बच्चों को हॉरर फ़िल्में देखने की आदत न बनने दें। हो सकते हैं भयंकर दुष्प्रभाव!
दोस्तों, हर इंसान ने अपने जीवन में कभी न कभी डर का सामना ज़रूर किया होगा। क्यूँ...? सही कहा न हमने। हो सकता है आप सपनों में डरे हों, रात में कहीं आते जाते एकांत रास्तों में डरे हों या देर रात को किसी डरावनी हॉरर फ़िल्म या किसी टीवी सीरियल को देखने के बाद रात में ऐसा महसूस हुआ हो कि जैसे पर्दे के पीछे, खिड़की के पास, बिस्तर के नीचे, आलमारी की आड़ में कोई है। ऐसा महसूस हुआ हो कि जैसे आपके पीछे पीछे कोई साया चल रहा हो।
वाक़ई ऐसी फ़िल्में देखना और फ़िर भयानक डर का सामना करना (bhayanak dar ka samna) samna) किसी ख़तरनाक अनुभव से कम नहीं होता। ये डर भले ही आपके लिए एक मामूली घबराहट हो। मगर ज़रा सोचिए कि अगर इसी डर का सामना आपकी नन्ही सी जान कर रही हो। तब तो ये मामला ज़रा गंभीर मालूम पड़ता है। आप तो जानते हैं कि हर बच्चे की मानसिक क्षमता एक जैसी नहीं होती। हर बच्चे पर सभी चीज़ों का एक समान असर हो यह भी ज़रूरी नहीं।
जी हां! इस लेख में हम आपसे यह चर्चा करने वाले हैं कि बच्चों को हॉरर फ़िल्मों से क्या दुष्प्रभाव हो सकते हैं? (bachcho ko horror filmo se kya dushprabhav ho sakte hain?) दरअसल हॉरर फ़िल्में, Stories, youtube Videos या हॉरर सीरियल्स ही क्यूँ न हों। बच्चों के कोमल मानस पटल पर बेहूदा असर तो छोड़ते ही हैं।
हॉरर फ़िल्मों से बच्चों को होने वाले नुकसान | Disadvantages to Children from horror movies in hindi
बच्चों का दिल सचमुच बहुत कोमल होता है। बच्चों के मन पर हॉरर फ़िल्मों का बेहद बुरा असर होता है। यह बात अलग है कि कुछ लोग हॉरर फ़िल्मों को उत्साह और new creativity के साथ जोड़ते हैं। लेकिन ऐसा सोचना पूरी तरह बच्चों के हित में भला कैसे हो सकता है? आइये हम जानने की कोशिश करते हैं कि बच्चों को हॉरर फ़िल्मों से क्या नुकसान हो सकते हैं (bachcho ko horror filmo se kya nuksan ho sakte hain?)
1. व्याकुलता और डर -
बच्चे अगर हॉरर फ़िल्म ज़्यादा देखते हैं तो ऐसी फ़िल्मो का उनके 2 मन पर गहरा असर हो सकता है। कई विशेषज्ञों ने अपने शोधों में पाया है कि इस तरह की फ़िल्मों के दृष्य यदि बच्चों के किसी अनुभव से जुड़ जाए तो वो हमेशा का ख़ौफ़ बनकर रह जाता है। इसीलिए अगर कुछ सालों तक बच्चों को इस तरह की ख़ौफ़नाक फ़िल्मों से बचाकर रखा जाए तो ज़्यादा बेहतर होगा। बढ़ती उम्र में जब बच्चा अपनी ही उलझनो में परेशान होता है तब उसे नई नई चीज़ो से सामना करना पड़ता है और अगर वह पहले से ही डरपोक क़िस्म का हो तो उसका हॉरर फ़िल्मों से दूर रहना (horror filmo se dur rehna) ही उचित होगा।
2. व्यवहार में तेज़ी से बदलाव -
आज के युग में मीडिया का हम सभी पर यानि कि समाज पर भरपूर असर देखा जा सकता है। साथ ही हमारे बच्चों पर भी इसका एक समान रूप से प्रभाव पड़ रहा है। चिंता की बात ये है कि इसका प्रभाव अब हमारी आदतों, विश्वास और व्यक्तित्व पर भी पड़ने लगा है। हमारी सोच, समझ और बोली भाषा भी इससे अछूती नहीं रही। आपके नादान बच्चे इस मीडिया युग से प्रभावित होकर ग़लत रास्ते पर चल पड़ें यह उनके लिए कदापि सही नहीं होगा।
3. मन में डर बैठना -
चूँकि हॉरर फ़िल्में बड़ों-बड़ों के मन पर भी ख़तरनाक असर छोड़ती है। हमारे दिलो-दिमाग़ पर इतना गहरा असर डालता है। अब जरा सोचिए कि यही आलम आपके घर के बच्चों का हो जाये तो..! सचमुच आपके बच्चों के मन में गहरा असर हो सकता है। परिणामस्वरूप आपका बच्चा दब्बू बन सकता है।
4. बच्चे की नींद में कमी होना -
इस तरह के हॉरर फ़िल्में देखने की वजह से बच्चे अक़्सर रात में डरने लगते हैं। चूँकि ज़्यादातर हॉरर फ़िल्में या सीरियल्स देर रात को ही आते हैं या देखे जाते हैं। जिसका दुष्परिणाम यह होता है कि बच्चे देर रात तक डरते रहते हैं। जिस कारण उनकी नींद पूरी नहीं हो पाती। बीच-बीच में डर कर जाग जाते हैं। जो कि बच्चों की सेहत के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है।
5. काल्पनिक चीज़ों पर विश्वास -
आपने हॉरर फ़िल्मों में देखा होगा कि वहाँ अधिकतर कैरेक्टर्स ऐसे दिखाए जाते हैं जिनका ज़्यादा के ज़्यादा डर या ख़ौफ़ उनके देखने वालों पर हो। यही कोशिश की जाती है कि उन कैरेक्टर्स या उन फ़िल्मों की कहानियाँ लोगों के लिए ज़्यादा से ज़्यादा डरावनी साबित हो। ऐसा करने के लिए निर्माता काल्पनिक कहानियों अथवा काल्पनिक कैरेक्टर्स के साथ अपनी फ़िल्में समाज में परोसता है।
ऐसी काल्पनिक और डरावनी फ़िल्में देखकर बच्चों को उसी तरह के कैरेक्टर्स और मनगढ़ंत, काल्पनिक कहानियों पर विश्वास होने लगता है। जो उनके असल जिंदगी में नहीं हैं। बच्चों का काल्पनिक चीज़ों पर विश्वास करना उनके जीवन के लिए बिल्कुल भी सही नहीं है।
6. बच्चों का एकांत में रहना मुश्किल -
आप भलीभाँति जानते हैं कि हॉरर फ़िल्मों में कई अलग-अलग तरह की डरावनी आवाज़ों और बेहद डरावनी तस्वीरों का इस्तेमाल करना अनिवार्य माना जाता है। जिनका परिणाम यह होता है कि बच्चे डरते हैं और अकेले में इन डरावनी चीज़ों की कल्पना करते रहते हैं। यानि कि एकांत में बच्चों के मन में यही सब चलता रहता है। जिस कारण बच्चों को एकांत में रखना मुश्किल हो जाता है।
7. उग्र मानसिकता को बढ़ावा -
इसमें कोई दो मत नहीं, कि हॉरर या थ्रिलर फ़िल्में उग्र मानसिकता को जन्म देती है। इस तरह की फ़िल्मों से बच्चे तो क्या बड़े भी किसी परेशानी का हल, हिंसा से निकालना सीखते हैं। विशेष तौर पर बच्चे, कहानी और हक़ीकत का भेद करने में उतने समर्थ नहीं होते। परिणामस्वरूप इनके निजी जीवन पर ऐसी ख़तरनाक फ़िल्मों का बड़ा असर दिखाई देता है।
कैसे भगाएं बच्चों के मन से डर (How to remove fear from children's mind in hindi)
आपने अभी जाना कि बच्चे कोमल व मासूम मिज़ाज केे होते हैं। हालांकि कुछ बच्चे कम तो कुछ ज़्यादा भावुक (sensitive) होते हैं। इस तरह की परिस्थितियों से निपटने के ताक़त हर बच्चे में एक समान नहीं होती। उन्हें जो भी दिखता है, उसे ही सच मान लेते हैं।
हॉरर फिल्में, सीरियल या कहानी देखने व सुनने के बाद उनके मन में डर बैठ जाता है। जिस वजह से वे रात को अकेले बाहर जाने से डरने लगते हैं। कई बार उनके सपनों में वही डरावनी चीजें आने लगती हैं, जो उन्होंने सीरियल या फ़िल्म में देखा है। ऐसे में ज़रूरी है कि पैरेंट्स अपने बच्चों के लिए कुछ आवश्यक हॉरर फिल्मों से दूर रखें।
अगर बच्चे के मन में किसी प्रकार का डर घर कर गया है, तो उन्हें ये बताकर शांत कराएं कि उन्होंने जो देखा है वह कोरा काल्पनिक था, उसका असल जिंदगी से कोई लेना देना नहीं है। फ़िर भी अगर आपका बच्चा बढ़ती उम्र में हो तो क्यूँ ना उसको कुछ और साल इन हॉरर फ़िल्मों के ख़तरों (horror filmo ke khatre) से बचाया जा सकता है। आइये पढ़ते हैं कि बच्चों इस तरह की ख़ौफ़नाक और डरावनी कहानियों, फ़िल्मों के असर यानि कि बच्चों को हॉरर फ़िल्मों के दुष्प्रभावों से कैसे बचाया जा सकता है?
1. डरावनी फ़िल्मों से रखें दूर –
बच्चों को रात में हॉरर फिल्म या टीवी शो बिल्कुल ना देखने दें। उनके सामने कभी भी कोई ऐसी बात न करें, जिनसे उन्हें डर लगता हो। डर निकालने के लिए दिन में आराम से उनसे इस विषय पर बात करें।
2. बच्चे के साथ समय बिताएं – अगर बच्चे अकेले सोते हैं और डरते हैं, तो उनके साथ लेटकर थोड़ा समय बिताएं। इस दौरान उन्हें अच्छी और हिम्मत वाली बात बताते रहें। जब बच्चा सो जाए, उसके बाद भी 25-30 मिनट के गैप पर कमरे में आते रहें, इससे बच्चा ख़ुद को अकेला नहीं समझता और डर महसूस करना बंद कर देता है।
3. बच्चों को निडर बनाएं – बच्चों को निडर बनाने के लिए उन्हें साहसिक कहानियां सुनाएं, ताकि उनके मन से डर बाहर निकल सके। उन्हें अंधेरे कमरे में ले जाकर हंसी का माहौल बनाएं।
4. डर का वैज्ञानिक तथ्य भी बताएं – बच्चा अगर किसी चीज से डर रहा है, तो उसका डर निकालने के लिये ज़बरदस्ती उस चीज से उसका सामना न कराएं। डर निकालने के लिए उसे उस घटना का सही कारण बताएं। मसलन, अगर बच्चा तेज़ हवा और बारिश से डर रहा है तो उसे उसका वैज्ञानिक कारण बताएं। इससे बच्चे का डर आसानी से कम होगा।
5. बढ़ती उम्र के बच्चों के लिए पर्याप्त और सुखद नींद का होना ज़रूरी -
हम आपको बता दें कि इस उम्र में बच्चों के विकास की कोशिकाएँ सक्रिय रूप से शरीर में काम करती हैं।हर बच्चे की मानसिक गतिविधि एक जैसे नहीं होती।उग्र व्यवहार, ख़ौफ़ या डरावनी स्मृतियाँ उसकी नींद में बाधा डाल सकती हैं। इसलिए हमेशा ध्यान दें कि आपके बच्चे कितने समय सोते हैं। आप किस माहौल को महफ़ूज़ मानते हैं आप उन्हें वैसा ही वातावरण देने का प्रयास करें।
उम्मीद है आपको हमारा यह लेख "बच्चों को हॉरर फ़िल्में देखने से बचाएं। हो सकते हैं भारी दुष्प्रभाव | Horror movies Effects on kids in hindi" आपको अवश्य पसंद आया होगा। आशा है इसे आप अपने दोस्तों से ज़रूर शेयर करेंगे।
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