गुरु रविदास जी का जीवन परिचय | Guru Ravidas Ji Biography in hindi

संत रविदास का जीवन परिचय, Sant Ravidas Jayanti in hindi (guru ravisas jayanti 2024, sant ravidas jayanti 2024, sant ravidas koun the, guru ravidas kaun the)

गुरु रविदास, जिन्हें समाज के एक महान संगीतकार, संत, और समाज सुधारक के रूप में जाना जाता है। ये निर्गुण संप्रदाय के संत थे। गुरु रविदास के जीवन का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा समाज सुधार कार्य और उनके संगीतीय योगदान में बीता है। उनकी जयंती को गुरु रविदास जयंती (guru ravisas jayanti) के रूप में मनाया जाता है।


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इन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से अपने अनुयायियों, भक्तों, समाज व देश के लोगों को धार्मिक व सामाजिक संदेश दिया। इनकी भक्ति रचनाओं में भगवान के प्रति अथाह प्रेम की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देती थीं। लोग उन्हें मसीहा के तौर पर मानते थे। यहां तक कि आज भी उन्हें इसी रूप में माना और पूजा जाता है। रविदास जी उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र और पंजाब में सबसे ज़्यादा प्रसिद्ध थे।

गुरु रविदास, भारतीय समाज के एक महान संत, संगीतकार और समाज सुधारक थे। संत गुरु रविदास (sant guru ravidas) जी को प्रेम और करुणा की शिक्षाओं और समाज से जातिवाद के भेदभाव को दूर करने के लिए जाना जाता है। हर साल माघ पूर्णिमा को रविदास जयंती (ravidas jayanti) के रूप में मनाया जाता है। संत रविदास को रैदास (raidas) के नाम भी जाना जाता है।


जी हां दोस्तों संत रविदास ने ईश्वर को पाने का केवल एक ही रास्ता बताया है और वह है सच्चे मन से भक्ति। इसलिए उनके द्वारा कहा गया यह मुहावरा "मन चंगा तो कठौती में गंगा"आज भी जनमानस में लोकप्रिय है। रविदास
 जी ने अपना सारा जीवन समाज कल्याण और जातिगत भेदभाव को दूर करने में समर्पित कर दिया। इस लेख में हम गुरु रविदास जी का जीवन परिचय (guru ravisas ji ka jivan parichay) विस्तार से जानेंगे।


संत रविदास का जन्म

गुरु रविदास एक प्रमुख संत, समाज सुधारक, और संगीतकार थे जिनका जन्म 15वीं शताब्दी में पंजाब के लाल नंगल गाँव में हुआ था। संत रविदास का जन्म 1377 ईसा पूर्व में हुआ था। उनके पिता का नाम संतोखदेव और माता का नाम कलावंती था। गुरु रविदास का परिवार दलित समुदाय से था। उनके पिता का व्यवसाय चमड़ा साड़ना था, जिसके कारण गुरु रविदास का जीवन बड़ी ही ग़रीबी और असुविधाओं से भरा रहा।


बाल्यकाल और धार्मिक शुरुआत

गुरु रविदास का बचपन और युवावस्था गरीबी में बीता। उनके पिता चमड़ा साढ़ने का काम करते थे अर्थात मरे हुए जानवरों का चमड़ा निकालकर जूते और चप्पल बनाया करते थे। गुरु रविदास जी भी अपने पिता के काम में हाथ बंटाते थे। सोचने वाली बात तो यह है कि इस काम के बावजूद, गुरु रविदास ने अपने भविष्य के बारे में सोचने के लिए समय निकाला और धार्मिक अध्ययन शुरू किया। उन्होंने अपनी भक्ति में अधिक गहराई डाली और ध्यान लगाया।

चूंकि रविदास को बचपन से ही उच्च कुल के लोगों से  सामने हीन भावना का शिकार होना पड़ता था। इसलिए इन्हें बड़े होकर समाज को बदलने के लिए कलम का सहारा लेना पड़ा। इन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा लोगों में ज्ञान का अलख जगाना शुरू किया। लोगों को बिना किसी भेदभाव के प्रेम पूर्वक जीने की प्रेरणा देने का ज़िम्मा ले लिया। 
अपने संघर्षमय जीवन के दौरान उन्होंने समाज में उत्कृष्टता और समानता की ढेरों लड़ाइयां लड़ी।


गुरु रविदास जी की शिक्षा दीक्षा

बचपन में गुरु रविदास, अपने गुरु पंडित शारदा नन्द जी की पाठशाला में जाकर शिक्षा लिया करते थे। लेकिन कुछ समय बाद ही रविदास जी को उंच नीच और छुआछूत का शिकार होना पड़ा। दरअसल ऊँची जाति वालों ने उनका पाठशाला में आना जाना बंद करवा दिया था।

चूंकि पंडित शारदा नन्द जी उंच नीच भरे ढकोसलों को नहीं मानते थे, उनका मानना था कि रविदास भगवान द्वारा भेजा हुआ एक प्रतिभावान बच्चा है। इसलिए पंडित शारदा नन्द जी ने रविदास जी को अपनी निजी पाठशाला में शिक्षा देना सुनिश्चित किया।

रविदास जी इतने प्रतिभाशाली और होनहार छात्र थे, कि उन्हें, उनके गुरु जितना पढ़ाया करते थे, उससे कहीं ज़्यादा वे अपनी समझ से शिक्षा गृहण कर लेते थे। पंडित शारदा नन्द जी रविदास जी की ऐसी प्रतिभा से अत्यंत प्रभावित थे, उनके आचरण व प्रतिभा को देख वे पहले समझ चुके थे कि रविदास एक दिन एक अच्छा आध्यात्मिक गुरु और महान समाज सुधारक बनेगा।


गुरु रविदास जी अलौकिक शक्तियों से परिपूर्ण

ऐसा माना जाता है कि रविदास जी को अलौकिक शक्तियां भी प्राप्त थीं। इसका प्रमाण आपको उनके शिक्षा दीक्षा काल के दौरान घटी एक घटना का वृत्तांत पढ़कर अवश्य मिल जाएगा। आइए उस घटना के बारे में जानते हैं।

उन दिनों गुरु रविदास (guru ravidas) के साथ पाठशाला में पंडित शारदा नन्द जी का बेटा भी पढ़ा करता था, वे दोनों ही आपस में अच्छे मित्र थे। कहा जाता है एक बार वे दोनों छुपन छुपाई का खेल खेल रहे थे। उन्हें खेलते खेलते रात हो गई, जिस कारण उन दोनों ने अगले दिन बचा हुआ खेल खेलने की बात कहकर खेल बंद कर दिया। दूसरे दिन सुबह रविदास खेलने पहुँच तो गए लेकिन उनका मित्र नहीं आया। जब रविदास अपने मित्र के घर पहुंचे तो पता चला कि रात को उसके मित्र की मृत्यु हो गई है। ये सुन रविदास सुन्न पड़ गए।

जब रविदास जी, गुरु शारदा नन्द जी के पुत्र और अपने मित्र के मृत शरीर के पास पहुंचे तब रविदास जी ने अपने मित्र। लेपास जाकर कहा कि "उठो और मेरे साथ कल का खेल पूरा करो।" इतना सुनकर उनका मित्र उठकर खड़ा हो गया। यह दृश्य देखकर वहां मौजूद समस्त व्यक्ति अचंभित हुए बिना नहीं रह सके।



रविदास जी के पिता की मृत्यु

रविदास जी के पिता की मृत्यु के बाद एक अजीबो ग़रीब घटना घटी। दरअसल पिता की मौत के बाद रविदास जी ने अपने पड़ोसियों से मदद मांगी, ताकि वे गंगा के तट पर अपने पिता का अंतिम संस्कार कर सकें। किन्तु ब्राह्मण इसके ख़िलाफ़ थे। ब्राह्मणों का मानना था कि शुद्र का अंतिम संस्कार उसमें होने से गंगा प्रदूषित हो जाएगी।

उस समय सच मानो तो गुरु रविदास जी बेहद दुःखी और ख़ुद को असहाय महसूस कर रहे थे। लेकिन ऐसी विकट परिस्थिति में भी उन्होंने अपना संतुलन नहीं खोया और भगवान से अपने पिता की आत्मा की शांति हेतु प्रार्थना करने में जुट गए।

फ़िर वहां अचानक एक बहुत बड़ा तूफ़ान आया। यह तूफ़ान इतना विशाल था कि गंगा नदी का पानी विपरीत दिशा में बहने लगा। फ़िर अचानक देखते ही देखते पानी की एक बड़ी लहर मृत शरीर के पास आई और रविदास जी के पिता के शरीर को अपने अंदर समाहित कर लिया। ऐसा कहा जाता है कि तभी से गंगा नदी विपरीत दिशा में बह रही है।


गुरु रविदास समाज सुधारक और संगीतकार

रविदास जी की उम्र बढ़ने के साथ साथ भगवान के प्रति उनकी भक्ति भावना भी निरंतर बढ़ती चली गई। वे हमेशा राम, रघुनाथ, हरी, गोविन्द आदि शब्दों का पूर्ण भक्ति भावना से उपयोग करते रहते थे जिस कारण उनके धार्मिक होने का प्रमाण मिलता था। सचमुच गुरु रविदास जी की जीवनी (guru eavidas ji ki jivni) संगीतमय, धार्मिक होने के साथ साथ बेहद संघर्षमय भी है।

उन दिनों रविदास जी मीरा बाई के धार्मिक गुरु हुआ करते थे। असल में रविदास जी की शिक्षा से मीरा बाई बहुत अधिक प्रभावित थीं जिस कारण वे उनकी एक बड़ी अनुयायी बन गई थीं। मीरा बाई अपने माँ बाप की एकलौती संतान थी, बचपन में इनकी माता के देहांत के बाद इनके दादा ‘दुदा जी’ ने ही इनको संभाला था। दुदा जी रविदास जी के बड़े अनुयायी थे, इसलिए मीरा बाई अपने दादा जी के साथ हमेशा ही रविदास जी से मिलती रहती थी। यही कारण था कि वे रविदास जी की शिक्षा से बेहद प्रभावित हुई। शादी के बाद मीरा बाई ने अपने परिवार की रज़ामंदी से रविदास जी को अपना गुरु बना लिया था।

गुरु रविदास के जीवन का एक महत्वपूर्ण पल उनका संगीतमय योगदान है। गुरु रविदास को संगीत का बहुत ही गहरा ज्ञान था। उन्होंने अपने संगीतीय योगदान के माध्यम से समाज को जोड़ा और अपने द्वारा रचित भजनों के माध्यम से लोगों को भगवान की भक्ति के लिए प्रेरित किया।

गुरु रविदास जी का संगीत में अद्वितीय योगदान था। उन्होंने अपनी भजनों के माध्यम से भक्ति और समाज सुधार का संदेश फैलाया। उनके भजन आज भी लोगों को आत्मिक ऊर्जा और शांति प्रदान करते हैं। उनके भजन आज भी लोकप्रिय हैं और लोग उनके भजनों का आनंद लेते हैं।

गुरु रविदास ने समाज में जातिवाद, असमानता, और अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उन्होंने सभी मनुष्यों को समानता और अधिकार के लिए प्रेरित करने का ताउम्र काम किया। यह उत्कृष्ठ कार्य कभी भुलाया नहीं जा सकता।

गुरु रविदास का जीवन समाज को समृद्धि, सामाजिक न्याय, और धार्मिक सहिष्णुता की ओर अग्रसर करने का संदेश देता है। उनका योगदान समाज को एक बेहतर और समर्थ समाज की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम प्रदान करता है। गुरु रविदास की जयंती (guru ravidas ki jayanti) को मनाकर हम उनके संदेश को याद करते हैं और उनके उपदेशों का पालन करते हैं।


रविदास और मुगल शासक बाबर

भारतीय इतिहास के अनुसार बाबर मुग़ल साम्राज्य का पहला शासक था, जिसने 1526 में पानीपत की लड़ाई जीत कर दिल्ली में कब्ज़ा कर लिया था। मुगल शासक बाबर, गुरु रविदास जी के आध्यात्मिक शक्तियों के बारे में अच्छी तरह जानता था। इसलिए वह गुरु रविदास से मिलना चाहता था। आख़िरकार बाबर, हुमायूँ के साथ उनसे मिलने पहुंचा और उनके पैर छुकर गुरु रविदास जी को पूरा सम्मान दिया।

किन्तु गुरु रविदास जी ने उसे आशीर्वाद देने के बजाय उसे दंडित किया। क्यूंकि उसने बहुत से मासूम लोगों को मारा था। बाद में गुरु रविदास जी ने बाबर को गहराई से शिक्षा दीक्षा दी जिससे प्रभावित होकर बाबर रविदास जी का अनुयायी बन गया। जिसका परिणाम यह हुआ कि बाबर ने फ़िर अपने शासन काल में अच्छे सामाजिक कार्य करने लगा।


गुरु रविदास जी का सामाजिक योगदान

संत रविदास ने समाज के लिए अपना व्यक्तिगत और सामाजिक योगदान किया। उनका प्रमुख योगदान निम्नलिखित क्षेत्रों में है -

सामाजिक असमानता के खिलाफ लड़ाई-
संत रविदास ने अपने जीवन के दौरान सामाजिक असमानता और जातिवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उन्होंने सभी मनुष्यों को समानता के अधिकार की लड़ाई में जुटने का समर्थन किया और उन्हें जातिवाद के बंधन से मुक्ति दिलाने के लिए प्रेरित किया।

समाज में समर्थ बनाना-
गुरु रविदास ने समाज के अन्याय और असमानता के खिलाफ लड़ने के लिए लोगों को समर्थ बनाने का प्रयास किया। उन्होंने लोगों को शिक्षा, साहित्य और धार्मिक ज्ञान में समर्थ बनाने के लिए उत्साहित किया।

संगीत के माध्यम से समाज को संजोना-
गुरु रविदास ने अपने संगीतीय योगदान के माध्यम से समाज को जोड़ा। उनके भजनों में समाज के समस्याओं का समाधान और धार्मिक उत्साह भरा था, जो लोगों को आत्मिक और सामाजिक उत्साह प्रदान करता था।

धार्मिक सहिष्णुता का प्रचार-
संत रविदास ने धार्मिक सहिष्णुता के सिद्धांत का प्रचार किया और लोगों को धार्मिक बंधनों से मुक्ति दिलाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने सभी मनुष्यों को एक ही परमात्मा की सेवा में लगाने का संदेश दिया।


संत रविदास जी का निधन

गुरु रविदास जी की सच्चाई, मानवता, भगवान् के प्रति प्रेम और सद्भावना देख उनके लगातार अनुयायी बढ़ते जा रहे थे। दूसरी तरफ़ कुछ ब्राह्मण उनको मारने की योजना भी बना रहे थे। एक बार रविदास जी के कुछ विरोधियों ने एक सभा का आयोजन किया था। सभा तो उन्होंने गाँव से दूर आयोजित की और उसमें गुरु जी को आमंत्रित किया।


हालांकि गुरु जी उन लोगों की उस चाल को पहले ही समझ गए थे। गुरु जी वहाँ जाकर सभा का शुभारंभ किया। मगर ग़लती से गुरु जी की जगह दुश्मनों का साथी भल्ला नाथ मारा गया। लेकिन थोड़ी देर बाद ही गुरुजी को कक्ष में शंख बजाते देख वे सभी अचंभित हो गए। साथी को मरा देख वे बहुत दुखी हुए और दुःखी मन से गुरुजी के शरण में चले गए।

रविदास जी के अनुयाईयों का ऐसा मानना है कि रविदास जी ने 120 या 126 वर्ष बाद अपने आप ही अपने शरीर का त्याग किया था। लोगों के अनुसार 1527 ईसा पूर्व में वाराणसी में उन्होंने अंतिम सांस ली थी।

उनके द्वारा छोड़े गए भजन और उनके विचार आज भी हमें उनकी महानता का साक्षात्कार कराते हैं और उनके संदेश उन्हें याद रखने के लिए हमें प्रेरित करते हैं। संत रविदास जी की याद में वाराणसी
 में अनेक स्मारक बनाये गए हैं जैसे रविदास पार्क, रविदास घाट, रविदास नगर, रविदास मेमोरियल गेट आदि।

संत रविदास ने समाज में प्रचलित जाति व्यवस्था, पाखंड पूजा, छुआ-छूत, उंच-नीच, असमानता के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई और सभी को सत भक्ति करने का संदेश दिया। और उन्होंने बताया कि हम सब एक परमात्मा के ही बच्चे हैं। सचमुच 
संत रविदास जी की जीवनी (sant ravidas ji ki jivani) अत्यंत मार्मिक है।


विदास जयंती कब मनाई जाती है?

रविदास जयंती को माघ महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। रविदास्सिया समुदाय इस दिन को वार्षिक उत्सव के रूप में मनाता है। वाराणसी में इनके जन्म स्थान ‘श्री गुरु रविदास जनम अस्थान’ में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। जहाँ लाखों की संख्या में रविदास जी के भक्त वहां पहुँचते है।

इस साल संत रविदास जयंती 24 फरवरी 2024 दिन शनिवार को मनाई का रही है। जो उनका 645वां जन्म दिवस होगा। इस दिन सिख समुदाय द्वारा जगह जगह नगर कीर्तन का आयोजन किया जाता है। इस पावन अवसर पर स्पेशल आरती की जाती है। मंदिर, गुरुद्वारा में रविदास जी के गाने और दोहे बजाये जाते हैं। कुछ अनुयायी इस दिन पवित्र नदी में स्नान कर ख़ुद को भाग्यशाली बनाते हैं। और फ़िर रविदास की फ़ोटो या प्रतिमा की पूजा भी करते हैं। रविदास जयंती (ravidas jayanti) मनाने का उद्देश्य यही है कि गुरु रविदास जी की शिक्षा को याद किया जा सके। उनके द्वारा दी गई भाईचारे, शांति की सीख को दुनिया वाले एक बार फ़िर अपना सकें।



निष्कर्ष (Conclusion)

गुरु रविदास का जीवन एक प्रेरणास्पद उदाहरण है जो हमें समाज में अधिकार और समानता के लिए लड़ने के महत्व को समझाता है। उनके द्वारा दिए गए भजन संगीत और संदेश आज भी हमारे जीवन में गहरे प्रभाव छोड़ते हैं और हमें सही राह दिखाते हैं। गुरु रविदास जयंती (guru ravidas jayanti) को मनाकर हम उनके योगदान को सम्मानित करते हैं और उनके संदेश को आगे बढ़ाने का संकल्प लेते हैं।

गुरु रविदास ने अपने सम्पूर्ण जीवन के दौरान जातिवाद, असमानता और अन्याय के खिलाफ लगातार संघर्षमय लड़ाइयां लड़ी। उन्होंने समाज में जातिवाद के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई और सभी मानवों को समान अधिकार और सम्मान दिलाने के लिए की गई लड़ाई में योगदान देते हुए धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों को प्रोत्साहित किया।

गुरु रविदास की महानता और उनके संदेश को याद करते हुए, उन्हें भारतीय समाज में एक महान समाज सुधारक के रूप में सदैव स्मरण किया जायेगा। 
संत रविदास जी का संपूर्ण इतिहास (sant ravidas ji ka sampurn itihas) भारतवासियों को सदैव प्रेम और भाईचारे से रहने के लिए प्रेरित करता रहेगा।

गुरु रविदास का जीवन समाज को समृद्धि, सामाजिक न्याय, और धार्मिक सहिष्णुता की ओर अग्रसर करने का संदेश देता है। उनका योगदान समाज को एक बेहतर और समर्थ समाज की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम प्रदान करता है। गुरु रविदास की जयंती (guru ravidas ki jayanti) को मनाकर हम उनके संदेश को याद करते हैं और उनके उपदेशों का पालन करते हैं।

संत रविदास का योगदान समाज में उत्कृष्टता, सामाजिक न्याय, और धार्मिक सहिष्णुता के प्रति एक सकारात्मक प्रेरणा और उत्साह प्रदान करता है। उनके संदेशों और कार्यों का महत्व आज भी हमें समाज में समर्थता और समानता की ओर अग्रसर करने के लिए प्रेरित करता है।

उम्मीद है आपको गुरु रविदास का जीवन परिचय | संत रविदास बायोग्राफी इन हिंदी (sant ravidas biography in hindi) अवश्य ही प्रेरणा स्रोत लगी होगी। ऐसे ही दिलचस्प लेख पढ़ते रहने के लिए जुड़े रहिए हमारी वेबसाइट चहलपहल के साथ।
(- By Alok)


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