी है। उसका जीवन रिश्तों से घिरा हुआ है। माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी, बच्चे, मित्र और समाज। रिश्तों का असली आधार सिर्फ़ ख़ून का रिश्ता नहीं होता, बल्कि उनमें मौजूद विश्वास, समझ और संवाद होता है। यदि इन रिश्तों में बातचीत की कमी हो जाए, तो धीरे-धीरे दूरी, तनाव और ग़लतफ़हमियां जन्म लेने लगती हैं। इसलिए कहा जाता है- “बातचीत ही रिश्तों की ऑक्सीजन है।” जिस तरह जीवन बिना सांसों के संभव नहीं, उसी तरह रिश्ते भी बिना बातचीत के टिक नहीं सकते।
आज के व्यस्त जीवन और डिजिटल युग में लोग एक-दूसरे से आमने-सामने बातचीत करना भूलते जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर हज़ारों "फ्रेंड्स" होते हैं, लेकिन असली रिश्तों में बात करने का समय नहीं निकाल पाते। यही कारण है कि तनाव, अकेलापन और रिश्तों में दरारें बढ़ रही हैं। हमें यह समझना होगा कि नई तकनीक रिश्तों को जोड़ने का साधन हो सकती है, लेकिन असली गहराई तो व्यक्तिगत बातचीत से ही आती है।
इसलिए यदि हमें अपने रिश्तों को मज़बूत और स्थायी बनाना है, तो हमें बातचीत को अपनी आदत बनाना होगा। चाहे परिवार हो, मित्रता हो या जीवनसाथी का रिश्ता ही क्यों न हो। खुली और ईमानदार बातचीत ही इन सभी रिश्तों का आधार है। सच ही कहा गया है- “रिश्ते बातचीत से बनते हैं, और चुप्पी से बिखर जाते हैं।”
(- By Alok Khobragade)
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