विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं, दशहरा का त्यौहार क्यों मनाया जाता है, दशहरा से हमें क्या सीख मिलती है, (Dussehra sandesh, Dussehra ka tyohar in hindi, Dussehra se hamen kya siksha milti hai?)
दोस्तों! आप सभी को हमारी ओर से दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं!! आप तो जानते ही हैं कि दशहरा क्यों मनाते हैं? दशहरा, भारत का एक लोकप्रिय त्यौहार है जिसे विजयादशमी भी कहते हैं। आश्विन शुक्ल की दशमी को दशहरा मनाया जाता है। भारत में दशहरा का महत्व (Dussehra ka mahatva) इसीलिये है क्योंकि भगवान राम और रावण के बीच 10 दिन संग्राम चला था और दशमी के दिन भगवान श्री राम को विजय मिली थी।
तब से इसे विजय का उत्सव कहा जाता है इसी जीत के उपलक्ष्य में दशहरा का त्यौहार मनाया जाता है। दशहरा का महत्व क्या है? अगर जानना चाहें तो अलग-अलग प्रदेशों में दशहरा (Dussehra in hindi) से जुड़ी अलग-अलग मान्यतायें प्रचलित हैं। साथ ही इसे मनाने के तौर तरीकों में भी विभिन्नताएं हैं।
लेकिन इन सारी मान्यताओं का निचोड़ निकालें तो पाएंगे कि दशहरा एक ऐसा भारतीय त्यौहार है जो कि बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। ये दिन बुराइयों पर अच्छाइयों की जीत का जश्न मनाने का दिन है।
लेकिन ज़रा सोचें, कि क्या ये बुराईयां सिर्फ़ बाहरी दुनिया तक ही सीमित हैं? अपने अंदर निहित बुराईयों को ख़त्म करने का ज़िम्मा कौन उठाएगा? हमें उन बुराइयों या बुरी आदतों को भी दूर करने की निहायत ही ज़रूरत है जिन्हें हमने जाने-अनजाने ख़ुद ही निमंत्रण दिया है। क्यूँ न इस पर्व से एक ऐसा संकल्प लें जिसके बाद हम सच्चे मन से प्रति वर्ष इसका आनंद ले सकें। अपने अंदर के विकारों पर विजय पाएँ। ताकि आज का दिन आपको वास्तविक रूप में नज़र आये।
दोस्तों कहने में यह अजीब लग सकता है, लेकिन हम सभी में एक न एक बुराई है। जो कि दिन-ब-दिन एक विकराल रूप ले रही है। ये बुरी आदतें हमारे साथ-साथ समग्र समाज और संस्कृति पर बुरा प्रभाव डालती हैं।
चूँकि यह बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है। इसलिए इस दिन आप भी कुछ ऐसा कर सकते हैं जिससे आप अपने जीवन में आने वाली बुराइयों पर विजय पा सकें। हमारे ख़याल से जिस दिन यह बुराई अपने अंदर से ख़त्म हो जाएगी। सच्चा विजय पर्व उस दिन होगा। क्यूँ न फ़िर हम सभी को मिलकर बाहरी दुनिया की बुराइयों के साथ-साथ अपने भीतर की बुराइयों पर विजय पाने का संकल्प लिया जाए।
हम आपको कुछ बुराइयों के बारे में बता रहे हैं जिन्हें अपने दिमाग़ पर कभी चढ़ने न दें। इसके पहले कि ये बुराइयां आपका नाश कर दें। क्यूँ न आप ही इन बुराइयों का विनाश कर दें। आइये जानते हैं कि ये अंदर की बुराईयां क्या हैं-
1. मद - मद यानि कि किसी नशे में चूर होना। और ये नशा भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है। जैसे कि किसी नशीले पदार्थ का आदि होना, सत्ता या किसी पद के नशे में चूर होना, धन दौलत आदि का नशा होना। आप हमेशा कोशिश करें कि आपको इस तरह का कोई नशा ना हो। क्योंकि ये नशा आपको अंततः बुरा साबित कर आपका विनाश कर देता है।
2. लोभ- सच कहा जाए तो लोभ मनुष्य के जीवन का एक ऐसा मानसिक विकार है। जो उस मनुष्य की प्रगति में सदैव ही बाधक बनकर सामने आता है। लोभी व्यक्ति आचरण से हीन हो जाता है तथा अपने स्वाभिमान को किनारे रख किसी की चाटुकारिता करना शुरू कर देता है। जिस कारण उसका अपना चरित्र नष्ट हो जाता है। कुछ पाने की आशा में वह अपना सब कुछ गवां बैठता है।
3. क्रोध- गुस्सा एक ऐसा विकार है। जिसका परिणाम कभी भी अच्छा नहीं होता। ऐसे कई उदाहरण देखने मिलते हैं जहाँ गुस्से के बड़े ही विभत्स परिणाम देखने सुनने मिलते हैं। जब ज़्यादा गुस्सा आता है तब हमारे शरीर में एक सायटोकिनेस नाम का हार्मोन्स बनने लगता है। जब इस हार्मोन्स का लेबल ज़्यादा बढ़ने लगता है तो आर्थराइटिस, डायबिटीज़ या दिल का दौरा पड़ने का ख़तरा भी बढ़ जाता है। इसीलिये क्यूँ न हम गुस्से पर काबू पाना सीख लें।
4. वासना- संसार में सबसे बड़ी और घातक अंजाम देने वाली कोई सामाजिक बीमारी है तो वह है वासना। इतिहास गवाह है, रामायण और महाभारत में भी जितने बड़े-बड़े संघर्ष हुए थे सबका कारण कहीं न कहीं यही वासना थी। सच कहा जाए तो शरीर के अंदर छिपी हुई वासना जो न केवल सांसारिक और आध्यात्मिक अपरिपक्व जीव को गम्भीर नुक़सान पहुँचा सकती है बल्कि भविष्य के बाकी जीवन को भी अंधकारमय बना देती है।
5. माया- मनुष्य का जीवन दूसरों की मदद, उनके हित में कार्य करने के लिए है। इसे जीवन-मरण के बंधनों से मुक्त होने के लिए प्रदान किया गया है किंतु मनुष्य सांसारिक मोह, माया के बंधनों में बंधकर अपना वास्तविक उद्देश्य भूल जाता है और पूरा जीवन अपने-पराये के पचड़ों में फँसकर दूसरों के हित में कार्य नहीं कर पाता। ज़रूरत से ज़्यादा माया-मोह मनुष्य को अपने दायरे में पक्षपाती बना देता है। आप किसी के साथ न्याय नहीं कर पाते। माया में फँसकर आप असत्य का साथ देने लग जाते है।
6. ईर्ष्या द्वेष- ईर्ष्या एक भावना है, और यह शब्द आम तौर पर विचारों और असुरक्षा की भावना को दर्शाता है।ईर्ष्या अक्सर क्रोध, आक्रोश, अपर्याप्तता, लाचारी और घृणा के रूप में भावनाओं का एक संयोजन होता है। ईर्ष्या मानवीय रिश्तों में एक विशिष्ट अनुभव है। ईर्ष्या भावनात्मक अथवा मानसिक रूप से या तो शारीरिक रूप से मनुष्य को बहुत प्रभावित करता है। यह एक इस दुर्गुण है जिसका इलाज सिर्फ़ वही मनुष्य कर सकता है।
7. नकारात्मकता- नकारात्मकता आपकी ख़ुशी, रिश्ते, जीवन और यहाँ तक कि स्वयं आपको भी परेशान करती है। नकारात्मकता एक ज़ंग लगे लोहे की तरह है। अगर आपकी उंगली उस ज़ंग लगे लोहे से कट जाये, तो जिस स्थान पर कट हो, वह ज़हर हो जाता है। इसलिए जितना हो सके नकारात्मकता से दूर ही रहिये।
8. स्वार्थपरता- खुदगर्ज़ या स्वार्थी, मतलबी होने की अवस्था को स्वार्थपरता कहा जाता है। स्वार्थपरता की आदत आपको अंदर ही अंदर दीमक की तरह खोखला कर देती है। आप कितना भी दूसरों के बारे में सोचें लेकिन स्वार्थपरता अंततः आपको अपने हित मे ही निर्णय लेने के लिए मजबूर कर देती है।
9. घृणा- घृणा एक भावना है। इसका दूसरा नाम वैमनस्य भी कह सकते हैं। जब एक समाज में एक-दूसरे के प्रति बिना वजह जाति, धर्म, रंग और अर्थ के आधार पर घृणा फैली हो उसे वैमनस्यता कहा जाता है। वह मनोवृत्ति जो किसी को बहुत बुरा समझकर सदा उससे दूर रहने की प्रेरणा देती है। ऐसी भावना को घृणा कहा जाता है।
10. अहंकार- अहंकार का अर्थ है अपने आपको औरों से बहुत अधिक योग्य, समर्थ या हद से ज़्यादा बढ़कर समझने का भाव होता है। यह भाव आपको बाहर किसी से भी मेलजोल करने से रोकता है। आपको दूसरों से अलग होने पर मजबूर कर देता है।
(- Written by Alok)
अन्य आर्टिकल्स पढ़ें👇
Tags
सोशल