किशोर बच्चों की परवरिश करते समय रखें इन बातों का विशेष ध्यान। वर्ना पड़ सकते हैं मुसीबत में।

किशोरावस्था में बच्चों की देखभाल कैसे करें? | किशोर किशोरियों की देखभाल कैसे करें | किशोरावास्था में किन किन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है?




दोस्तों किशोरावस्था बच्चों के जीवन के महत्वपूर्ण और संवेदनशील चरणों में से एक है। किशोरावस्था एक अत्यंत महत्वपूर्ण चरण है जब बच्चे शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक रूप से विकसित हो रहे होते हैं। यौवन रूपी शारीरिक परिवर्तन, तर्क कौशल, तर्कसंगत विचार और नैतिक निर्णय के विकास के साथ सामाजिक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तन भी होते हैं। इस अवधि में उन्हें सही मार्गदर्शन, समर्थन और प्रेरणा की अत्यंत आवश्यकता होती है।

एक कहावत है कि इलाज से बेहतर बचाव (Prevention is better than cure) होता है। बच्चों के सिर पर से पानी गुज़र जाए, उससे पहले ही माता-पिता को सतर्क हो जाना चाहिए अन्यथा डिप्रेशन, कुंठा और नकारात्मक प्रवृत्तियों के चलते आपके बच्चों के साथ-साथ परिवार को भी बेकार की मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है।

इस अवधि में उन्हें समझौता करना, स्वतंत्रता के साथ निर्णय लेने में उनकी सहायता करना और उनके सामाजिक और आत्मिक विकास को समर्थन देना महत्वपूर्ण होता है।
यहां कुछ महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत होती है। आइये जानते हैं किशोर बच्चों की परवरिश कैसे करना चाहिए (kishor bachchon ki parvarish kaise karna chahiye?)


किशोरावस्था में बच्चों की परवरिश कैसे करें?


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शोरावस्था में बच्चों की परवरिश (kishoravasthaa  me bachchon ki parvarish) के लिए निम्न बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए ताकि वे समृद्ध और स्वस्थ जीवन जी सकें।

1. स्वतंत्रता और स्वाधीनता - 
किशोरावस्था में बच्चों की स्वतंत्रता और स्वाधीनता के महत्व को समझाना ज़रूरी होता है। उन्हें निर्णय लेने और अपने विचारों को व्यक्त करने की स्वतंत्रता देनी चाहिए। कुछ पेरेंट्स अपने बच्चों पर इतना ज़्यादा दबाव रखते हैं कि उन्हें अपने मन की बात अपने माता पिता से कहने में हिचक बनी रहती है।

बच्चे की प्राइवेसी का ख़्याल रखें। हर समय उसके कमरे की ताकाझांकी, उसके msgs, emails, पढ़ना सही नहीं है। बल्कि आपको अपने स्तर पर यह पता रखना चाहिए कि आपका बच्चा किसके साथ मेलजोल रख रहा है।

आज के समय के किशोर लड़के-लड़कियाँ ज़माने के साथ अपडेट रहना पसंद करते हैं। ऐसे में उनके फ़ैशन, कपड़े पहनने के ढंग आदि पर हर समय टोकाटाकी करना सही नहीं है। बल्कि उन्हें प्यार से, उपयुक्त समय मिलने पर समझाना ज़्यादा ठीक होता है। वरना ये विद्रोही बनेंगे। हो सकता है ऐसे में वे आपकी सही बातों को भी न सुनें।


2. सही और ग़लत की समझ विकसित करें - 
किशोरावस्था में बच्चों की परवरिश के लिए उन्हें सही और ग़लत के बारे में शिक्षा देना भी बेहद ज़रूरी होता है। वे जीवन में विभिन्न स्थितियों का सामना करते हैं, जहां उन्हें अपने स्तर पर निर्णय लेने की क्षमता विकसित करनी होती है।

3. गुड टच और बेड टच की समझ - 
बाल यौन शोषण संबंधी आंकड़े यही दर्शाते हैं कि बच्चों के साथ यौन शोषण ज़्यादातर उनके क़रीबी लोगों, रिश्तेदारों या विश्वसनीय लोगों के द्वारा ही किया जाता है। इसलिए आपका बालक हो या बालिका, उन्हें अच्छी तरह समझा दें कि वे किसी की गोद में न बैठें। चाहे वो कोई भी हो। फ़िर वो आपका क़रीबी या रिश्तेदार ही क्यों न हो। बच्चों को उनसे रोज़मर्रा मिलने वाले लोगों के गुड टच और बेड टच के बारे में अच्छी तरह समझाएं।

4. यौन शिक्षा अवश्य दें - 
बच्चों को यौन शिक्षा अवश्य दें। अन्यथा वे ग़लत जगह और ग़लत व्यक्तियोँ से अधकचरी जानकारी ग्रहण कर लेंगे। हो सकता है कि बाहरी लोग आपके बच्चों को समझाने के बजाय भटकाने का प्रयास करें। किशोरावस्था में शरीर में आने वाले बदलावों तथा लड़के लड़कियों के बीच स्वस्थ दोस्ती के महत्व के बारे में अवश्य बताएं। उन्हें उनके लक्ष्य के बारे में प्रेरित करते रहें।

5. शिक्षा का महत्त्व - 
बच्चों को शिक्षा के महत्व को समझाना चाहिए। उन्हें विद्या की महत्वता, पढ़ाई में निरंतरता और आत्म-संवाद कौशल का विकास करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। बच्चों में सीखने को विशिष्ट प्रवृत्ति पाई जाती है। बच्चों में शिक्षा के प्रति लगन लग जाए तो फालतू के भटकाव के ख़तरे कम हो जाते हैं।

6. संवाद और समर्थन -
किशोरावस्था में हमें बच्चों के मानसिक विकास को समझने की आवश्यकता होती है। इस अवधि में बच्चे अपने आत्म-पहचान को खोजने के लिए संवेदनशील होते हैं। इसलिए हमें उनकी भावनाओं और विचारों को समझने का प्रयास करते हुए उनके विचारों को सुनने और संवाद करने के लिए समय निकालना चाहिए। ताकि बच्चे अपनी किसी भी परेशानी को घर आकर माता पिता से साझा कर सकें।


7. बच्चों से दोस्ताना व्यवहार रखें - 
किशोरावस्था में बच्चों के साथ सहज रूप से बातचीत होना आपके और उनके लिए अत्यंत है। बच्चों के साथ अपने किशोरावस्था के दिनों की यादें साझा करते हुए उन्हें समझाने का प्रयास करें कि किशोरावस्था में कुछ समस्याएं होना स्वाभाविक है। ऐसे में बच्चे सहज महसूस करेंगे। किशोरावस्था में ऐसे अनेक सवाल होते हैं जिनका जवाब बच्चों को सही सही न मिले तो वे भ्रमित हो जाते हैं। यही जिज्ञासा उन्हें कभी कभी ग़लत दिशा की ओर ले जाती है।

8. स्वस्थ जीवनशैली - 
बच्चों को स्वस्थ जीवनशैली के महत्व को समझाने के लिए सदैव प्रेरित करना चाहिए। उन्हें स्वस्थ व साफ़ सुथरा खाने की आदतें, नियमित व्यायाम का महत्व समझाना चाहिए। अवसाद और तनाव को कैसे नियंत्रित किया जाए, इसके बारे में विशेष तौर पर शिक्षा देना चाहिए।

9. सामाजिक नैतिकता
बच्चों को सामाजिक नैतिकता, सहयोग और सहभागिता की महत्वता को समझाना चाहिए। ताकि वे अपने सामाजिक दायित्वों को समझकर उन्हें निभाने की कला सीख सकें। यही शिक्षा उन्हें सही और ग़लत के बीच अंतर को समझने में मदद करेगी। एक विशेष बात यह कि बच्चों की किसी और के साथ खुले तौर पर तुलना करने से बचना चाहिए।

10. आत्म-समर्थन - 
अपने बच्चों को स्वयं के प्रति विश्वास और आत्म-समर्थन का विकास करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। बच्चे अक़्सर ज़रा ज़रा सी बातों के लिए हीन भावना के शिकार हो जाते हैं। इसलिए उन्हें ख़ुद पर विश्वास करना सिखाएं। ताकि अपने लक्ष्य को ओर बढ़ने में उनका ये आत्मविश्वास काम आ सके।


11. लक्ष्यों के प्रति समर्थन व प्रोत्साहन - 
बच्चों को संबोधित करने और समर्थन प्रदान करने के लिए हमें उनके सपनों और लक्ष्यों को समझना चाहिए। उन्हें उनके कौशलों और प्रिय क्षेत्रों में समर्थन और प्रोत्साहन प्रदान करना चाहिए। समाज में बच्चों को समर्थन और प्रेरणा की आवश्यकता होती है ताकि वे अपने पूरे पोटेंशियल के साथ प्रयास में जुट सकें और अपने सपनों को पूरा कर सकें।

12. संवेदनशीलता व सुरक्षा के प्रति जागरूकता - 
उन्हें अपने भावनाओं और दूसरों के भावनाओं की समझ करने और संवेदनशीलता का विकास करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्हें अपनी और अन्यों की सुरक्षा के प्रति जागरूकता और सतर्कता को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

13. मानसिक स्वास्थ्य - 
उन्हें मानसिक स्वास्थ्य की महत्वता को समझाना चाहिए और किसी भी मानसिक समस्या का सामना करने के लिए सहायता और समर्थन प्रदान किया जाना चाहिए। बच्चों को अपनी समस्या से जूझते हुए अकेलेपन का एहसास न हो इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए।

14. किसी के साथ कहीं अकेले न भेजें - 
अपने बच्चे को किसी एकल व्यक्ति के घर न जाने दें, और ना हि किसी भी काम से उन्हें किसी के साथ अकेले भेजें। किसी भी व्यक्ति को अपने बच्चों की ज़िम्मेदारी देने से पहले अच्छी तरह देख परख लें। साथ ही उन पर नज़र भी बनाए रखें। किसी पर भी जल्दी विश्वास कर निश्चिंत हो जाना सही नहीं है।


15. सोशल साइट्स व ब्राउजिंग हिस्ट्री का ध्यान रखें - 
मातापिता होने के नाते आपका नियंत्रण आपके बच्चों के केबल नेटवर्क पर होना चाहिए। स्वयं को आश्वस्त कारण के लिए कभी-कभी अपने बच्चे की सोशल साइट्स पर ब्राउज़िंग हिस्ट्री चेक कर लिया करें। कार्टून की सीरीज़ को सरसरी निग़ाह से पहले से ख़ुद देख लें। आजकल कार्टून सीरीज़ में भी पॉर्नोग्राफिक चीज़ें शामिल की जाती हैं।

16. दोस्तों के साथ बाहरी गतिविधियों पर ध्यान रखें - 
जब भी आपके बच्चे अपने मित्रों के साथ बाहर जाएं तो किसी भी तरीक़े से यह पता लगाएं कि किस तरह की गेम्स वे खेलते हैं। बच्चों को 9-10 साल की उम्र से ही बातों बातों में सिगरेट, शराब, गुटखे की बुराइयों के बारे में बताएं। ताकि समय रहते ही आपका बच्चा इन बुराइयों से दूर रहना सीख जाए।

आजकल के किशोर लड़के लड़कियाँ ग्लैमर की चकाचौंध में आकर ग़लत संगत में फंस जाते हैं। इसलिए आपके बच्चे किन लोगों से मेल जोल रख रहे हैं। उनके कोई नए दोस्त बने हों तो उनकी जानकारी प्राप्त करें। और पाने स्तर पर पैनी नज़र भी बनाए रखें।

17. भरोसा कायम क़ायम रखना सिखाएं -
अपने बच्चों पर भरोसा करें और साथ ही उन्हें भी सिखायें कि वे आपका भरोसा न तोड़ें। उन्हें सचेत कर दें कि यदि वे आपका भरोसा तोड़ते हैं तो उनकी स्वतंत्रता में कटौती तय है। ऐसे मे बच्चों को थोड़ा डर होगा और अपनी ज़िम्मेदारी निभाने की कटिबद्धता भी होगी।

18. ग़लतियों पर पर्दा डालने की आदत से बचें -
बच्चों की ग़लतियों पर पर्दा डालने की हमेशा की आदत न बनाएँ। वरना आपके बच्चों के मन में यह सोच घर कर जाएंगी कि वे कोई भी ग़लती करें, उन्हें कोई भी सज़ा नहीं मिलेगी। ऐसे में वे धड़ल्ले से कोई भी हरक़त करने, कोई भी क़ानून तोड़ने में रत्ती भर भी नहीं हिचकिचाएंगे।


निष्कर्ष : 
सचमुच किशोरावस्था में बच्चों की परवरिश करना अत्यंत संवेदनशील कार्य होता है। इस अवधि में उन्हें समझना , उनकी भावनाओं की कद्र करते हुए उन्हें अच्छे बुरे की परख सिखाते हुए, बेहतर लक्ष्यों की तरफ़ प्रोत्साहित करना निसंदेह एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसमें ज़रा भी लापरवाही मतलब, उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ ही समझिए।

अधिकांश पेरेंट्स इस संवेदनशील कार्य को अच्छी तरह नहीं निभा पाते और वे अपने बच्चों पर ज़रूरत से ज़्यादा दबाव और तनाव बनाए रखते हैं। जिसका परिणाम यह होता है की बच्चे सही समय पर सही निर्णय लेने में सक्षम नहीं हो पाते हैं। उनमें हीन भावना और आत्मविश्वास की कमी देखी जाती है। वे अन्य बच्चों की अपेक्षा दबे और कुंठित भावना के साथ जीते हैं।

टीन एज बच्चों को उनकी प्रकृति के अनुरूप उपयुक्त समय देखकर समझाईश देने की आवश्यकता होती है। कभी भी किशोर बच्चों पर ज़रूरत से ज़्यादा। दबाव बनाने के बजाय उनसे दोस्ताना व्यवहार रखने की कोशिश करें और उनकी समस्याओं को सुनकर समझने और समाधान खोजने की कोशिश करें।

उम्मीद है यह लेख "किशोर बच्चों की देखभाल कैसे करें (kishor bachchon ki dekhbhal kaise karen)" आपको अवश्य ही पसंद आया होगा। हम आशा करते हैं कि इस लेख को आप अपने दोस्तों से ज़रूर शेयर करेंगे और अपने जीवन में भी इन बातों को अपनाएंगे।(1800)


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