नवजात शिशु की देखभाल के लिए 28 बेबी केयर टिप्स | How to take care of a baby in hindi

पहली बार माँ बनने वाली महिला सचमुच अपने बच्चे के साथ-साथ ख़ुद भी एक माँ के रूप में नया जन्म लेती है। तब न तो उसे नवजात शिशु की देखभाल (navjat shishu ki dekhbhal) का अनुभव होता है। और ना ही माँ के रूप में ख़ुद की देखभाल करने का कोई अनुभव होता है। 



ऐसे समय में नवजात बच्चे की देखभाल (navjat bachche ki dekhbhal) करना सचमुच बड़ा सावधानी से भरा काम होता है। माँ और शिशु का रिश्ता अनमोल होता है। इस रिश्ते को माँ से बेहतर और कोई नहीं जान सकता। शिशु के जन्म लेने के बाद शिशु की देखभाल बहुत सावधानी से की जानी चाहिए

अगर आप पहली बार माँ बनी हैं या बनने वाली हैं तो आपको अपने शिशु की देखभाल करने के सही तरीक़े (shishu ki dekhbhal karne ke sahi tarike) सीखने होंगे। इसके लिए अब आप बिल्कुल भी चिंता न करें। हम हैं ना! हमारे साथ अंत तक इस लेख में बने रहिये। नवजात शिशु की देखभाल कैसे की जाती है (navjat shishu ki dekhbhal kaise ki jati hai?)  


इसके लिए हम आपको इस अंक में कुछ ख़ास टिप्स देने वाले हैं। जिसे पढ़ने के बाद आप अपने बच्चे की देखभाल को लेकर चिंतित नहीं होंगी। तो चलिए बिना समय गंवाए हम आपको बेबी केयर टिप्स इन हिंदी (baby care tips in hindi) की ओर ले चलते हैं -


28 तरीक़े नवजात शिशु की देखभाल के लिए (28 Ways to Care for a newborn Baby in hindi)




(1) स्वयं की साफ़-सफ़ाई का ध्यान रखें -
शिशु की देखभाल (shishu ki dekhbhal) की बात करें तो सबसे पहले ज़रूरी है खुद को साफ़ रखना। क्योंकि मां स्वच्छ होगी तभी अपने शिशु को हेल्दी और स्वस्थ रख पाएगी। मां के लिए बेहद ज़रूरी है कि वह शिशु को अपनी गोद में लेने से पहले हाथों को साफ़ कर ले। साथ ही अपने कपड़े भी साफ़ रखे। यदि मां बाथरूम या बाहर से आई हैं तो सफ़ाई के साथ-साथ हो सके तो अपने कपड़े भी चेंज कर लें।

(2) शिशु की साफ़ सफ़ाई का ध्यान रखें -
नवजात शिशु के स्वास्थ्य और साफ-सफाई का ध्यान रखें। नवजात शिशु लिए घर में एक स्वच्छ और सुरक्षित माहौल बनाएं। नवजात बच्चे के चेहरे, हाथ, पैर और लिंग की नियमित रूप से सफ़ाई करते रहें। नवजात शिशु की साफ़ सफ़ाई का ध्यान न रखने से शिशु को संक्रमण का ख़तरा बना रहता है।

(3) गोद में लेने का सही तरीका जानें -
चूँकि आप पहली बार माँ बनी हैं इसलिए बच्चे को गोद में कैसे लिया जाए ये सोचना स्वाभाविक है। क्योंकि यदि आप शिशु को गोद में लेते समय असावधानी बरतेंगी तो बच्चे की गर्दन कि हड्डी और रीढ़ की हड्डी दबाव में आकर क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। इसीलिये आप गोद में लेते वक़्त उसके सिर और रीढ़ की हड्डी को सहारा देते हुए उठाएं। बच्चे को अपने सीने से लगाये हुए चिपकाकर रखें। यदि आपका बच्चा रो रहा हो तो उसकी पीठ पर हल्की थपथपाहट देकर या सहलाते हुए चुप कराने का प्रयास करें। शिशु की गर्दन लगभग 3 महीने के बाद अपने दम पर अपना सिर संभालने में सक्षम होती है। इसीलिए नवजात शिशु को पकड़ते समय उसके सिर और गर्दन को सहारा देकर पकड़ें। 

(4) बच्चे को झटके से हिलाने से बचें -
अक्सर देखने मिलता है कि नई-नई मां बनने वाली महिलाएँ अपने रोते हुए बच्चे को चुप कराने के लिए उसे गोद में लेकर झटके से हिलाने लगती हैं। अगर आप भी ऐसा करती हैं तो सावधान हो जाइए। विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चे को इस तरह झटका देने या ज़ोर-ज़ोर से हिलाने से उसके मस्तिष्क पर चोट लगने का ख़तरा बना रहता है। बच्चे को ज़ोर से हिलाने के बजाए धीरे-धीरे चलते हुए हल्की-हल्की थपकी देकर चुप कराने का प्रयास करें। आप उसे कोई गाना या लोरी भी सुना सकती हैं।

(5) हवा में उछालने की आदत से बचें -
हमने बहुत के लोगों को देख है कि वे शिशु को बड़े ही मज़े से हवा में उछाल-उछालकर कैच करते हैं। इस तरह की हरक़त आप बिल्कुल न करें और ना ही किसी को करने दें। क्योंकि ऐसा करना बच्चे के लिए ख़तरनाक हो सकता है। बच्चे की धड़कनें (हार्टबीट) कम-ज़्यादा हो जाने का ख़तरा बना रहता है।

(6) अपने शिशु को स्किन टच देना सीखें -
माँ बनने के बाद आपको यह सीखना बेहद ज़रूरी है। आप अपने बच्चे को अपार स्नेह करती हैं मगर स्नेह के साथ-साथ उसे आपके स्कीन टच (skin touch) की भी ज़रूरत होती है। यह महत्वपूर्ण छुवन आप अपने बच्चे को अवश्य दें। इसे कंगारू केयर भी कहा जाता है। बच्चे को सीने से लगाए रखने से उसको आपकी गर्मी मिलती है। जिससे उसकी धड़कनें नियंत्रित रहती हैं। ये समझिए कि स्किन टच से आपके बच्चे का विकास भी तेज़ी से होता है।

(7) शिशु की स्वास्थ्य सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें - 
बच्चों को समय-समय पर डॉक्टर को ज़रूर दिखाएं। बच्चे के समय समय पर वज़न में होने वाले परिवर्तन का विशेष ध्यान रखें। शिशु के वज़न के बढ़ने घटने पर विशेष रूप से नज़र बनाए रखें। नवजात शिशु के लिए उसके स्वास्थ्य पर बारीकी से ध्यान दिया जाना चाहिए।


(8) शिशु से बात करने की कोशिश करते रहें -
यह बात आपको अटपटी ज़रूर लग सकती है। मगर यह सच है। आपको अपने नवजात शिशु के साथ बात करना चाहिए। आपके शिशु के मस्तिष्क के विकास के लिए इस कारण अत्यंत लाभदायक है। शिशु का ब्रेन इस समय तेज़ी से विकास कर रहा होता है। ऐसे में उसे ध्वनि और शब्दों की आवाज़ उसके विकास में सहायक साबित होती है।

(9) समय समय पर डायपर बदलना सीखें -
शिशुओं के अंडर गारमेंट्स और डायपर को समय-समय पर चेक करते रहना होता है। हेल्दी बच्चा बार-बार पेशाब करता है। आप अपने बच्चे के गंदे डायपर को समय-समय पर ध्यान से बदलते रहें। अन्यथा लंबे समय तक गंदे और गीले डायपर के साथ रहने से उन्हें इंफेक्शन और एलर्जी का ख़तरा बना रहता है। ज़्यादा समय तक डायपर में रहने से बच्चे की त्वचा (स्किन) पर चकते पड़ने लगते हैं।

(10) नवजात शिशु की ज़रूरतों को समझें -
आपके बच्चे को कब किस चीज़ की ज़रूरत पढ़ जाए। इस बात का ज़रूर ध्यान रखें। आपके बच्चे की 2 सबसे महत्वपूर्ण ज़रूरतें है। बच्चे की पहली ज़रूरत है फीड्स और दूरी ज़रूरत है पर्याप्त नींद। बच्चे को फीडिंग कराने के बाद सोने के लिए बिल्कुल शांत माहौल हो इसका विशेष ध्यान रखें।


दरअसल शिशु को हर 2 घंटे के अंदर भूख लगती है। शिशु 24 घंटे में 16 से 20 घंटे की नींद लेता है। एक नवजात शिशु दिन में 16 घंटे से भी अधिक समय तक सोता है। शिशु प्रति 3-4 घंटे में सोते-जागते रहते हैं। सोने के लिए उनका कोई निर्धारित समय नहीं होता है। बच्चों को रात और दिन के विषय में समझने में समय लगता है। इस बात के लिए चिंता न करें। यह आम बात है कि लगभग 3 महीने तक अधिकतर नवजात बच्चे दिन में सोतें हैं और रात भर जागते हैं।
(11) दूध की बोतल की सफ़ाई का ध्यान रखें -
अगर आप अपने बच्चे को स्तनपान नहीं करती हैं तो बेबी फीडिंग बोतल की सफ़ाई पर विशेष ध्यान दें। दूध पिलाने से पहले उस बोतल को नियमित रूप से साफ़ करती रहें। यदि बोतल की निप्पल की सफ़ाई ठीक तरह से न की जाए तो यह आपके बच्चे को संक्रमित कर बीमार कर सकता है।

(12) बच्चे की मालिश सावधानी पूर्वक करें -
नवजात शिशुओं के लिए मालिश का बड़ा ही महत्त्व होता है। इससे बच्चों का शारीरिक विकास होता है। मालिश करने के लिए आप जैतून का तेल, बादाम का तेल, नारियल तेल या बेबी ऑयल का इस्तेमाल कर सकती हैं। और हाँ! मालिश करते समय विशेष ध्यान दें कि आप अथवा कोई भी भारी हाथों से नहीं, बल्कि हल्के-हल्के हाथों से मालिश करे। 

(13) नवजात शिशु को सावधानी पूर्वक नहलाएं -
जब तक बच्चे की गर्भनाल रहती है। तब तक बच्चे को नहलाने से बचाएं। गर्भनाल गिरने के बाद ही स्पंज स्नान से शुरुआत करें। बच्चे को नहलाते समय सावधानी और सफ़ाई का विशेष ध्यान रखना आपकी प्रथम ज़िम्मेदारी है। शिशु को नहलाने के लिए सबसे पहले गुनगुना पानी भरें। शिशु अगर बैठने लायक हो गया हो तो तब में बिठाएं। अगर बैठने लायक न हो तो उसकी गर्दन और पीछे की तरफ सहारा दें। ध्यान रहे शिशु जब टब में हो तो टब में ज़्यादा पानी न भरें। ठण्ड के दिनों में शिशु को रोज़ नहलाना ज़रूरी नहीं। नहलाते समय नरम साबुन का उपयोग करें। 

(14) शिशुओं के कॉस्मेटिक चीज़ों पर विशेष ध्यान दें -
ध्यान रहे, बच्चों के लिए उपयोग किये जाने वाले कॉस्मेटिक प्रोडक्ट ऐसे हों जो उसकी त्वचा को हानि न पहुंचाए। उदाहरण के लिए बेबी सोप, बेबी ऑयल, बेबी शेम्पू, बेबी पावडर, क्रीम आदि। साबुन व शेम्पू का इस्तेमाल अत्यंत सावधानी के साथ करें। इस बात विशेष ध्यान रखें कि ये आपके बच्चे की आँखों में ज़रा सा भी न जाये।

(15) बच्चे की गर्भनाल (नाभिरज्जु) का ध्यान रखें-
डिलीवरी के बाद शिशु को माँ से अलग करने के लिए गर्भनाल को काटा जाता है। गर्भनाल के इस छोटे से भाग को ठूँठ हैं जो कि बच्चे की नाभि पर रह जाता है। हालांकि यह हिस्सा जान, से 10-15 दिनों के अंदर सुखकर गिर जाता है। तब तक इसकी देखभाल करना ज़रूरी होता है।मां होने के नाते आपको इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि आपके बच्चे की गर्भनाल की देखभाल अच्छी तरह और सावधानी से हो। गर्भनाल की अच्छी तरह सफ़ाई करते रहे। विशेषज्ञ के बताए पाउडर या क्रीम ज़रूर इस्तेमाल करें।

(16) बोतल के दूध की जगह स्तनपान ज़्यादा ज़रूरी -
एक बात जान लें कि नवजात बच्चे के लिए मां का दूध ही सर्वोत्तम माना जाता है। नवजात शिशु को 2 से 3 घंटों के अंतराल में स्तनपान कराना आवश्यक होता है। यानि कि 24 घंटों में 8 से 12 बार स्तनपान कराना चाहिए। यह सिलसिला जन्म से 6 महीने तक अनिवार्य रूप से चलना चाहिए। आप अपने बच्चे को तब तक स्तनपान कराएं जब तक बच्चा पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो जाता। बच्चा अगर 3-4 घंटों से सो रहा हो तब भी उसे उठाकर आप स्तनपान करा सकती हैं। शिशु को स्तनपान कराते समय यह ध्यान रखें कि आपके निप्पल साफ़-सुथरे हैं या नहीं। साथ ही यह भी ध्यान देना हैं कि आपका बच्चा ठीक तरह से स्तनपान कर रहा है या नहीं। उसका पेट भर रहा है या नहीं। अगर बच्चे के लिए पर्याप्त दूध नहीं निकल रहा हो तो ही विकल्प के रूप में बोतल की व्यवस्था करें।


(17) स्तनपान के बाद शिशु को डकार ज़रूर दिलाएं -
लगभग सभी शिशु स्तनपान के समय मुहं से हवा निगल लेते हैं जिसके कारण उनके पेट में गैस जमा हो जाती है। जो कि यदि निकली जाये तो पेट दर्द का कारन भी बनती है। इसलिए हर बार स्तनपान के बाद शिशु को ऊपर की ओर पकड़ सीने से लगा लें और उसकी पीठ को 5-10 मिनट के लिए हल्की-हल्की थपकी दें। इससे बच्चे के पेट में जमा गैस या हवा डकार के माध्यम से मुँह के बाहर निकल जाती है। 

(18) बच्चे को बेड पर सुलाने की तकनीक सीखें -
बच्चे को बिस्तर पर सुलाते समय इस बात का ध्यान रखें कि उसका बिस्तर पूरी तरह मुलायम व आरामदायक हो। बिस्तर के बीच में कहीं भी असमान या ऊँचा नीचा ना हो। बच्चा बिस्तर पर अपने अनुसार करवट ले सके अथवा आसपास घूम फिर सके। 

(19) खिलौनों को बच्चे के बिस्तर से दूर रखें -
नवजात शिशुओं का सोते-सोते बिस्तर से गिर जाना आम बात है। चंचल बच्चे यूँ ही सरकते हुए अगर बिस्तर से नीचे गिर जाएं और उसके बिस्तर के आसपास नीचे उसके खिलौने रखे हुए हों तो बच्चे के लिए घातक हो सकता है। हो सकता है बच्चा बिस्तर से गिरने के बाद अपना होश खो बैठे। यदि आपके बच्चे को सिर पर गंभीर चोट या रक्तस्राव होता है। तो फ़ौरन डॉक्टर से संपर्क करें।

(20) बच्चे के कमरे की सफ़ाई पर विशेष ध्यान दें -
बच्चे के कमरे की सफ़ाई का ध्यान विशेष रूप से करें। पूरे कमरे में बच्चा घूमता रहता है, अगर कमरे में सफ़ाई रखें तो संक्रमण का ख़तरा कम होता है। बाहर से आने वाले लोग साफ़ सफ़ाई के बाद ही बच्चे के कमरे में प्रवेश करें। कमरे में धूल, कचरा वगैरह न जाये इस बात ध्यान रखें क्यूंकि ऐसा होने बच्चे को किसी भी प्रकार की एलर्जी हो सकती है।  

(21) कपड़े साफ़ और आरामदायक पहनाएं -
बच्चे एक दिन में कई कपड़े ख़राब करते हैं। इसलिए उनके कपड़े नर्म होने चाहिए। उनके कपड़ों को धोने के लिए अच्छे सॉफ्ट डिटर्जेंट का प्रयोग करें जिससे उनकी त्वचा को कोई नुकसान न हो। बच्चे को बहुत ज़्यादा रंगीन कपड़े पहनने से परहेज करें। कॉटन के कपड़ों का चयन ज़्यादा बेहतर साबित होगा। इस बात का सदैव ध्यान रखें कि आपके बच्चे के कपड़ों में बटन या पिन जैसी कोई भी चीज़ न लगी हो। 

(22) बच्चे के नाख़ूनों को पूर्ण सावधानी से समय-समय पर काटें -
हम आपको बता दें कि नवजात शिशु के नाख़ून बड़ी तेज़ी से बढ़ते हैं। ऐसे में शिशु अपने नाख़ूनों से अपने ही चेहरे या शरीर को खरोंच सकता है। इसीलिए शिशु के नाख़ून काटना बेहद ज़रूरी हो जाता है। चूँकि शिशु के नाख़ून कोमल होते हैं इसीलिए बच्चा जब सो रहा हो तब बच्चों वाली नाख़ून कतरनी से धीरे से बड़े ही सावधानी पूर्वक काटें। ध्यान रहे नाख़ूनों को बहुत गहरे तक न काटें और किनारों को भी न काटें वर्ना बढ़ते हुए नाख़ून बच्चे के लिए दर्दनाक हो सकते हैं। 

(23) बच्चे के रोने का कारण समझने का प्रयास करें -
बच्चों के रोने का अर्थ यह कदापि नहीं होता है कि उसे तकलीफ़ है। रोना बच्चे के लिए एक अच्छा अभ्यास भी है। आपका बच्चा अगर रोटा है तो उसे मारें या डाँटें नहीं। बल्कि उसे प्यार से चुप कराएँ। यदि वह लगातार ज़्यादा रोए तो डॉक्टर को अवश्य दिखाएँ। सामान्यतः बच्चे पेट में तकलीफ़ होने के कारण भी रोते हैं। 

(24) बच्चे को अकेला क़भी न छोड़ें -
शिशु रोग विशेषज्ञों का मानना है कि लगभग 2 से 3 महीनों तक नवजात बच्चे को कभी अकेला न छोड़ें। उन्हें हमेशा नज़र के सामने यानि कि निगरानी में रखना चाहिए। अक्सर बच्चों को अकेला छोड़ देने से ही अनेक प्रकार की घटनाएं सुनने व देखने मिलती हैं। अगर आप पहली बार माँ बन रही हैं तो यह सावधानी ज़रूर रखें। 

(25) डॉक्टर से परामर्श लेने में लापरवाही न बरतें -
आपको कभी भी ज़रा सा भी संदेह हो कि आपका शिशु किसी परेशानी में है। कोई भी अलग तरह के लक्षण दिखाई दें तो ऐसी परिस्थिति में डॉक्टर से परामर्श या चिकित्सा लेने में ज़रा भी लापरवाही न करें। इन दिनों हो सके तो किसी चाइल्ड स्पेशलिस्ट के संपर्क में रहें। 
 
(26) माँ का हेल्दी डाइट लेना ज़रूरी -
अपने बच्चे देखभाल में मगन रहते हुए ख़ुद का ख्याल करना न भूलें। हमेशा याद रखें कि बच्चों हेल्दी तभी रखना संभव होता है जब मां भी स्वस्थ व हेल्दी हो। मां होने के नाते आपको भी डाइट पर ध्यान देना ज़रूरी है। क्योंकि दिन में कई बार बच्चे को स्तनपान कराने का ज़िम्मा भी आपका ही है। 

(27) टीकाकरण (वेक्सीनेशन) का विशेष ध्यान रखें -
नवजात शिशु को संक्रमण से बचाने के लिए वैक्सीनेशन करवाना अत्यंत आवश्यक होता है। अपने नवजात शिशु के लिए अपने पेडियाट्रिशियन के साथ वैक्सीनेशन संबंधित चार्ट पर विशेष तौर पर चर्चा करें और उनकी सलाह का पालन करें। पोलियो की पिलाई जाने वाली ख़ुराक ज़रूर पिलायें। उसको जन्म से लगने वाले सभी टीकों की लिस्ट तैयार कर लें। बच्चों को जन्म से लेकर 16 साल तक टीके लगाए जाते हैं। 


(28) शिशु का नियमित चेकअप ज़रूर करवाएं -
अपने नवजात शिशु को नियमित चेकअप के लिए अपने पेडियाट्रिशियन के पास ले जाएं। वे बच्चे के विकास और स्वास्थ्य का माप लेंगे और आपको आवश्यक सलाह देंगे।यदि आपके नवजात शिशु के स्वास्थ्य संबंधी समस्या के कोई संकेत नज़र आ रहे हों तो जल्द से जल्द उपयुक्त डॉक्टर से सलाह लें और उनके निर्देशों का पालन करें।

उम्मीद है आपको हमारा यह अंक "नवजात शिशु की देखभाल के लिए बेबी केयर टिप्स (Navjat shishu ki dekhbhal ke liye baby care tips)" ज़रूर पसंद आया होगा। हमे आशा है आप इस अंक में दिए गए टिप्स पर ज़रूर अमल करेंगी। ताकि बेबी की देखभाल (baby ki dekhbhal) सही तरीक़े से हो सके। और आपका बेबी शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूप से हरसंभव विकास कर सके।
(- By Poonam)

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