आजकल रिश्तों के टूटने की वजह क्या है? | क्या दूरियां बन रही हैं रिश्तों के टूटने की वजह? | Aajkal riahte asafal kyon ho rahe hain?
दोस्तों हमारे जीवन में आपसी रिश्ते, सबसे सुंदर और संवेदनशील पक्ष होते हैं। ये न केवल हमारे सामाजिक ढांचे का आधार होते हैं, बल्कि भावनात्मक और मानसिक संतुलन का भी केंद्र होते हैं।
लेकिन आज के तेज़ रफ़्तार जीवन में रिश्तों की परिभाषा और उनकी अहमियत में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है। पहले जहाँ रिश्ते जीवन का आधार हुआ करते थे, वहीं आज इन रिश्तों में दरारें और दूरियां बढ़ती जा रही हैं। चाहे वह पति-पत्नी का रिश्ता हो, माता-पिता और बच्चों का या फ़िर दोस्ती का रिश्ता ही क्यूं न हो।
आज के दौर में छोटी-छोटी बातों पर रिश्ते बिखर रहे हैं, जिसके चलते समाज में अकेलेपन की समस्या बढ़ती जा रही है। हर स्तर पर नए दौर का असर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। ऐसे में यह समझना ज़रूरी है कि आजकल रिश्तों के टूटने की असली वजह क्या है? साथ ही एक सवाल यह भी कि क्या इन रिश्तों को बचाया जा सकता है?
रिश्तों के असफल होने के कारण क्या हैं (Rishton ke asafal hone ke karan kya hain?)
आजकल रिश्तों के टूटने के कारण (aajkal rishton ke tutne ke karan) निम्न हैं -
1. प्रेम की परिभाषा में बदलाव -
आज का प्रेम त्वरित, आकर्षण पर आधारित और सुविधा प्रधान हो गया है। पहले के ज़माने में प्रेम में त्याग, समझदारी और समर्पण होता था। लेकिन आज के समय का प्रेम "मैं जैसा हूं मुझे, वैसा ही चाहिए" पर आधारित हो गया है। जब किसी में थोड़ा भी बदलाव या मुश्किल आती है, तो लोग पीछे हटने लगते हैं। ऐसे प्रेम में गहराई नहीं होती, इसलिए वह जल्दी ही टूटकर बिखर जाता है।
2. दूरियों का अर्थ केवल भौगोलिक नहीं -
अक़्सर लोग 'दूरी' शब्द को केवल भौगोलिक या शारीरिक दूरी से जोड़ते हैं, जबकि आपसी रिश्तों के मामले में यह मानसिक, भावनात्मक और संवाद की दूरी भी हो सकती है। कई बार एक ही छत के नीचे रहते हुए भी लोग इतने दूर हो जाते हैं कि उनके लिए एक-दूसरे की भावनाओं को समझना मुश्किल हो जाता है। एक-दूसरे के साथ समय बिताने के बावजूद, अगर आप दिल से जुड़े नहीं हैं, तो यह भावनात्मक दूरी, भौगोलिक दूरी से भी कहीं अधिक ख़तरनाक हो सकती है।
3. डिजिटल दूरी और सोशल मीडिया का असर -
आज के युग में भले ही तकनीक ने लोगों को जोड़ने का दावा किया हो, लेकिन असल में उसने इंसान को और अकेला कर दिया है। सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने जहां हमें दुनिया भर से जोड़ दिया है, तो वहीं सोशल मीडिया पर ज़रूरत से ज्यादा व्यस्तता, आभासी दुनिया में खो जाना और स्क्रीन टाइम की बढ़ोतरी ने आपसी बातचीत को सीमित कर दिया है। लोग एक-दूसरे के पास होते हुए भी बहुत दूर हो गए हैं।
एक समय था जब लोग एक-दूसरे से मिलकर, आपस में बातचीत कर, एक दूसरे को पत्र लिखकर अपनी भावनाएं व्यक्त करते थे। आज व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम पर “seen” और “last seen” से रिश्तों की गहराई मापी जाने लगी है। सोशल मीडिया का यह आभाषी जुड़ाव, कभी भी वास्तविक जुड़ाव की जगह नहीं ले सकता।
4. वक़्त की कमी या प्राथमिकताओं की बदलती सोच -
आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास समय की भारी कमी है। कैरियर, पैसा, सोशल मीडिया, व्यस्त दिनचर्या और निजी महत्वाकांक्षाओं ने रिश्तों को पीछे धकेल दिया है। रिश्ते अब प्राथमिकता नहीं रहे। जब रिश्तों को समय नहीं मिलता, संवाद नहीं होता, तो धीरे-धीरे एक अनजानी दीवार खड़ी हो जाती है। यही दीवार रिश्तों में दूरी का कारण बनती है।
5. अहम और आत्मसम्मान के बीच की उलझन -
रिश्तों में अहम का टकराव होना ही सबसे बड़ा ख़तरा है। आजकल लोग समझौता करने से कतराते हैं। उन्हें
लगता है कि अगर वे किसी रिश्ते में झुकते हैं, माफ़ी मांगते हैं या समझौता करते हैं, तो वे कमज़ोर कहलाएंगे। ऐसा करना उनके स्वाभिमान के खिलाफ़ होगा। लेकिन यह भूल जाते हैं कि रिश्ता तभी चलता है जब दोनों पक्षों को थोड़ा झुकना आता हो। अहम और आत्मसम्मान के बीच संतुलन न बना पाने से कई मज़बूत रिश्ते टूट जाते हैं।
6. संवादहीनता, रिश्तों का मौन हत्यारा -
आज के युग में लोगों के पास बोलने के लिए तो बहुत कुछ है, लेकिन सुनने की क्षमता कम होती जा रही है। संवाद किसी भी रिश्ते की जान होता है। रिश्तों में संवाद का अभाव तब और अधिक बढ़ जाता है जब हम सामने वाले की बात को समझने की कोशिश नहीं करते, बल्कि तुरंत अपनी प्रतिक्रिया देने लगते हैं। एक दूसरे की बातों को सुनने के बजाय केवल अपनी बात थोपते रहने से रिश्तों में तनाव पैदा होता है।
इस तरह एक-दूसरे को न समझ पाने के कारण रिश्तों में दूरियां बढ़ती जाती हैं। जिससे ग़लतफहमियां पैदा होती हैं और धीरे-धीरे ये ग़लतफहमियां एक गहरी खाई बन जाती हैं।
7. भरोसे की कमी और शक़ की दीवार -
किसी भी रिश्ते की नींव विश्वास पर टिकी होती है। लेकिन आजकल शक करने की प्रवृत्ति बढ़ गई है। हर बात पर जांच करना, बार-बार सवाल करना और सोशल मीडिया के ज़रिए ज़रूरत से ज़्यादा निगरानी रखना। या यूं कहिए कि आजकल शक़ और निजी स्पेस की कमी ने रिश्तों को संदेह से भर दिया है। जब विश्वास टूटता है, तो भावनात्मक दूरी अपने आप बढ़ जाती है। फ़िर उसे जोड़ना आसान नहीं होता।
8. रिश्तों में निवेश की कमी -
असल में रिश्ते भी एक तरह का निवेश ही होते हैं। जहां समय, भावनाएं, समझ और परवाह का मीठा सा निवेश ज़रूरी होता है। लेकिन जब हम केवल प्राप्ति की आशा करते हैं, देने की भावना नहीं रखते हैं, तो रिश्ता एकतरफ़ा हो जाता है। ऐसे रिश्ते ज़्यादा दिन नहीं टिकते और धीरे-धीरे यही दूरी, उनकी समाप्ति का कारण बन जाती है।
9. संस्कारों और मूल्यों का ह्रास -
आज की पीढ़ी में पारंपरिक मूल्यों एवं रिश्तों के प्रति सम्मान में गिरावट देखी जा सकती है। अब माता-पिता के लिए बच्चों के पास समय नहीं, बड़े-बुजुर्गों की सीख पुरानी लगती है, और ख़ास बात यह है कि अब संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवारों ने ले ली है।
जहां पहले बड़े-बुज़ुर्ग रिश्तों के मध्यस्थ हुआ करते थे, वहीं अब उनके अनुभवों को नज़रअंदाज किया जाता है। जब संबंधों को बनाए रखने की सीख और प्रेरणा ही ख़त्म हो जाए तो दूरी एक स्वाभाविक परिणाम बन जाती है। जब संबंधों को निभाने की शिक्षा और आदर्श कमज़ोर होते हैं, तो रिश्ते भी अधिक समय नहीं टिकते।
10. व्यक्तिवाद की बढ़ती प्रवृत्ति -
आज का समाज “मैं” और “मुझे” की सोच में जी रहा है। “हम” और “हमारा” जैसे शब्द धीरे-धीरे गुम होते जा रहे हैं। व्यक्तिवाद की यह सोच रिश्तों में सामंजस्य, त्याग और सहनशीलता को ख़त्म कर रही है, जिससे रिश्तों में दूरी आ रही है।
11. धैर्य और सहनशीलता की कमी -
पहले की पीढ़ियों में सहनशीलता और धैर्य की भावना अधिक थी। वे रिश्तों को निभाने के लिए प्रयास करते थे। लेकिन आज की पीढ़ी में यह गुण धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है। अब लोग तुरंत निर्णय लेते हैं। “अगर बात नहीं बनी, तो रिश्ता ख़त्म।” यह त्वरित निर्णय लेने की प्रवृत्ति रिश्तों की उम्र को घटा रही है।
12. स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्पेस की मांग -
आज का इंसान स्वतंत्रता को बहुत महत्व देता है, जो सही भी है। लेकिन कई बार यह स्वतंत्रता स्वार्थ में बदल जाती है। अधिकतर मामलों में ऐसी स्वतंत्रता आपके जीवन को और भी गर्त में लेकर चली जाती है। "मैं अपने लिए जीना चाहता/चाहती हूँ, मैं अब आर्थिक और मानसिक रूप से स्वतंत्र हूँ। मुझे अपने तरीक़े से जीना है।" जैसी सोच रखते हुए जब व्यक्ति केवल ख़ुद को प्राथमिकता देने लगे और संबंधों की ज़िम्मेदारी से बचने लगे, तब रिश्ते बिखरने लगते हैं।
13. अत्यधिक अपेक्षाएं रखना -
जब हम किसी रिश्ते में अत्यधिक उम्मीदें रखते हैं और वह पूरी नहीं होती, तो हम निराश हो जाते हैं। यह निराशा धीरे-धीरे नाराज़गी में बदल जाती है, और वही नाराज़गी संबंधों को समाप्त करने की वजह बन जाती है।।एक दूसरे से अपेक्षाएं रखना कतई ग़लत नहीं है, लेकिन अत्यधिक अपेक्षाएं बिना संवाद के बोझ बन जाती हैं।
14. संवाद और समझ में कमी -
यह भी सच है कि दूरियां रिश्तों के टूटने का कारण बन रही हैं, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि आज के समय में आपसी संवाद, समझदारी, संवेदनशीलता में भारी कमी देखी जाती है। अगर समय रहते संवाद, समझदारी और संवेदनशीलता दिखाई जाए, तो इन दूरियों को आसानी से पाटा जा सकता है। रिश्तों में पहल करना, माफ़ करना, सुनना और समझना। ये छोटे-छोटे क़दम रिश्तों को मज़बूत कर सकते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
आजकल रिश्तों के टूटने की वजहें बाहरी कम और आंतरिक अधिक हैं। हम ख़ुद अपने रिश्तों के लिए कितना समय, समझ और भावनात्मक जुड़ाव रखते हैं। यही तय करता है कि कोई रिश्ता टिकेगा या टूटेगा। समाज में तकनीक और जीवनशैली में बदलाव आ सकता है। लेकिन रिश्तों की बुनियादी ज़रूरतें- प्रेम, सम्मान, विश्वास और समय कभी नहीं बदलतीं।
रिश्तों में दूरियां एक कड़वा सच हैं, लेकिन उनका समाधान भी हमारे ही हाथों में है। ज़रूरत है तो केवल अपने रिश्तों को महत्व देने की, समय निकालने की, संवाद करने की और अहंकार को त्यागने की। जीवन में अगर रिश्ते मज़बूत हों, तो कठिन से कठिन परिस्थितियों को भी सहजता से पार किया जा सकता है। रिश्ते केवल साथ रहने से नहीं, बल्कि दिल से दिल का जुड़ाव होने से बनते हैं।
रिश्तों को टूटने से बचाने के लिए हमें आत्मनिरीक्षण की ज़रूरत है। संवाद को प्राथमिकता दें, बात करें, सुनें, समझें। माफ़ी माँगने और देने की आदत डालें।टेक्नोलॉजी को रिश्तों के बीच बाधा न बनने दें। विश्वास और धैर्य बनाए रखें। रिश्तों में “मैं” से ज़्यादा “हम” को महत्व दें। रिश्तों को तोड़ना आसान है, लेकिन जोड़ना एक कला है। और इस कला में निपुण होना आज के समय की सबसे बड़ी ज़रूरत है।
उम्मीद है आज का यह लेख "आजकल रिश्ते क्यों टूट रहे हैं?" आपने निश्चित रूप से यह जान लिया होगा कि आज के समय में रिश्तों का लंबे समय तक टिक पाना मुश्क़िल क्यों हो रहा है। हम आशा करते हैं कि अब आप भी अपने आसपास टूट रहे किसी रिश्ते को बचाने का अपनी ओर से एक प्रयास ज़रूर करेंगे। लोगों को दिमाग़ से नहीं बल्कि दिल से निभाने की सीख देंगे।
" - By Alok Khobragade"
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