गृहस्थ जीवन के निर्णय दूसरों के हाथों में देने के क्या क्या नुक़सान हो सकते हैं? | क्या गृहस्थ जीवन का पूरा कंट्रोल दूसरों के हाथों में सौंपना सही है?
दोस्तों, गृहस्थ जीवन एक ऐसा पवित्र बंधन है जिसमें पति-पत्नी मिलकर रहते हुए घर चलाते हैं, बच्चों का पालन-पोषण करते हैं। कभी उलझते हैं, फ़िर सुलझते हैं। अनेक विपरीत परिस्थितियों में अपने विवेकानुसार निर्णय भी लेते हैं। सच कहें तो गृहस्थ जीवन में पति पत्नी के रिश्ते के बीच विश्वास, आपसी समझदारी, निर्णय लेने की क्षमता और आत्मनिर्भरता की अहम भूमिका होती है।
लेकिन जब पति या पत्नी किसी तीसरे व्यक्ति, चाहे वह माता-पिता हों, रिश्तेदार हों या मित्र के कहने पर अपने घर के समस्त निर्णय लेने लगते हैं। यह स्थिति न केवल गृहस्थी की शांति भंग करती है बल्कि पति पत्नी के रिश्ते में दरार भी डाल देती है। ऐसे में उस परिवार की आत्मा कमज़ोर होने लगती है।
दोस्तों आज के हमारे इस लेख का विषय ज़रा सा पेचीदा ज़रूर है बस इसे पढ़ना जारी रखिए, आपको यह लेख ज़रूर पसंद आने वाला है। इस लेख में हम विस्तार से चर्चा करने वाले हैं कि अपनी गृहस्थी का रिमोट कंट्रोल किसी और को देने के क्या-क्या नुक़सान हो सकते हैं?
अरे हां, कहीं आप ये तो नहीं समझ रहे हैं कि हम पति या पत्नी को अपने माता-पिता, भाई-बहन, रिश्तेदार या किसी ख़ास दोस्त से सलाह लेने से मना कर रहे हैं। हम आपको बता दें कि समय समय पर किसी उचित विषय पर सलाह लेना ज़रूरी होता है। हमारे अपने हमें सलाह भी ज़रूर देते हैं। लेकिन अंतिम निर्णय पति-पत्नी आपसी विचार विमर्श के पश्चात ही लें तो ज़्यादा बेहतर होगा क्योंकि आप दोनों के बीच की वस्तुस्थिति क्या है, आप दोनों से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। आपके माता-पिता भी नहीं।
गृहस्थ जीवन का नियंत्रण यदि दूसरों के हाथों में चला जाए तो व्यक्ति अपनी सोच, निर्णय और भावनाओं पर नियंत्रण खो बैठता है। उदाहरणार्थ, यदि कोई पति अपने छोटे-बड़े निर्णय, अपनी मां या भाई बहन की राय लेकर ही करे, अपनी पत्नी से ज़रा भी ज़िक्र न करे, तो पत्नी की भूमिका गौण हो जाती है।
यही स्थिति पत्नी के मामले में भी लागू होती है जब वह हर बात अपनी मां या बहन-भाई या किसी ख़ास सहेली से पूछकर तय करती है। अपने पति से उस विषय पर ज़िक्र करना भी मुनासिब नहीं समझती है। तो इससे पति पत्नी के रिश्ते में अविश्वास, ईर्ष्या और दूरी आने लगती है। इसलिए पति पत्नी यदि एक दूसरे को ऐसे महत्वपूर्ण मौक़ों पर एहमियत देने लगें तो पति पत्नी का रिश्ता और भी मज़बूत बनने लगता है।
हम आपको बता दें कि हर गृहस्थी की परिस्थितियां और समस्याएं भिन्न भिन्न होती हैं। हमसे जुड़े लोग केवल एक पक्ष या अधूरी जानकारी के आधार पर राय देते हैं, जिससे उनके फ़ैसले ग़लत भी साबित हो सकते हैं। यदि पति-पत्नी एक-दूसरे से संवाद करके, मिलजुल कर निर्णय लें तो समस्याएं अपेक्षाकृत आसानी से सुलझ सकती हैं। लेकिन जब कोई तीसरा व्यक्ति बीच में आता है तो संवाद की जगह मतभेद यानि कि पति पत्नी के बीच झगड़े थमने के बजाय और भी बढ़ जाते हैं।
निसंदेह बड़ों की सलाह बहुत उपयोगी होती है, लेकिन हम बात कर रहे हैं नियंत्रण की। क्योंकि सलाह और नियंत्रण में अंतर होता है। सलाह लेना समझदारी है, परंतु पूरी तरह किसी और के नियंत्रण (इशारे) पर चलना आत्मनिर्भरता को ख़त्म कर देता है। इससे घर का माहौल तनावपूर्ण हो सकता है और बच्चों पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। बच्चे भी वही सीखते हैं जो वे अपने घर में देख रहे होते हैं।
इसलिए यह ज़रूरी है कि पति-पत्नी एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करें, आपसी भरोसे और पारदर्शिता के साथ निर्णय लें। माता-पिता, भाई-बहन या रिश्तेदारों से मार्गदर्शन लेना ग़लत नहीं, लेकिन अंतिम निर्णय केवल दंपत्ति का होना चाहिए। याद रखें, कुछ व्यक्तिगत विषय ऐसे भी होते हैं जिनका समाधान केवल पति-पत्नी को ही खोजना पड़ता है। वहां किसी और की सलाह, आप दोनों के लिए घातक साबित हो सकती है।
अपनी गृहस्थी का रिमोट कंट्रोल किसी और के हाथों में देने के नुक़सान
अपने जीवन का रिमोट अपने ही हाथ में रखना आत्मसम्मान और पारिवारिक सुख-शांति के लिए आवश्यक है। वर्ना इसके भयावह नुक़सान देखने मिल सकते हैं। आइए जानते हैं इसके क्या क्या नुक़सान हो सकते हैं -
1. स्वतंत्रता का हनन -
गृहस्थ जीवन में स्वतंत्रता यानि अपनी मर्ज़ी से निर्णय लेना बेहद आवश्यक होता है। जब कोई और आपके जीवन के छोटे-बड़े फ़ैसले लेता है, तो आप अपनी सोच और इच्छाओं को दबाने लगते हैं। धीरे-धीरे यह आदत बन जाती है और आप अपनी पहचान खो बैठते हैं।
उदाहरण : यदि कोई महिला हर बात में अपनी माँ या बहन की राय लेकर निर्णय लेती है, तो पति-पत्नी के रिश्तों में दूरी आने लगती है। वही स्थिति पुरुषों के साथ भी हो सकती है जब वे हर बात में अपने माता-पिता या दोस्तों से निर्देश लेते हैं। अपनी पत्नी से ज़रा सी सलाह लेना भी सही नहीं समझते।
2. रिश्तों में तनाव और अविश्वास
जब घर के फ़ैसले किसी बाहरी व्यक्ति द्वारा लिए जाते हैं, तो स्वाभाविक रूप से आपका जीवनसाथी ख़ुद को असहज महसूस करने लगता है। यह असहजता यदि यूं ही होती रहे तो धीरे-धीरे अविश्वास और तनाव का रूप ले लेती है। जो कि भविष्य में एक दूसरे के लिए सहयोग की भावना को ख़त्म कर सकती है।
नतीजा :
• पति-पत्नी के बीच झगड़े बढ़ जाते हैं।
• बच्चों में असुरक्षा की भावना घर कर जाती है।
• ससुराल या मायके से रिश्ते भी बिगड़ सकते हैं।
3. निजता का हनन
गृहस्थी एक निजी संसार है, जिसमें दो व्यक्तियों (या परिवार के सदस्यों) की आपसी बातचीत, संघर्ष, समाधान और भावनाएं शामिल होती हैं। जब बाहरी लोग हर बात में हस्तक्षेप करते हैं, तो उनके बीच निजता का उल्लंघन होता है।
उदाहरण: यदि आप अपने बीच की हर छोटी-छोटी बात अपने क़रीबी लोगों को बताते हैं। तो धीरे-धीरे गृहस्थ जीवन एक "प्राइवेट" से "पब्लिक" जीवन बन जाता है, जो आपके रिश्तों को खोखला करन शुरू कर देता है। ज़रा सोचिए कि आप दोनों के बीच किसी भी बात पर ज़रा सी भी अनबन हो जाए, लेकिन कुछ देर बाद आपको अपने पार्टनर को sorry कहने के बजाय किसी और को कहना पड़े तो निश्चित रूप से आपकी भावनाएं आहत हो सकती हैं। जबकि सही तो यह होना चाहिए कि पति-पत्नी ही आपसी बातें करके समस्या का समाधान ढूंढ लें।
4. निर्णय लेने की क्षमता कमज़ोर होना
जो व्यक्ति अपनी हर समस्या या निर्णय में बाहरी मदद पर निर्भर हो जाता है, उसकी निर्णय क्षमता कमज़ोर पड़ जाती है। वह व्यक्ति आत्मनिर्भर नहीं रह पाता। ऐसे में उस परिवार में कोई भी निर्णय पति-पत्नी के आपसी तालमेल से नहीं लिए जाते हैं।
दुष्परिणाम :
• व्यक्ति हर छोटी बात पर भ्रमित रहता है।
• ज़िम्मेदारियों से भागने लगता है।
• जीवन में आत्मविश्वास की कमी आने लगती है।
5. वित्तीय अस्थिरता
गृहस्थी का सबसे बड़ा आधार आर्थिक स्थिरता है। जब परिवार की कमाई, ख़र्च या बचत किसी और के निर्देश पर चलने लगती है, तो उसमें पारदर्शिता नहीं रहती। परिणामस्वरूप वित्तीय स्थिति कमज़ोर हो सकती है। वर्तमान या भविष्य में किसी भी तरह का फाइनेंशियल प्लान बनाना दोनों के लिए मुश्किल हो सकता है।
उदाहरण :
• यदि पति या पत्नी अपनी अपनी कमाई, अपने हिसाब से ख़र्च करे, आपस में किसी भी प्रकार की कोई प्लानिंग न रहे, तो बचत मुश्किल हो जाती है।
• यदि पति पत्नी के अलावा कोई और पक्ष निवेश के ग़लत निर्णय करवाए, तो पूरी गृहस्थी प्रभावित हो सकती है।
6. बच्चों पर बुरा असर
बच्चे अपने माता-पिता से व्यवहार और निर्णय लेने की कला सीखते हैं। यदि वे यह देखते हैं कि उनके माता-पिता हर बात में दूसरों पर निर्भर हैं, तो वे भी आगे चलकर आत्मनिर्भर नहीं बन पाते। उनमें निर्णय लेने की हिम्मत और नेतृत्व क्षमता विकसित नहीं हो पाती।
नतीजा :
• बच्चा मानसिक तौर पर डरपोक और अधिकतर मामलों में दूसरों पर आश्रित बन सकता है।
• वह अपने जीवन में अधिकतर मौकों पर बाहरी लोगों की राय को ही अहमियत देने लगता है।
7. रिश्तेदारों की हावी मानसिकता
यदि किसी को बार-बार आपके फ़ैसलों में दख़ल देने का मौक़ा मिल जाए, तो वह धीरे-धीरे आपके पूरे जीवन पर हावी हो सकता है। इतना ही नहीं, कुछ लोग तो जानबूझकर ऐसा करते हैं ताकि आपकी कमज़ोरी का लाभ उठाया जा सके।
उदाहरण :
• कोई रिश्तेदार घर की बहू से सीधे संपर्क में रहकर उसके माध्यम से पूरे घर को नियंत्रित करने की कोशिश कर सकता है।
• कुछ मायके वाले अपनी बेटी के बहाने, उसके ससुराल के अधिकतर फ़ैसलों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।
8. रिश्तों में अधिकार और कर्तव्यों का असंतुलन
जब घर का कोई व्यक्ति यह सोचने लगे कि जो निर्णय वो ले रहा है, वह किसी और के कहने पर ले रहा है, तो उसमें अपने रिश्तों के प्रति ज़िम्मेदारी का अभाव आने लगता है। दूसरी ओर, जो व्यक्ति आदेश दे रहा है, वह बिना किसी कर्तव्य के सिर्फ़ अधिकार की भावना पालने लगता है।
9. पति-पत्नी में संवाद की कमी
गृहस्थी की सबसे मज़बूत नींव आपसी संवाद है। जब जीवनसाथी आपस में बात न करके दूसरों से सलाह लेने लगते हैं, तो संवाद में दूरी बढ़ जाती है। इससे समझ, भरोसा और जुड़ाव कमज़ोर हो जाता है। जिस कारण पति पत्नी का प्यार फीका पड़ने लगता है। जिसका दुष्परिणाम उन्हें भविष्य में झेलना पड़ता है।
समाधान और सुझाव
1. आपसी संवाद बढ़ाएं – समस्याएं हों तो पहले जीवनसाथी से बात करें।
2. निर्णय में एक-दूसरे की सहमति लें, बाहरी राय पर पूरी तरह निर्भर न रहें।
3. हर रिश्ते की सीमा तय करें, ताकि कोई रिश्तेदार भावनात्मक शोषण न कर सके।
4. आर्थिक पारदर्शिता रखें और संयुक्त रूप से वित्तीय फ़ैसले लें।
5. बच्चों को भी निर्णय लेने की शिक्षा दें, ताकि वे आत्मनिर्भर बनें।
निष्कर्ष (Conclusion)
अपनी गृहस्थी का रिमोट कंट्रोल दूसरों के हाथों में देना उचित नहीं है। इससे न केवल आत्मनिर्भरता समाप्त होती है, बल्कि घर में कलह और अशांति का वातावरण भी उत्पन्न होता है। पति-पत्नी दोनों ही आत्मनिर्भर एवं समझदार बनें। पत्नी-पत्नी अच्छे दोस्त बनकर रहें, ताकि एक दूसरे से किसी भी विषय पर बिना किसी झिझक के चर्चा कर सकें।
एक सुखद और संतुलित गृहस्थ जीवन के लिए आवश्यक है कि जीवनसाथी के साथ मिलकर निर्णय लेना सीखें और बाहरी हस्तक्षेप से जितना हो सके बचें। हर गृहस्थ जोड़ों को यह समझना चाहिए कि उनका जीवन और घर के फ़ैसले उनका निजी क्षेत्र है। उसमें दूसरों का दख़ल सीमित और संतुलित होना चाहिए। सलाह लेना ग़लत नहीं है, लेकिन निर्णय दोनों के आपसी तालमेल से लेने की आदत होनी चाहिए।
वर्ना रिश्तों का चैनल, भावनाओं का वॉल्यूम और जीवन का संतुलन सब दूसरों के हिसाब से चलना शुरू हो जाता है। इसलिए ज़रूरी है कि जीवन का रिमोट आप दोनों के ही हाथों में हो। ताकि निर्णय आपकी सोच, परिस्थिति और रिश्तों की वास्तविक ज़रूरतों पर आधारित हो। यही सच्चा गृहस्थ धर्म है।
"- by Alok Khobragade"
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