विमुद्रीकरण (नोटबंदी) से आप क्या समझते हैं? | Mudra ka vimudrikaran in hindi

अर्थव्यवस्था में जब भ्रष्टाचार, कालाधन, आतंकवाद और जाली मुद्रा का चलन अत्यधिक बढ़ जाता है। तब ऐसी समस्याओं से निपटने के लिए देश में विमुद्रीकरण जैसी नीति अपनायी जाती है। हालांकि यह एक असाधारण नीति होती है जिसके दोनों ही प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ते हैं। आइये विमुद्रीकरण क्या होता है? (vimudrikaran kya hota hai?) विस्तार जानते हैं। 

विमुद्रीकरण क्या है (vimudrikaran kya hai?)


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विमुद्रीकरण एक ऐसी आर्थिक गतिविधि होती है जिसके अंतर्गत सरकार पुरानी मुद्रा को समाप्त करने का फ़ैसला लेती है और उसके बदले नई मुद्रा को चालू करती है। जब काला धन बढ़ जाता है और अर्थव्यवस्था के लिए ख़तरा बन जाता है तो इसे दूर करने के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है। जिनके पास काला धन होता है। वे उसके बदले में नई मुद्रा लेने का साहस नहीं जुटा पाते हैं और काला धन स्वयं ही नष्ट हो जाता है।  

सरल शब्दों में - "जब किसी देश की सरकार, देश में चल रहे किसी भी करेंसी नोट को कानूनी तौर पर बंद करने का आदेश करती है तो उस प्रक्रिया को विमुद्रीकरण कहा जाता है।"

इसका ताज़ातरीन उदाहरण तब देखने मिला जब 8 नवम्बर 2016 को भारत के प्रधानमंञी नरेंद्र मोदी ने विमुद्रीकरण की पहल की। इस दिन पुराने 500 और 1000 रूपए के करेंसी नोटों को बंद कर दिया गया। अर्थात इस दिन से ये करेंसी नोट विधिग्राह्य नहीं रहे।

पुराने 500 और 1000 रुपए के नोटों को बंद कर, 500 और 2000 रुपए के नोटों की एक नई श्रृंखला शुरू कर दी गई। लोगों से यह कहा गया कि वे 31 दिसंबर 2016 तक बिना किसी घोषणा के पुराने नोटों को अपने बैंक खाते  जमा कर सकते हैं। और 31 मार्च 2017 तक घोषणा सहित भारतीय रिज़र्व बैंक में जमा कर सकते हैं।

व्यवस्था को बुरी तरह से टूटने तथा चलन नकदी की कमी से बचाने के लिए, सरकार ने लोगों को ₹4000 प्रति व्यक्ति प्रतिदिन , पुराने नोटों में परिवर्तत करने की अनुमति प्रदान की। पेट्रोल पम्प, सरकारी अस्पताल तथा सरकारी अदायगी जैसे बिजली बिल, करों आदि के भुगतान के लिए, 12 दिसंबर 2016 तक पुराने नोट विधिग्राह मुद्रा के रूप में स्वीकार किए गए।


विमुद्रीकरण और उसका प्रभाव | Vimudrikaran ke sakaratmak prabhav

सरकार द्वारा उठाए गए विमुद्रीकरण के इस फ़ैसले की प्रशंसा और आलोचना दोनों हुई। बैंकों और एटीएम के बाहर लोगों की लंबी लंबी कतारें लगने लगी। चलन में मुद्रा की कमी का आर्थिक क्रियाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ा। हालांकि जैसे जैसे समय बीतता गया। स्थिति में सुधार हुआ और धीरे धीरे सामान्य स्थिति भी निर्मित हो गई।

इस स्थिति के धनात्मक प्रभाव भी हुए। हम कह सकते हैं कि विमुद्रीकरण का समाज पर प्रभाव अच्छा ही हुआ। कम से कम इससे कर (tax) अनुपालन में सुधार हुआ और बड़ी संख्या में लोगों को कर  दायरे में लाना संभव हो पाया। लोगों की बचत औपचारिक वित्तीय व्यवस्था के अंतर्गत आ गई। फलस्वरूप बैंकों के पास अधिक साधन एकत्रित हो गए। जिस कारण बैंकों को कम ब्याज़ की दर पर ऋण प्रदान करने में सुविधा मिली। 

सचमुच यह क़दम कालेधन की समस्या को हल करने के लिए सरकार द्वारा दिया गया एक संदेश था कि अब कर की चोरी कदापि सहन नहीं की जाएगी। इससे कर दाताओं को यह सीख मिली कि अचानक नोट बंदी के जोख़िम से बेहतर है नियमित रूप से सामान्य कर (tax) का भुगतान करना। इस क़दम से कर (टैक्स) अनुपालन में बढ़ोत्तरी आएगी और भ्रष्टाचार  में जरूर कमी आएगी। 


विमुद्रीकरण का कारण (vimudrikaran ka karan)

विमुद्रीकरण की आवश्यकता (vimudrikaran ki avashyakta) तब होती है जब देश में काला धन, भ्रष्टाचार, जाली नोटों आदि का बाज़ार अत्यधिक मात्रा में सक्रिय हो जाता है। विमुद्रीकरण का उद्देश्य इसी कालेधन, भ्रष्टाचार को कम करने और आतंकवाद, नक्सलवाद की बढ़ती समस्या को कम करना होता है।


विमुद्रीकरण का इतिहास | bharat me vimudrikara kab kab hua?

विमुद्रीकरण कब हुआ था तो हम आपको बता दें कि भारत में विमुद्रीकरण पहली बार अंग्रेज़ सरकार द्वारा सन 1946 में किया गया था। जिसमें ₹1000 और ₹10,000 के करेंसी नोटों को बंद कर दिया गया था। हालांकि कुछ वर्षों बाद सन 1954 में दोनों ही करेंसी नोटों को ₹5000 के अतिरिक्त नोटों के साथ पुनः शुरू कर दिया गया था।

दूसरी बार विमुद्रीकरण, भारत के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के द्वारा 16 जनवरी सन 1978 में मुद्रा का विमुद्रीकरण किया गया था जिसमें ₹1000, ₹5000 और ₹10,000 के उच्च मूल्य के नोट बंद कर दिए गए थे।



विमुद्रीकरण के फायदे और नुक़सान (Advantages and disadvantages of demonatisation in hindi)

जब भी कोई देश अपने देश की अर्थवयवस्था में प्रचलित करेंसी यानि कि पुराने नोटों को प्रचलन से बाहर कर दिया जाता है। तब उठाए गए इस क़दम से कुछ फ़ायदे तो कुछ नुक़सान भी उठाने पड़ते हैं। जनता में भागदौड़ सी मच जाती है। और तब जनता के बीच करेंसी की कमी हो जाती है। आइए हम नोटबंदी के फ़ायदे और नुक़सान (notbandi ke fayde aur nuksan) को विस्तार से समझते हैं!

विमुद्रीकरण के फ़ायदे (vimudrikaran ke fayde)

विमुद्रीकरण (नोटबंदी) की इस प्रक्रिया से नकद लेनदेनों को औपचारिक भुगतान प्रणाली में शिफ़्ट करके सरकार को सहायता मिली। अब तो घरेलू और फर्मों के नकद भुगतान भी इलेक्ट्रॉनिक (digital) होने लगे हैं। जिससे काफ़ी हद तक भुगतान प्रणाली आसान हो गई है। आज के समय में बाज़ार हो या सफ़र हो आपको अपने बैग या पर्स में ज़्यादा रक़म रखने की ज़रूरत नहीं होती। 

अब आप कहीं भी बड़ी ही आसानी से केशलेस पेमेंट मोड यानि कि डिजिटल भुगतान प्रणाली अपनाकर लेनदेन को आसान बना सकते हैं। विमुद्रीकरण के प्रथक से कुछ विशेष फ़ायदे हैं जो निम्नलिखित हैं।

1) काला धन की वापसी -
इसका सबसे विशेष फ़ायदा यह होता है कि विमुद्रीकरण से देश में अवैध रूप से जमा रुपए बाहर आ जाते हैं। जिससे भ्रष्टाचारी, रिश्वतखोरी, काला बाज़ारी, हवाला और यहां तक कि टैक्स चोरी करने वालो पर भी प्रतिबंध लग चुका होता है।

2) आतंकवाद व नक्सलवाद को हतोत्साहन - 
विमुद्रीकरण का एक ख़ास फ़ायदा यह भी होता है कि इसे देश जो अन्य देशों में आतंकवाद, नक्सलवाद को बढ़ावा देने के लिए उन्हें भरपूर पैसा देते हैं। विमुद्रीकरण होने से उनके पास जमा पैसा निष्क्रिय हो जाता है। फलस्वरूप वे कुछ हद तक निष्क्रिय हो जाते हैं।

3) सरकार को भरपूर टैक्स की प्राप्ति -
विमुद्रीकरण के कारण लोगों के पास जमा राशि बैंकों बड़ी ही आसानी से पहुंचने लगती है। इस तरह ऐसे लोग जो अपनी वास्तविक कमाई को सरकार से छुपाकर टैक्स देने से बचते हैं। उन्हें बैंक में अपनी जमा राशि जमा करनेके कारण टैक्स जमा करना होता है। परिणास्वरूप सरकार को एस लोगों से करोड़ों में टैक्स प्राप्त होता है।

4)  बैंकों में नकदी की मात्रा का बढ़ना -
विमुद्रीकरण से लोग अपने घरों में जमा राशि को बैंकों में जमा करवाते हैं। जिससे बैंकों में नकदी की मात्रा बढ़ जाती है। इसका फ़ायदा यह होता है कि बैंक जनता को कम से कम ब्याज़ दर पर ऋण (लोन) देने में सफल होते हैं। कम ब्याज़ दर पर लोन मिलने से देश व्यवसाय, उद्योग आदि को बढ़ावा मिलता है। और देश प्रगति की राह पर चल पड़ता है। देश की नागरिक आर्थिक रूप से सशक्त बनते हैं।

5) रीयल स्टेट की कीमतों में कमी -
जब भी किसी देश में सरकार द्वारा नोटबंदी (विमुद्रीकरण) का कदम उठाया जाता है। उस देश में रीयल स्टेट की क़ीमतें, मकान और ज़मीन सस्ती हो जाती है। क्योंकि नोटबंदी से लोगों के पास नकदी की कमी होने लगती है। जिस कारण रीयल स्टेट में क़ीमतें कम होने लगती हैं।



विमुद्रीकरण के नुक़सान (vimudrikaran ke nuksan) -

किसी देश में विमुद्रीकरण करने से कुछ नुक़सान भी देखे जाते हैं जो की निम्नलिखित है-

1) देश में आपातकाल जैसी स्थिति -
विमुद्रीकरण होने के कारण लोगों के पास जमा नकद राशि निष्क्रिय हो जाती है तथा नई करेंसी उतनी आसानी से प्राप्त नहीं हो पाती। जिस कारण देश में आपातकालीन स्थिति निर्मित हो जाती है। लोगों। केलिए रोज़मर्रा की  चीज़ें ख़रीदना भी दूभर हो जाता है। 2016 की नोटबन्दी में जिस प्रकार की आपातकाल जैसी स्थिति बनी थी उससे तो आप परिचित ही होंगे।

2 ग़रीब वर्ग और मज़दूरों के साथ समस्या -
विमुद्रीकरण होने से ग़रीब वर्ग के लोगों के साथ, ख़ासकर बाहर कमा कर रहे मज़दूरों साथ विकट परिस्थितियां निर्मित हो जाती हैं। उनका रोज़गार छिन जाता है। यहां तक कि मालिक बके पास उन्हें देने के लिए पैसा भी नहीं होता है। 2016 में लाखों मज़दूरों का रोज़गार छिन गया था। उनके मालिकों के पास उन्हें देने के लिए वैद्य रुपया ही नहीं था।

3) रीयल स्टेट की वैल्यू का कम हो जाना -
लोगों के पास नकदी कि इतनी बड़ी कमी हो जाती है कि उस समय लोग अपनी रोज़मर्रा की चीज़ों को ही ख़रीदने में अपना ध्यान लगाते हैं। कोई भी व्यक्ति मकान या रीयल स्टेट ख़रीदने में दिलचस्पी नहीं लेते। परिणामस्वरूप रीयल स्टेट की वैल्यू घट जाती है।

4) किसानों को नुक़सान - 

विमुद्रीकरण का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव किसानों पर पड़ता है। किसान अपने लिए सब्ज़ियां भी नहीं खरीद पाते। अपनी उगाई गई सब्ज़ियों को भी मजबूरन कम दाम पर बेचना पड़ता है। जिसका दुष्प्रभाव उनके निजी जीवन पर पड़ता है। 


5) सदमे से अनेक लोगों की जान चली जाना -
विमुद्रीकरण से निर्मित होने वाली विकट परिस्थितियों के चलते अनेक लोग मृत्यु के आगोश में समा जाते हैं। 2016 में एटीएम की लाइन में लगे लगे कई लोग बीमार पड़ गए तो कई लोगों की जान चली गई। 

उम्मीद है हमारे इस अंक "मुद्रा का विमुद्रीकरण इन हिंदी" से आपको अच्छी और संक्षिप्त जानकारी अवश्य प्राप्त हुई होगी। आप अब भलीभांति जान चुके होंगे कि विमुद्रीकरण किसे कहते है? (vimudrikaran kise kahate hain?)

FAQ : -

1. भारत में ₹1000 का नोट कब शुरू हुआ था?
उत्तर- भारत में ₹1000, ₹5000 और ₹10,000 के नोट सन 1954 में जारी किए गए थे।

2. भारत में अंतिम बार विमुद्रीकरण कब किया गया?
उत्तर - भारत में अंतिम बार विमुद्रीकरण 8 नवंबर 2016 को तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी के नेतृत्व में ₹500 और ₹1000 के नोटों को चलन से बाहर कर दिया गया था।

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