गुरुनानक देव का जीवन परिचय, जयंती, कहानी, जन्म, विवाह, (gurunanak dev history in hindi, biography, age, birth date, family, jayanti, death)
गुरुनानक देव को एक नए धर्म यानि कि सिक्ख धर्म का संस्थापक माना जाता है। गुरुनानक देव (gurunanak dev) सिक्खों के प्रथम गुरु थे। गुरुनानक देव जी भारत के एक महान आध्यात्मिक नेता थे। इनकी शिक्षाएं व उनकी भक्ति का तरीक़ा दूसरों से अलग था। इसलिए सभी धर्मों के लोग गुरुनानक और उनकी शिक्षाओं का आज भी सम्मान करते हैं।
दोस्तों, कार्तिक पूर्णिमा गुरुनानक जयंती के अवसर पर आज हम इस लेख में गुरुनानक देव जी की बायोग्राफ़ी (gurunanak dev ji ki biography) जानने वाले हैं।
गुरुनानक देव जी का जन्म (gurunanak dev ji ka janm)
सिक्ख धर्म के संस्थापक नानक देव जी का जन्म (guru nanak dev ji birthday) 15 अप्रैल 1469 में कार्तिक पूर्णिमा को (वैशाख सुदी 3, संवत 1526 विक्रम) पंजाब (पाकिस्तान) क्षेत्र के रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी गांव में हुआ था।
गुरुनानक जी का जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआ था। गुरु नानक के पिता का नाम मेहता कालू चंद और माता का नाम त्रप्ती देवी था। इनके पिता कृषक और एक लेखापाल भी थे। जिस घर में गुरुनानक देव का जन्म हुआ था। उसके एक तरफ़ अब ननकाना साहिब नामक प्रसिद्ध मंदिर है। जो आज पाकिस्तान के क्षेत्र में स्थित है। नानक को पंजाब और सिंध का पैग़म्बर भी कहा जाता है। उनका बचपन अधिकांश रूप से उनकी बड़ी बहन बेबे नानकी के साथ बीता जो गुरुनानक से 5 साल बड़ी थी।
गुरुनानक देव की शादी (gurunanak dev ka vivah)
गुरुनानक देव जी का विवाह (gurunanak ji ka vivah) 14 सितम्बर 1487 को महज़ 16 वर्ष की उम्र में गुरदासपुर ज़िले के लखौली नाम स्थान में रहने वाले वाली कन्या सुलखनी देवी से हो गया था। इनके दो पुत्र श्रीचंद और लखमी चंद थे। गुरुनानक देव के पहले बेटे श्रीचंद, आगे चलकर उदासी संप्रदाय के जनक कहलाए।
इन दोनों पुत्रों के जन्म के बाद 1507 में गुरुनानक जी ने अपने परिवार की ज़िम्मेदारी ईश्वर पर छोड़कर अपने चार साथी मरदाना, लहना, बाला और रामदास के साथ तीर्थयात्रा पर निकल गए। ये चारों ही घूम घूमकर उपदेश देने लगे।
गुरुनानक सुल्तानपुर में स्नान करने के बाद ध्यान करने के लिए पास की ही एक नदी में चले जाते थे। एक दिन नानक, उस नदी की तरफ़ गए और 5 दिनों तक नहीं लौटे। जब वह लौटे तब एक असामान्य व्यक्ति की तरह लग रहे थे। जब उनसे बात की गई तो उन्होंने कहा - 'यहां कोई हिन्दू या मुस्लिम नहीं है।' वह पल उस बदलाव की शुरुआत थी जिसे आगे चलकर गुरुनानक देव जी की शिक्षा (gurunanak dev ji ki shiksha) के रूप में स्वीकार किया गया।
1521 तक इन्होंने तीन यात्रा चक्र पूरे किए, जिनमें भारत, अफगानिस्तान, फारस और अरब के मुख्य मुख्य स्थानों भ्रमण किया। इन यात्राओं को पंजाबी में उदासियां कहा गया। इन्होंने ऐसे समय में मानवता और मानव जाति का संदेश फैलाया जब हर कोई अपने अपने धर्म के प्रचार में लगा हुआ था। गुरुनानक एक महान विद्वान थे फ़िर भी इन्होंने चारों दिशाओं में यात्रा करते हुए लोगों तक अपना संदेश व शिक्षाएं फैलाने के लिए स्थानीय भाषाओं का इस्तेमाल किया।
गुरुनानक जी की यात्राएं (Gurunanak ji ki yatrayen)
अपने संदेश एवं शिक्षाओं का प्रचार प्रसार करने के लिए गुरुनानक देव (gurunanak) जी ने अपने 70 साल के जीवन में अनेक जगहों का भ्रमण किया। इन्होंने गुजरावाला ज़िले के सैय्यदपुर अपनी यात्रा की शुरुआत की और उसके बाद वे कुरुक्षेत्र, हरिद्वार, वृंदावन, वाराणसी, आगरा, कानपुर, अयोध्या, प्रयाग, पटना, राजगीर, गया और पुरी की ओर चले गए। इस तरह इन्होंने सम्पूर्ण भारत की यात्राएं की।
इतना ही नहीं, अपितु इन्होंने श्रीलंका, म्यांमार, मक्का और मदीना की यात्रा भी की। तुर्की, अरब, बगदाद, काबुल, कंधार, और सियाम कि यात्रा भी की। इनका हरिद्वार, गया और एस ही अन्य तीर्थ स्थानों के पंडितों के साथ काफ़ी वाद विवाद हुआ। अपनी यात्राओं के दौरान इन्होंने पंडितों, मुस्लिम पुजारियों के साथ अनेक स्थानों पर वाद विवाद किया। इनकी यात्राओं का कार्यक्रम निम्नानुसार था -
• गुरूनानक जी की पहली यात्रा - गुरुनानक देव ने अपनी पहली यात्रा में भारत और पाकिस्तान के अधिकांश हिस्सों को कवर किया। यह यात्रा 1500 से 1507 तक लगभग 7 सालों तक चलती रही।
• गुरुनानक जी की दूसरी यात्रा - गुरुनानक देव ने अपनी दूसरी यात्रा में श्रीलंका के अधिकांश हिस्सों को कवर किया। यह यात्रा भी 1507 से 1514 तक लगभग 7 साल निरंतर चलती रही।
• गुरूनानक जी की तीसरी यात्रा - अपनी तीसरी यात्रा में इन्होंने कश्मीर हिमालय, नेपाली, सिक्किम, तिब्बत जैसे पर्वतीय इलाक़ों को कवर किया। यह यात्रा भी 1514 से 1519 तक लगभग पूरे 5 साल चली।
• गुरुनानक जी की चौथी यात्रा - नानक जी ने अपनी चौथी यात्रा में मक्का और मध्य पूर्व के अन्य क्षेत्रों को कवर किया। यह यात्रा लगभग 3 साल तक चली।
• गुरुनानक जी की पांचवीं यात्रा - नानक देव ने अपनी पांचवीं यात्रा के दौरान 2 साल तक पंजाब में अपनी शिक्षाएं एवं संदेशों को प्रचारित किया। ऐसा कहा जाता है कि इन्होंने अपने जीवन काल में लगभग 24 साल अपनी इन यात्राओं में लगा दिए। इन्होंने 28000 किमी की यात्रा पैदल चलाकर पूरी की।
मूर्तिपूजा को गुरुनानक देव (gurunanak dev) निरर्थक मानते थे और रूढ़ियों और कुसंस्कारों के कट्टर विरोधी थे। इनके अनुसार ईश्वर कहीं बाहर नहीं, बल्कि हमारे अंदर ही है। तत्कालीन इब्राहिम लोदी ने इनको क़ैद तक कर लिया था। आख़िर में पानीपत बीकी लड़ाई हुई, जिसमें इब्राहिम की हार हुई और सम्पूर्ण राज्य बाबर के हाथों में आ गया। बाबर के सत्ता में आने के बाद इनको क़ैद से मुक्ति मिली।
गुरुनानक देव की शिक्षाएं | गुरुनानक जी के सिद्धांत
गुरुनानक जी ने अपनी शिक्षा में यह बताया कि भगवान को पाने के लिए हमें किसी अनुष्ठान या पुजारियों की सहायता की आवश्यकता नहीं है। भगवान को पाने के लिए स्वयं पूरे दिल से भगवान का नाम जपना आवश्यक है। नानक देव ने दूसरों की मदद, सेवा करके आध्यात्मिक जीवन जीने की बात कही।
नानक देव ने किसी भी तरह की धोखाधड़ी या शोषण न करने की सलाह दी और इस तरह के कर्मों से दूर रहने और एक ईमानदार जीवन जीने के लिए कहा। गुरुनानक देव जी की शिक्षा (gurunanak dev ji ki shikshaen) जनसामान्य में गुरुनानक के उपदेश (gurunanak ke updesh) के रूप में भी जानी जाती हैं। इन शिक्षाओं को निम्नलिखित बिंदुओं के रूप में पढ़ा जा सकता है।
• ईश्वर एक है।
• सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करना चाहिए।
• ईश्वर हर जगह और हर एक प्राणी में मौजूद है।
• सर्वशक्तिमान ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी से भी भयभीत नहीं रहना चाहिए।
• ईमानदारी से मेहनत करके उदारपुर्ती करना चाहिए
• बुरा कार्य करने के बारे में कभी न सोचें और न किसी को सताएं
• सदा प्रसन्न रहने का प्रयास करें
• मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके उसमें से ज़रूरत मंद लोगों को कुछ भी देना चाहिए
• सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं
• भोजन शरीर को ज़िंदा रखने के लिए ज़रूरी है पर लोभ लालच व संग्रह वृत्ति बुरी है।
मूल रूप से, गुरुनानक जी ने अपनी शिक्षाओं के माध्यम से नए धर्म यानि कि सिख धर्म के तीन स्तंभों की स्थापना की। आइए हम इन तीन स्तंभों को जानते हैं।
सिक्ख धर्म के तीन स्तंभ (Sikh dharm ke teen stambh)
सिक्ख धर्म के तीन स्तंभ ( sikhkha dharm ke 3 stambh) निम्नलिखित हैं -
1. नाम जपना - इसका तात्पर्य है भगवान का नाम लेते रहना। भगवान के नाम एवं उनका गुणगान, गायन व जप के माध्यम से करना।
2. किरत करणी - इसका सीधा अर्थ है ईमानदारी से कमाई करना। गुरूनानक जी के विचार से लोगों को सामान्य रूप से गृहस्थ जीवन जीना चाहिए। शारीरिक व मानसिक रूप से प्रसन्न रहते हुए इमानदारी से कमाई करने का प्रयास करना चाहिए। सुख और दुःख दोनों को ही ईश्वर का आशीर्वाद समझकर सहर्ष ही स्वीकार करना चाहिए।
3. वंद चकना - वंद चकना का सीधा सा अर्थ है मिल बांटकर उपभोग करना। इस तरह गुरुनानक जी ने कहा कि लोगों को अपनी संपत्ति का कुछ भाग समुदाय के साथ बांटने का प्रयास करना चाहिए। वंद चकना का अभ्यास, सिक्ख धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। जहां प्रत्येक समुदाय अपने हाथों से जितना संभव हो सकता है योगदान देने का प्रयास करता है।
गुरुनानक देव जी की रचनाएं (gurunanak dev ji ki rachnayen)
गुरुनानक देव जी की प्रसिद्ध रचनाएं (gurunanak dev ji ki prasiddha rachnayen) निम्नलिखित थीं -
• जपु जी
• झूठी देखी प्रीत
• को काहू को भाई
• मुरसिद मेरा मरहमी
• सूरा एक न आँखिए
• राम सुमिर, राम सुमिर
• हाैं कुरबाने जाऊं पियारे
• काहे रे बन खोजन जाई
• अब मैं कौन उपाय करूं
• प्रभु मेरे प्रीतम प्रान पियारे
• या जग मित न देख्यो कोई
• यह मन नेक न कहयो करे
• सब कछु जीवित कौ ब्यौहार
• जो नर दुख में दुख नहिं मानै
गुरूनानक देव जी की मृत्यु (Guru nanak dev death in hindi)
लगभग 55 वर्ष के आयु तक आते आते गुरुनानक जी करतारपुर में आकर बस गए थे। अपनी मृत्यु तक नानक देव ने पंजाब क्षेत्र में अपने कई अनुयायियों को पा लिया था। हालांकि इन अनुयायियों की संख्या कितनी रही होगी इस बात का अनुमान लगाना ज़रा कठिन है।
सही मायने में कहा जाए तो गुरुनानक जी के विचारों से समाज में वृहद स्तर पर परिवर्तन हुए। गुरु नानक जी ने करतारपुर (पाकिस्तान) नामक स्थान पर एक नगर को बसाया और एक धर्मशाला भी बनवाया। गुरुनानक जी ने अपने अंतिम समय से पहले अपने भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी गुरु के रूप में नियुक्त किया। इन्होंने अपने भाई का नाम बदलकर गुरु अंगद रख दिया। जिसका अर्थ होता है ' किसी का अपना ' अथवा ' आप का हिस्सा '
गुरुनानक देव जी की मृत्यु कैसे हुई? इस बात का पता लगाना मुश्किल है। लेकिन बताया जाता है कि अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करने के कुछ समय बाद, गुरु नानक की मृत्यु 22 सितंबर 1539 को करतारपुर में 70 वर्ष की आयु में हो गई थी। ऐसा कहा जाता है कि गुरु नानक जी का शरीर उनकी मृत्यु के बाद कभी नहीं मिला।
(- By Alok)
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